Exclusive: जेल से रिहा हुए पत्रकार मनदीप पुनिया, पैरों पर ख़बर लिख लाए! NDTV से खास बातचीत

मनदीप पुनिया ने कहा- मेरे जैसे जिन लोगों को जेल में बंद किया गया है उनको फ्री किया जाए, चाहे कंपन सिद्दीकी साहब हों या फिर कोई और पत्रकार

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पत्रकार मनदीप पुनिया.

नई दिल्ली:

तिहाड़ जेल से रिहा होने के बाद पत्रकार (Journalist) मनदीप पुनिया (Mandeep Punia) ने NDTV से खास बातचीत की. मनदीप पुनिया ने कहा कि जेल (Jail) से निकलकर सबसे पहली बात मेरे मन में आ रही है कि मेरे जैसे जिन लोगों को जेल में बंद किया गया है उनको फ्री किया जाए, चाहे कंपन सिद्दीकी साहब हों या फिर कोई और पत्रकार हों, जो गांव और रूरल इंडिया में रिपोर्ट करते हैं, ग्राउंड से रिपोर्ट करते हैं. आज के समय में सबसे मुश्किल काम ग्राउंड से रिपोर्ट करना होता है. मुझको रोका गया और जेल में डाल दिया गया. लेकिन मैंने तो जेल को भी अपना बना लिया और जेल से भी मैं रिपोर्ट कर सकता हूं. और एक रिपोर्ट मैं लेकर आया हूं जल्द पब्लिश करूंगा.

सवाल: आपके ऊपर आरोप है कि आपने पुलिस वालों के साथ बदसलूकी की, मारपीट की. आपका पक्ष क्या है?
मनदीप- सारा मामला अब कोर्ट में है ऐसे में यह सारे लीगल पेंच हैं. इस पर बात बाद में करेंगे, वैसे मैं वहां पर खड़ा था और पुलिस ने मुझे खींचा था. मैं अपने वकीलों से चर्चा करके बात रखूंगा और बाकी वीडियो आपके सामने है ही.

सवाल: आप जेल के अंदर अपने पैरों पर कुछ लिखकर लाए हैं वह दिखाइए (मनदीप के पास जेल के अंदर नोट बनाने के लिए कागज नहीं थे तो उन्होंने अपने पैर पर ही नोट बना लिए हैं).
मनदीप- मैंने अपने पैरों पर जर्नलिस्टिक नोट लिखे हैं जो हम पत्रकार अपने नोट बनाते हैं. तो अंदर मैंने किसानों से जो बातचीत की उनके नाम हैं, और जो बातें उन्होंने कही हैं मैं वह सब अपने पैरों पर लिख कर लाया हूं ताकि कल को मैं अपनी रिपोर्ट को लेकर आऊं. ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करना मेरा काम है तो मुझको तिहाड़ जेल में मौका मिला है जो किसान जेल में बंद थे उनसे मैंने बात की और उनसे पूछा कि उनका क्या कहना है उनको कैसे उठाया गया?

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सवाल- आपके ऊपर FIR हो गई आपके ऊपर केस हो गया, तो ऐसे में क्या आपको लगता है कल को पत्रकारिता से जुड़े संस्थान आपको नौकरी देने में हिचकिचा सकते हैं.
मनदीप- मैं पहले भी स्वतंत्र पत्रकार था. मैं सिलेक्टेड एडिटर्स के साथ काम करता हूं उन एडिटर्स के साथ काम करता हूं जिनके पास जर्नलिस्टिक वैल्यू हैं, जो जर्नलिज्म के साथ खड़े होते हैं. मैं तो पहले भी फ्रीलांस ही था और आगे भी स्वतंत्र पत्रकारिता ही करूंगा, क्योंकि मुझे लगता है कि जो ग्राउंड जीरो है, वहां से रिपोर्ट करना बहुत जरूरी है और दिल्ली में जो पत्रकारिता के संस्थान है वो ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट करने का मौका नहीं देते. गांव देहात में रिपोर्ट करने का मौका नहीं देते.

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सवाल- अभी तक आप इंटरव्यू करते थे आज आपका इंटरव्यू हो रहा है कभी सोचा था आपने? 
मनदीप- मैंने पहले कभी नहीं सोचा था क्योंकि मैं तो कैमरे के हमेशा ही उस तरफ रहा हूं. इंडिया में जिसको स्लो जर्नलिज्म कहा जाता है वह मैं करता रहा हूं. गांव देहात में बैठकर एक हफ्ते में एक रिपोर्ट लिखना मेरा काम रहा है. मैं लॉन्ग फॉर्मेट स्टोरी करता हूं. आप देखेंगे कि मेरी स्टोरी लंबी लंबी होती हैं. लेकिन सरकार ने मुझे इतना दबाया कि मैं आपके सामने हूं.

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