मोदी 3.0 के पहले बजट में विकसित भारत का खाका खींचा गया है. बजट में किसानों, मिडिल क्लास, युवाओं, महिलाओं, छोटे निवेशकों और सैलरीड क्लास का खास ख्याल रखा गया है. पहली बार बजट में रोजगार परक स्किल पर दिया गया जोर दिया गया. ये एक स्वागत योग्य कदम है. इसका फायदा 1 करोड़ युवाओं को पांच साल के दौरान मिलेगा.
विकसित भारत का खाका खींचने में एक मुद्दा डेमोग्राफिक डिविडेंट का आता है. डेमोग्राफिक डिविडेंट का अगर अधिकतम इस्तेमाल करना है, दुनिया में हमारे देश की स्थिति को अगर मजबूत करना है, तो सबसे पहले हमारे युवाओं को मजबूत करना होगा. युवाओं को बेसिक एजुकेशन और स्किल्स देनी पड़ेगी.
स्किल्स और जॉब्स एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. हमें जॉब्स और स्किल्स को मैच करना होगा. इस बजट में कई प्रोग्राम शुरू किए गए हैं. जिससे जॉब रिलेटेड स्किल्स हमारे युवाओं को मिले, ताकि वो अपने-अपने क्षेत्र में आगे बढ़ सके. इन सब चीजों के लिए हमें जॉब्स के लिंक की जरूरत है.
स्किल्स खाली क्लास रूम में नहीं, स्किल्स के लिए वास्तव में वर्किंग और लर्निंग बाय डूइंग करना पड़ता है. यानी काम करते रहने के दौरान सीखना पड़ता है. स्किल्स बढ़ाने के लिए सरकार ने जो 5 प्रोग्राम शुरू किए हैं, उनकी काफी अहमियत है. सरकार की पूरी कोशिश है कि किसी सेक्टर, किसी फील्ड काम कर रहे लोगों को काम करते हुए उसमें अनुभव के साथ-साथ कुछ सीखने को मिले. ये ट्रेनिंग एक महीने की भी हो सकती है और एक साल की भी.
अगर बेरोजगारी दर की बात करें, तो इसमें एक हफ्ते या एक क्वॉर्टर में उतार-चढ़ाव आता रहता है. जब मैं ग्रोथ की ओर देखता हूं, तो रोजगारी वृद्धि दर की बात करनी होगी. मैं देखता हूं कि कामगार और जनसंख्या का रेशियो और पीएफएलएस का 2017-18 से लेकर 2022-23 का डेटा एनालिसिस काफी कुछ कहता है. इसमें बेरोजगारी की मुख्य समस्या स्किल की कमी बताई गई है. सरकार ने बजट में इसलिए स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया है.
(अरविंद विरमानी जाने-माने अर्थशास्त्री, पूर्व CEA हैं. वर्तमान में वो नीति आयोग के फुल टाइम मेंबर हैं.)