EXPLAINER: कैसे भारत के वैश्विक रिश्तों ने खालिस्तान विवाद में अलग-थलग कर डाला कनाडा को...

कनाडाई शहर ओटावा स्थित कार्लेटन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों, यानी इंटरनेशनल रिलेशन्स की प्रोफेसर स्टेफनी कार्विन का कहना है, "चीन से मुकाबला करने की खातिर पश्चिमी देशों के लिए भारत अहम है, कनाडा नहीं..."

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कनाडाई प्रोफेसर स्टेफनी कार्विन का कहना है, "चीन से मुकाबले की खातिर पश्चिमी देशों के लिए भारत अहम है, कनाडा नहीं..." (जस्टिन ट्रूडो का फ़ाइल फ़ोटो)
नई दिल्ली:

हाल ही में कनाडा ने दावा किया कि एक खालिस्तान-समर्थक सिख नेता की हत्या में भारतीय सरकारी एजेंटों का हाथ हो सकने की खुफिया जानकारी मिली है, और आमतौर पर इस तरह के आरोपों से सहयोगी देश भी आरोपित देश पर टूट पड़ते हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, और कनाडा अलग-थलग पड़ गया. इस बार, चूंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देश भारत को चीन के काउंटर के तौर पर देख रहे हैं, इसलिए कूटनीतिक रूप से कनाडा पीछे छूट गया है.

समाचार एजेंसी रॉयटर की एक ख़बर के मुताबिक, कनाडाई शहर ओटावा स्थित कार्लेटन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों, यानी इंटरनेशनल रिलेशन्स की प्रोफेसर स्टेफनी कार्विन का कहना है, "चीन से मुकाबला करने की खातिर पश्चिमी देशों के लिए भारत अहम है, कनाडा नहीं..."

फोन पर समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में प्रोफेसर स्टेफनी कार्विन ने कहा, "दरअसल, इसके चलते बाकी सभी पश्चिमी देशों की तुलना में कनाडा पीछे सरक गया है..."

सिर्फ़ चार करोड़ की आबादी वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को कहा था कि कनाडा अपने नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की जून में हुई हत्या में भारतीय एजेंटों की संभावित शिरकत के 'भरोसेमंद आरोपों' की जांच कर रहा है.

ठीक उसी वक्त कनाडा इस मुद्दे पर फाइव आइज़ इंटेलिजेंस शेयरिंग अलायन्स जैसे अहम सहयोगियों के साथ भी बातचीत कर रहा था. फाइव आइज़ इंटेलिजेंस शेयरिंग अलायन्स में कनाडा के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं.

लेकिन अब तक कनाडा के लिहाज़ से नतीजे फलदायक नहीं रहे हैं. ब्रिटेन ने भारत की सार्वजनिक आलोचना से इंकार कर दिया और कहा कि द्विपक्षीय व्यापार वार्ता जारी रहेगी. यहां तक कि इस मुद्दे पर विदेशमंत्री जेम्स क्लेवरली ने अपने बयान में भारत का नाम तक नहीं लिया.

लंदन स्थित चैथम हाउस थिंक टैंक से भारत विशेषज्ञ के रूप में जुड़े क्षितिज बाजपेयी का कहना है कि ब्रिटेन मुश्किल हालात से गुज़र रहा है, क्योंकि वह कनाडा का समर्थन करने और भारत की मुखाल्फत करने के बीच उलझा हुआ है. ब्रिटेन दरअसल चीन से मुकाबला करने में मदद के लिए भारत को व्यापारिक भागीदार और सहयोगी के रूप में चाहता है.

बाजपेयी ने कहा, "भारत की शिरकत का कोई ठोस सबूत न होने के चलते मुझे लगता है कि ब्रिटेन की प्रतिक्रिया चुप्पी ही रहने की संभावना है..." उन्होंने यह भी कहा कि अगर मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है, तो यह भारत और ब्रिटेन दोनों के लिए 'बड़ी राजनीतिक जीत' होगी.

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बेहद सीमित रह गए हैं कनाडा के विकल्प

दरअसल, कनाडा के सहयोगी मुल्क किसी भी तरह भारत की निंदा या संयुक्त रूप से निंदा करने के बारे में विचार तक करने के लिए तैयार नहीं हैं, सो, एक तरह से कनाडा के विकल्प बेहद सीमित दिखने लगे हैं, और यह हालात कम से कम तब तक बने रहेंगे, जब तक कनाडा कोई ठोस और अकाट्य सबूत पेश नहीं कर देता.

