Explainer : कांग्रेस को किसका डर? नीतीश के फ्लोर टेस्ट से पहले क्यों छुपाए विधायक?

कांग्रेस को 'ऑपरेशन लोटस' का खतरा सता रहा है. मध्यप्रदेश और गोवा से लेकर मणिपुर तक कांग्रेस के विधायक टूट चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि कहीं बिहार में वैसी ही कहानी फिर से ना दोहराई जाए.

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नई दिल्ली:

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पाला बदला और महागठबंधन छोड़कर वो बीजेपी के साथ एनडीए में चले गए. अब 12 फरवरी को उन्हें विधानसभा में बहुमत हासिल करना है. इस बीच बाकी दलों के विधायक तो पटना में ही हैं, लेकिन कांग्रेस अपने विधायकों को लेकर तेलंगाना चली गई. वो विश्वास प्रस्ताव से एक दिन पहले पटना पहुंचने वाले हैं. आखिर विधायकों के टूटने की आशंका के पीछे कोई बड़ा सियासी खेल तो नहीं है.

बीजेपी ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपने दल में शामिल कराने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया है. इसके बाद विपक्षी दलों की टेंशन बढ़ गई है. बिहार में सियासी अफरातफरी का माहौल है, ऐसे में विधायकों के पाला बदलने का खतरा ज्यादा रहता है. इसी को देखते हुए कांग्रेस अपने विधायकों को बचाने की जद्दोजहद कर रही है.

बिहार में नीतीश सरकार को संख्या का संकट नहीं है. वो आसानी से विधानसभा में बहुमत साबित कर सकती है. लेकिन लोकसभा चुनाव नजदीक है. ऐसे में भी नेताओं का दल-बदल तेज हो जाता है. दूसरी पार्टियों को अपनी पार्टी में मिलाने से जनता में उस पार्टी को लेकर हवा बनाने में भी मदद मिलती है. पार्टी ऐसे में बढ़-चढ़कर जनता का विश्वास अपने पक्ष में दिखाने और चुनाव में बड़ी जीत का दावा करती है.

बिहार एनडीए में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन दूसरे नंबर की पार्टी जेडीयू के पास मुख्यमंत्री का पद है. बीजेपी के पास 74 तो वहीं जेडीयू के पास मात्र 43 विधायक हैं. ऐसे में जेडीयू पर विधायकों की संख्या में इतने बड़े अंतर का भी दबाव है. इसको देखते हुए भी जेडीयू कांग्रेस के विधायकों पर डोरे डाल रही है, ताकि बीजेपी के अप्रत्यक्ष दबाव को कम किया जा सके.

कांग्रेस बिहार में विधायकों को बचाने में जुटी है. अपने 14 विधायकों को लेकर वो तेलंगाना पहुंची है. बिहार कांग्रेस कह रही है कि वो रेवंत रेड्डी को बधाई देने गए हैं. वहीं तेलंगाना कांग्रेस कह रही है कि टूटने का डर था. तेलंगाना में रिसॉर्ट के एंट्री और एग्जिट गेट पर पुलिस का पहरा है. 12 फरवरी को नीतीश कुमार का विश्वास प्रस्ताव है, ऐसे में 11 फरवरी को कांग्रेस विधायक पटना पहुंचेंगे.

कांग्रेस को सता रहा है बिहार में विधायकों के टूटने का खतरा
पहले झारखंड से कांग्रेस विधायकों का जत्था हैदराबाद पहुंचा और अब बिहार से. विधायकों को किसी कांग्रेस शासित राज्य के रिसॉर्ट में सुरक्षित रखने की बात से सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस को बिहार और झारखंड में अपने विधायकों के टूटने का खतरा है. कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी ऐसा कर तो सकती है लेकिन हमें कोई डर नहीं है. जब डर नहीं है तो विधायकों को रातों रात पटना से हैदराबाद पहुंचाने की नौबत क्यों आई.

बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक
बिहार में कांग्रेस के कुल 19 विधायक हैं, जिनमें से तीन विधायक अलग-अलग कारणों से हैदराबाद नहीं गए. विक्रम से विधायक सिद्धार्थ ने अपने क्षेत्र की व्यस्तता का हवाला दिया तो वहीं विधायक दल के नेता शकील अहमद खान के घर में शादी है, इसलिए वो नहीं गए. जबकि अररिया के विधायक आबिदुर रहमान बीमारी की वजह से नहीं गए.

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हैदराबाद के पड़ोस के आरआर जिले के एक शानदार रिसॉर्ट में विधायकों के रहने का इंतजाम किया गया है. जिस रिसॉर्ट में इन्हें रखा गया है, उसके इंट्री और एग्जिट गेट पर पुलिस का पहरा है, ताकि दूसरा अंदर बाहर आ या जा ना सके.

बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष भले कह रहे हैं कि हमारे विधायक तो कर्टसी मुलाकात के लिए तेलंगाना गए हैं, लेकिन तेलंगाना से आने वाली कांग्रेस की नेता रेणुका चौधरी कह रही हैं कि बीजेपी हमारे विधायकों को तोड़ती है, तो हम उन्हें बचा रहे हैं. उन्होंने कहा हमारे विधायकों को सुरक्षित करने के बाद उनकी खरीद-फरोख्त की राजनीति को झटका लगा है. हम सरकार से खर्च नहीं करा रहे हैं. हम अपना पैसा खुद खर्च कर रहे हैं.

दरअसल कांग्रेस ने विधायकों के टूटने का दर्द मध्य प्रदेश में झेला था. पिछले विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में कांग्रेस भले ही बुरी तरह धुल गई, लेकिन 2018 में उसने सरकार बना ली थी. बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के जरिए कांग्रेस विधायकों को तोड़कर कमलनाथ की सरकार गिरवा दी थी. कांग्रेस उन अनुभवों को देखते हुए अपने विधायकों को बचाना चाहती है, ताकि 12 फरवरी को जब बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार अपना बहुमत साबित करें तो कांग्रेस के विधायक कहीं पाला ना बदल लें. लेकिन बीजेपी कह रही है कि पार्टी तोड़ना उसकी फितरत नहीं है.

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कांग्रेस की मानसिकता वंशवादी राजनीति की- विजय सिन्हा
बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि यह केवल कांग्रेस पार्टी की मानसिकता को दर्शाता है. कांग्रेस की मानसिकता वंशवादी राजनीति की है. उन्हें अपने विधायकों पर भरोसा करना चाहिए. वे अपने विधायकों के साथ मजदूरों जैसा व्यवहार कर रहे हैं. ये भाजपा का चरित्र नहीं है.

कांग्रेस को ऑपरेशन लोटस का खतरा सता रहा है. गोवा से लेकर मणिपुर तक कांग्रेस के विधायक टूट चुके हैं. फिर कांग्रेस को लगता है कि जब बिहार में मुख्यमंत्री का ही ठिकाना नहीं कि कब वो एनडीए के हो जाएं और कब महागठबंधन के तो विधायकों को बचाना जरूरी हो जाता है. हालांकि कांग्रेस कह तो यही रही है कि उसके विधायक एकजुट हैं.

कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि हमारे पास 19 विधायक हैं और वे एकजुट हैं. वे कांग्रेस और उसके नेतृत्व के साथ हैं. भाजपा सिर्फ कांग्रेस के बारे में आधारहीन अफवाहें फैलाती है.

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झारखंड के कांग्रेसी विधायक तो दो दिन में ही हैदराबाद का नजारा लेकर लौट आए, लेकिन बिहार के विधायक इस मामले में खुशकिस्मत हैं कि वो एक हफ्ते तक आराम करेंगे. क्योंकि नीतीश कुमार तो 12 फरवरी को बहुमत साबित करेंगे.

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