पिछले कई हफ्तों से मणिपुर में हालात तनावपूर्ण हैं, और गाहे-बगाहे हिंसक वारदात होती रही हैं, जिनमें अब तक 75-80 लोग जान गंवा चुके हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी राज्य का दौरा करने की योजना बनाई है, ताकि शांति बहाली के प्रयास किए जा सकें. लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि आखिर पूर्वोत्तर भारत के इस राज्य में अचानक ऐसा क्या हुआ, जिसने माहौल में आग लगा दी.
कब और क्यों शुरू हुई हिंसा...?
ऑल ट्राइबल्स स्टूडेंट्स यूनियन (मणिपुर) ने 3 मई को एक रैली का आयोजन किया था, जो मणिपुर हाईकोर्ट के अप्रैल में सुनाए गए उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ आयोजित की गई थी, जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने का आदेश दिया गया था.
अदालत के फ़ैसले का विरोध क्यों...?
पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य पहाड़ी और घाटी के इलाक़ों में बंटा हुआ है. पहाड़ी इलाक़ों में नागा, कुकी और मिज़ो जनजाति की आबादी ज़्यादा है, और घाटी में मैतेई समुदाय के लोगों की तादाद बड़ी है. मणिपुर को पहाड़ी इलाक़े वाला राज्य माना जाता है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में घाटी के मुक़ाबले बहुत कम आबादी रहती है.
मैतेई समुदाय की मांग और नागा, कुकी की तरफ़ से विरोध
मैतेई हमेशा से मांग करते रहे हैं कि उन्हें अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन नागा और कुकी समुदाय को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो उनका हक़ छिन जाएगा, क्योंकि राज्य में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी मैतेई समुदाय की ही है.
दरअसल, राज्य में मैतेई समुदाय के लोग राजनीतिक और आर्थिक तौर पर भी ज़्यादा ताकतवर हैं, और 60 सीट वाली मणिपुर विधानसभा में 40 सीटें घाटी से ही आती हैं, जहां मैतेई बहुतायत में हैं, और बाक़ी 20 सीटें पहाड़ी इलाक़ों में हैं. नागा, कुकी समुदाय मानते हैं कि अगर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिल गया, तो राज्य में ज़मीन के अधिकारों को लेकर संघर्ष बढ़ जाएगा और बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को इसका फ़ायदा मिलेगा. फिलहाल घाटी में रहने वाले लोग पहाड़ी इलाक़ों में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं, लेकिन अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बाद मैतेई ऐसा कर सकेंगे.
कुछ अन्य फ़ैसलों का भी हो रहा विरोध
राज्य सरकार का मानना है कि म्यांमार से गैरकानूनी तरीके से सीमा पार कर आ रहे लोग गैरकानूनी तरीके से ही मणिपुर के जंगलों में बसते जा रहे हैं, और इसके चलते सरकारी ज़मीनों, सुरक्षित जंगलों पर भी क़ब्ज़े हो रहे हैं. इसे रोकने के लिए सरकारी ज़मीनों और जंगलों से कब्ज़े ख़ाली करवाए गए, और कुकी समुदाय सरकार के इस फ़ैसले का विरोध कर रहा है. कुकी समुदाय राज्य सरकार के इस कदम को अपने ऊपर किया गया हमला मानता है, क्योंकि म्यांमार के शरणार्थियों और कुकी वंशावली का इतिहास साझा रहा है.
इसके अलावा, राज्य सरकार ने ड्रग माफिया पर लगाम लगाने के लिए भी कई फ़ैसले लिए, लेकिन कुछ स्थानीय समुदाय उसे भी रोज़गार पर किया गया हमला करार देते हैं. दरअसल, पहाड़ी इलाक़ों में अफ़ीम की खेती पर रोक लगाने के लिए सरकार लोगों को गिरफ़्तार करती आ रही है, और अफ़ीम की फसल को नष्ट करने के आदेश भी जारी किए गए थे. राज्य सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया गया, क्योंकि स्थानीय समुदाय इसे अपने रोज़गार से जोड़कर देख रहे हैं. बाद में, नष्ट की गई खेती के मुआवज़े का वादा भी राज्य सरकार ने पूरा नहीं किया, और इसे लेकर भी विरोध हुआ, जिसके दौरान अप्रैल में माहौल हिंसक हो गया था.
कैसे संभव है शांति की स्थापना...?
साफ़ है, अगर मणिपुर में शांति बहाल करनी है, तो बीच का कोई रास्ता निकालना होगा. मैतेई-बहुल राज्य में सरकार को भरोसा देना होगा कि वह हर फ़ैसले में नागा, कुकी और मिज़ो समुदाय के साथ भी खड़ी है. स्थानीय आदिवासी समुदायों में भी सरकार को भरोसा जगाना होगा, ताकि वे उग्र संगठनों के बहकावे में न आएं. नए उद्योग और रोज़गार के साधन बढ़ाने पर भी राज्य सरकार को ज़ोर देना होगा, ताकि ज़मीन को लेकर रोज़ हो रहे आपसी संघर्ष तो कम किया जा सके.