रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा सदस्य या राज्यपाल बनने के सवाल पर क्या बोले पूर्व CJI यूयू ललित

उदय उमेश ललित ने कहा, ऐसा नहीं है कि मैं इन पदों को डिमोशन के रूप में देखता हूं लेकिन प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति के लिए यह उचित नहीं है.

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एनडीटीवी से बात करते सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित.

नई दिल्ली:

भारत के सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) उदय उमेश (यूयू) ललित ने आज एनडीटीवी से कहा कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद सरकारी नियुक्ति को स्वीकार करने के खिलाफ नहीं हैं, मगर वह खुद राज्यसभा सदस्य या किसी राज्य का राज्यपाल बनने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे. उदय उमेश ललित ने कहा, ऐसा नहीं है कि मैं इन पदों को डिमोशन के रूप में देखता हूं लेकिन प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति के लिए यह उचित नहीं है. राज्यसभा का सदस्य या राज्यपाल बनना सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश के लिए सही विचार नहीं है.

उदय उमेश ललित ने यह जवाब पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई जैसे न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पोस्टिंग स्वीकार करने के एक सवाल पर दिया. उदय उमेश ललित ने कहा, "यह मेरा निजी विचार है. मैं यह सुझाव नहीं दे रहा हूं कि वे लोग गलत हैं." न्यायमूर्ति ललित ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख, लोकपाल और विधि आयोग के प्रमुख को नौकरी के रूप में उल्लेख करते हुए कहा कि अगर उनसे इसके बारे में पूछा जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी.

उदय उमेश ललित ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा, "राज्यसभा एक पूरी तरह से अलग चीज है. मेरे कहने का मतलब यह है कि एनएचआरसी के अध्यक्ष जैसे पदों ... पर कानून के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को नियुक्ति लेने का अधिकार है. इन्हें संसद ने पारित किया है और संसद ने निर्धारित किया है कि इन पदों पर सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व प्रधान न्यायाधीश आदि काम कर सकते हैं. हम संसद के विवेक से चलते हैं."  पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह शिक्षण संस्थानों में कानून पढ़ाना पसंद करेंगे. "शायद राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में या अतिथि प्रोफेसर के रूप में कुछ लॉ स्कूलों में काम करूं."

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