यह उस समय साफ़ हो गया था, जब 'वाशिंगटन पोस्ट' के अनुसार, जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में नई दिल्ली में आय़ोजित जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत की निंदा करने वाला संयुक्त बयान जारी करने पर ज़ोर दिया था, लेकिन US और अन्य मुल्कों ने इसे नामंज़ूर कर दिया था.

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हालांकि, व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन किर्बी ने कहा, "ऐसी ख़बरें कि अमेरिका ने कनाडा को दरकिनार कर दिया है, कतई झूठी हैं और अमेरिका कनाडा के साथ समन्वय और परामर्श जारी रखेंगे..."

कनाडा के नए आरोप पर बोलते हुए जॉन किर्बी का कहना था कि US 'बेहद चिंतित' है और उन्होंने भारतीय अधिकारियों से किसी भी जांच में सहयोग का आग्रह किया है. उधर, भारत ने हत्या में किसी भी तरह शामिल होने के आरोपों को सिरे से खारिज किया है.

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इस बार, भारत पर कनाडा के आरोप से जुड़े मामले में पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया बेहद हल्की है, यह वर्ष 2018 की उस घटना को याद करने से स्पष्ट हो जाता है, जब इंग्लैंड में रूसी डबल एजेंट सर्गेई स्क्रिपाल और उसकी बेटी यूलिया को नर्व एजेंट के ज़रिये ज़हर देकर मारा डाला गया था, और उसके बाद ज़ोरदार हंगामा हुआ था. उस वक्त ब्रिटेन, US, कनाडा और अन्य पश्चिमी देशों ने रूस को सबक सिखाने के लिए उसके 100 से ज़्यादा राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था, जबकि रूस हमेशा इस आरोप से इंकार करता रहा था.

"चीन से तनाव के चलते भारत के ख़िलाफ़ नहीं जाना चाहते फ़ाइव आइज़ मुल्क..."

कनाडा में ओंटारियो के वाटरलू स्थित सेंटर फ़ॉर इंटरनेशनल गवर्नेन्स इनोवेशन थिंक टैंक के वेस्ले वार्क का कहना है, "चीन के साथ जारी तनाव के मद्देनज़र, हर मुल्क भारत से रिश्तों को बढ़ाना चाहता है, और असलियत यह है कि इसी वजह से फ़ाइव आइज़ पार्टनर मुल्क इसमें (कनाडा के इस आरोप में) शामिल होने के इच्छुक नहीं हैं..."

वेस्ले वार्क ने कहा, "यह अब 'इंतज़ार करो और देखो' जैसा खेल बन गया है... अगर कनाडा हत्या की कोशिश के मामले में भारत की शिरकत के ठोस सबूत लेकर आ जाता है, तो मेरे खयाल से हमारे सहयोगी हमारे समर्थन में कुछ कहेंगे..."

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सहयोगी साथ न आए, तो कुछ नहीं कर पाएगा कनाडा : पूर्व इंटेलिजेंस प्रमुख

इस बीच, कनाडा की सिक्योरिटी इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व प्रमुख रिचर्ड फैडन का भी कहना है, "अगर हमारे सहयोगियों ने हमारा साथ न दिया, चाहे सार्वजनिक रूप से हो या निजी रूप से, तो भारत को झुकाने के मामले में कनाडा खास कुछ हासिल नहीं कर पाएगा..."

समाचार चैनल CTV से बात करते हुए रिचर्ड फैडन ने कहा, "मेरे खयाल से फिलहाल, चाहे फौरी या कुछ वक्त के लिए, हम जो हासिल कर सकते हैं, वह सिर्फ़ इतना है कि भारत ऐसा कुछ न दोहराए..."

कनाडा ने भी मजबूरी में बयान दिया था : सरकारी सूत्र

इस बीच, कनाडा सरकार के सूत्रों ने भी इशारा किया है भारत के बारे में बयान जारी करने से पहले वे भी कुछ और इंतज़ार करना चाहते थे, लेकिन चूंकि कुछ स्थानीय मीडिया हाउस इस ख़बर को ब्रेक करने वाले थे, इसलिए महसूस किया गया, कि बयान देना ज़रूरी हो गया है.

इनमें से एक सूत्र ने यह भी कहा, "अगर हमारे पास तथ्यों के बूते हासिल हुई जानकारी न होती, तो जस्टिन ट्रूडो कभी इस पर नहीं बोले होते..." सूत्र के अनुसार, उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही ज़्यादा जानकारी हासिल होगी.

समाचार एजेंसी रॉयटर के मुताबिक, इस हत्या के सिलसिले में एक वरिष्ठ सूत्र ने बताया कि कनाडा ने अपनी खुफिया जानकारी को ज़ाहिर नहीं किया है, क्योंकि हत्या की जांच अब भी जारी है.

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