चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के प्रावधानों वाले विधेयक को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष आमने-सामने नजर आ रहा है. सूत्रों के मुताबिक, विपक्ष के विरोध के बाद मतदान अधिकारियों की नियुक्ति के विधेयक पर केंद्र सरकार पुनर्विचार कर रही है. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज का दर्जा न देने का विरोध कर रही हैं. बता दें कि आज संसद का विशेष सत्र शुरू हो रहा है. इससे पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में मोदी सरकार ने जिन आठ बिलों की सूची विपक्ष को दी, उनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का बिल नहीं था.
क्या है मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति विधेयक
मोदी सरकार ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति विधेयक गत मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में पेश किया गया था. विधेयक के प्रावधानों के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का वेतन एवं भत्ते कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे. वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की सेवा से संबंधित कानून के मुताबिक, उनका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होता है. सरकार के एक सूत्रों का कहना है कि दर्जा बदलने के बावजूद चुनाव अधिकारियों का वेतन पहले के जितना ही रहेगा. लेकिन मौजूद विधेयक के मुताबिक, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त कैबिनेट सचिव के समान होंगे, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान नहीं. हालांकि, सरकार ने अभी तक इस विधेयक पर स्थिति साफ नहीं की है. सूत्र के मुताबिक, विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल उनके पदभार ग्रहण करने से छह वर्ष तक के लिए या उनके 65 वर्ष की आयु पूरा करने या इनमें से जो पहले हो, प्रभावी होगा.
इसलिए हो रहा विधेयक का विरोध...?
- विधेयक के मुताबिक, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त कैबिनेट सचिव के बराबर होंगे, सुप्रीम उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर नहीं, इसलिए उन्हें नौकरशाह माना जा सकता है. चुनाव करवाने के मामले में यह एक जटिल स्थिति हो सकती है.
- मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों को सुप्रीम कोर्ट के जज का दर्जा न देने का विरोध हो रहा है. बिल में इनका दर्जा सुप्रीम कोर्ट के जज से घटा कर कैबिनेट सचिव के बराबर करने का प्रस्ताव है, जिसका विपक्ष ने रविवार कोई हुई सर्वदलीय बैठक में भी विरोध किया.
- सूत्रों की मानें तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है. इसका भी विपक्ष विरोध कर रहा है.
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.
- विधेयक के मुताबिक, प्रधानमंत्री इस समिति के प्रमुख होंगे और समिति में लोक्सभा में विपक्ष के नेता (एलओपी) और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री होंगे. इसके प्रावधानों के अनुसार, यदि लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है तो सदन में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष माना जाएगा.
विपक्ष के विरोध के बाद केंद्र सरकार कर रही पुनर्विचार..!
संसद के विशेष सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में मोदी सरकार ने जिन आठ बिलों की सूची विपक्ष को दी, उनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का बिल नहीं था. मीडिया से बातचीत में भी संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने इस बिल का बिल्कुल भी जिक्र नहीं किया. प्रल्हाद जोशी से जब इस बिल के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा- "जो बताना था बता दिया". सूत्रों कीी मानें तो ऐसा कहा जा रहा था कि सरकार इसमें संशोधन पर विचार कर रही है.
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