"हिंसक आंदोलन का समर्थन नहीं..." : किसानों के प्रदर्शन को भारतीय किसान संघ ने बताया "राजनीति से प्रेरित"

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सारे किसान संगठनों से यही अनुरोध करता हूं किसी भी समस्या का समाधान बातचीत के जरिए हो सकता है. मैं खुद पंजाब में जाकर किसानों से मिला, मंत्रालय लगातार किसानों के हित में काम कर रहे हैं. मैं उनसे बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाए रखने की अपील करता हूं.

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नई दिल्ली:

किसान संगठनों के 'दिल्ली चलो' मार्च को लेकर देश के बड़े किसान संगठनों में मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा के बाद अब देश के सबसे बड़े किसान संगठन आरएसएस से जुडी भारतीय किसान संघ ने भी इसका विरोध करते हुए कहा कि वो किसी भी हिंसक आंदोलन का समर्थन नहीं करती है.

देश की सबसे बड़ी किसान संगठन RSS से जुडी भारतीय किसान संघ ने SKM (NP) के "दिल्ली चलो" मार्च का विरोध करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया है. भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मिश्रा ने कहा, "किसान संगठनों का "दिल्ली चलो" मार्च राजनीति से प्रभावित दिखाई देता है. ये 2024 के चुनाव से ठीक पहले हो रहा है, जिस तरह से किसान संगठन जबरदस्ती दिल्ली की ओर मार्च करने की कोशिश कर रहे हैं हम उसके खिलाफ हैं. हम किसी भी तरह के हिंसक किसान आंदोलन के सख्त खिलाफ है."

भारतीय किसान संघ का मानना है कि MSP व्यवस्था को कारगर बनाने के सवाल पर देश में पिछले कई दशक से बहस हो रही है. भारतीय किसान संघ का मानना है कि देश में किसानों को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य मिल सके. इसके लिए MSP की जगह Maximum Retail Price mechanism बहाल होना चाहिए.

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मोहिनी मिश्रा ने कहा कि हम सरकार से डिमांड करते हैं कि भारत सरकार देश में किसानों को फसल की लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए MSP की व्यवस्था शुरू करे". उधर, शम्भू बॉर्डर पर किसान संगठनों के विरोद्ध प्रदर्शन को लेकर बढ़ते तनाव के बीच कृषि राज्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने किसान संघों से अपील किया है कि वह राजनीति से प्रभावित न हों, सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.

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कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सारे किसान संगठनों से यही अनुरोध करता हूं किसी भी समस्या का समाधान बातचीत के जरिए हो सकता है. मैं खुद पंजाब में जाकर किसानों से मिला, मंत्रालय लगातार किसानों के हित में काम कर रहे हैं. मैं उनसे बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाए रखने की अपील करता हूं.

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विरोध-प्रदर्शन जताते हुए राजधानी दिल्ली की तरफ कूच कर रहे किसान संगठनों की मांगों में एक प्रमुख मांग है कि अहम फसलों के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों की मिले ये सुनिश्चित करने के लिए MSP पर नया कानून बने. उधर, सरकार की दलील है कि किसानों को उनकी फसल पर होने वाले खर्च से 50% या उससे ज्यादा दर पर MSP पिछले पांच साल से फिक्स की जा रही है. 2018-19 के बजट में भारत सरकार ने ऐलान किया था कि किसी भी फसल को उगने में  किसानों का जितना खर्च होता है उससे डेढ़ गुना ज्यादा MSP रेट तय होगी.

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सरकार की दलील है कि यह नीति पिछले 5 साल से लागू है. सरकार के मुताबिक 2023-24 के दौरान 1 क्विंटल गेहूं उगाने पर कुल खर्च 1128 रुपए प्रति क्विंटल था, जबकि MSP की रेट 2275 प्रति क्विंटल फिक्स की गई थी. एक क्विंटल चावल उगाने पर कुल औसत खर्च 1455 रुपए प्रति क्विंटल था, जबकि सरकार ने इसकी MSP 2183 रुपए प्रति क्विंटल तय की थी. फिलहाल सरकार के प्रतिनिधियों और किसान नेताओं के बीच दो अहम दौर की बैठकों के बाद भी किसान संगठनों की मांगों पर सहमति नहीं बन सकी है.

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