Explained: कैसे चंद्रयान-3 भारत को खास सूची में कर सकता है शामिल, यहां जानें

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ को विश्वास है कि चंद्रयान-3 मिशन, जो कल दोपहर 2.35 बजे श्रीहरिकोटा से रवाना होने वाला है, भारत को उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल कर सकता है जिन्होंने चंद्रमा पर नियंत्रित लैंडिंग हासिल की है.

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प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

श्रीहरिकोटा से जब चंद्रयान-3 मिशन को ले जाने वाला रॉकेट कल दोपहर उड़ान भरेगा, तो भारत पहले मिशन की शानदार सफलता को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा, जिसने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि की. साथ ही दूसरे मिशन की गलतियों से बचने की उम्मीद करेगा जब लैंडर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. 

चंद्रयान-1, चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन, अक्टूबर 2008 में लॉन्च किया गया और अगस्त 2009 तक चालू रहा. इसने अपने चंद्रमा प्रभाव जांच का उपयोग करके चंद्र सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि करके सेलेस्टियल बॉडी के बारे में मानवता की समझ को बदल दिया. 

अगला मिशन, चंद्रयान-2, जुलाई 2019 में लॉन्च हुआ और अगस्त में चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा. 6 सितंबर को उतरने का प्रयास करते समय लैंडर नियोजित प्रक्षेपवक्र से भटक गया और उसे हैंड लैंडिंग का सामना करना पड़ा. हालांकि, ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों ओर बहुत स्वस्थ स्थिति में काम कर रहा है और इसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बहुत सारा डेटा प्रदान किया है, जिससे चंद्रयान -3 मिशन में मदद मिलने की उम्मीद है.

इसरो प्रमुख एस सोमनाथ को विश्वास है कि चंद्रयान-3 मिशन, जो कल दोपहर 2.35 बजे श्रीहरिकोटा से रवाना होने वाला है, भारत को उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल कर सकता है जिन्होंने चंद्रमा पर नियंत्रित लैंडिंग हासिल की है. मौजूदा समय में, उस सूची में केवल तीन देश हैं - रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन. 

मिशन के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं : चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना; चंद्रमा पर रोवर की घूमने की क्षमताओं को प्रदर्शित करना और वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना.

चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा रॉकेट लॉन्च व्हीकल मार्क III (LVM-III) है, जिसे पहले जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III कहा जाता है.

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प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा की कक्षा में ले जाएगा. फिर लैंडर अगस्त, 23 के आसपास चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास धीरे से उतरेगा और रोवर को तैनात करेगा. 

लैंडर और रोवर दोनों पर वैज्ञानिक प्रयोग हैं और इसरो को उम्मीद है कि वह उन सभी को अंजाम देने में सक्षम होगा, लेकिन महत्वपूर्ण बात सॉफ्ट लैंडिंग है. लैंडर में कई बदलाव किए गए हैं, जिनमें से एक बड़ा बदलाव यह है कि पैरों को और अधिक मजबूत बनाया गया है. 

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जबकि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर में पांच इंजन थे, जिससे विसंगतियां पैदा हुईं, चंद्रयान-3 के लैंडर में केवल चार इंजन होंगे, जो इसे अधिक स्थिरता दे सकता है. साथ ही सॉफ़्टवेयर में सुधार किया गया है और हार्डवेयर तथा सॉफ़्टवेयर दोनों का कठोर परीक्षण किया गया है. 

सोमनाथ ने कहा कि नए मिशन को कुछ तत्वों के विफल होने पर भी सफलतापूर्वक लैंडिंग के लिए डिज़ाइन किया गया है. सेंसर विफलता, इंजन विफलता, एल्गोरिदम विफलता और गणना विफलता सहित कई परिदृश्यों की जांच की गई और उनका मुकाबला करने के लिए उपाय विकसित किए गए. 

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लैंडर और रोवर का जीवन एक चंद्र दिवस - पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर - होने की उम्मीद है और वे चंद्रयान -2 पर अपने पूर्ववर्तियों के समान उपकरण ले जाएंगे. 

जबकि लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह और वातावरण का अध्ययन करेंगे, ऑर्बिटर पेल ब्लू डॉट पर जीवन के संकेतों को देखने के लिए अपना ध्यान पृथ्वी पर केंद्रित करेगा ताकि यह एक्सोप्लैनेट (सौर मंडल से परे ग्रह) की खोज में सहायता कर सके जो जीवन का समर्थन कर सकता है. 

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