अब 'एक देश, एक चुनाव' नीति या एक साथ राष्ट्रव्यापी चुनाव करवाने की संभावना की परख पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली नई समिति द्वारा की जाएगी. केंद्र सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र आहूत किए जाने की गुरुवार को की गई घोषणा से अटकलें ज़ोर पकड़ने लगी थीं कि सरकार 'एक देश, एक चुनाव' के लिए विधेयक पेश कर सकती है.
सूत्रों के मुताबिक, पूरे देश में, यानी केंद्र और राज्यों में, एक ही बार में एक साथ चुनाव कराने की कवायद की तरफ़ आगे कदम बढ़ाने में काफ़ी ज़्यादा वक्त लग सकता है.
उदाहरण के लिए, इसके लिए कम से कम चार संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी. संविधान के जिन अनुच्छेदों में संशोधन की ज़रूरत पड़ेगी, वे हैं...
- अनुच्छेद 83 (2): इसमें कहा गया है कि लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए, हालांकि इसे समय से पहले भंग किया जा सकता है.
- अनुच्छेद 85 (2) (बी): लोकसभा को भंग कर देने से मौजूदा सदन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और नए सदन का गठन आम चुनाव के बाद ही होता है.
- अनुच्छेद 172 (1): एक राज्य विधानसभा भी पांच साल तक अस्तित्व में रहती है, जब तक कि उसे समय से पहले भंग न कर दिया जाए.
- अनुच्छेद 174 (2) (बी) - राज्यपाल के पास कैबिनेट की सलाह पर विधानसभा को भंग करने की शक्ति होती है. राज्यपाल स्वविवेक का प्रयोग कर सकते हैं, यदि सलाह ऐसे मुख्यमंत्री से मिले, जिसका बहुमत संदेह में हो.
किसी भी संवैधानिक संशोधन को मंज़ूरी देने के लिए सदन के दो-तिहाई सदस्यों को मतदान के लिए उपस्थित होना चाहिए.
भले ही लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने के लिए संविधान में संशोधन कर लिया जाए, फिर भी देश को भारी संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी. इस तरह चुनाव आयोजित करने के लिए भारत में 25 लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM) और 25 लाख VVPAT (वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) की ज़रूरत पड़ेगी, जबकि फ़िलहाल चुनाव आयोग मौजूदा प्रणाली से चुनाव करवाने के लिए ही संघर्ष करता रहता है, क्योंकि उनके पास 12 लाख से कुछ ही ज़्यादा EVM मौजूद हैं.
वर्ष 1967 तक भारतभर में एक साथ चुनाव कराए जाने का चलन रहा है, और देश में चार बार चुनाव इसी तरह हुए थे. वर्ष 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर देने की वजह से यह चलन खत्म हो गया. लोकसभा भी पहली बार वर्ष 1970 में तय समय से एक साल पहले भंग कर दी गई थी, और उसके बाद 1971 में मध्यावधि चुनाव भी हो गए थे.
वर्ष 2014 के अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ करवाने की दिशा में काम करने का वादा किया था.