आज भी देश में हर 3 मिनट में एक 'बालिका वधू', हैरान-परेशान कर रही यह रिपोर्ट

रिपोर्ट में कहा गया है, "2022 में, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अदालतों में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कुल 3,563 बाल विवाह मामलों में से, केवल 181 मामलों में ही सुनवाई पूरी होने तक सफलतापूर्वक निपटारा किया गया." लंबित मामलों की दर 92% है, दोषसिद्धि दर 11% है. 

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भारत में बाल विवाह बड़ी समस्या
नई दिल्ली:

हमारे देश में बाल विवाह कितनी बड़ी समस्या है, ये किसी से छिपा नहीं है. तमाम कोशिशों और पहल के बावजूद भी देश में बाल विवाह हो रहे हैं. ‘‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन'' के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवार्ड्स जस्टिस : इंडिंग चाइल्ड मैरेज' जारी की गई. जिसमें बताया गया कि भारत में हर मिनट तीन बच्चियों की जबरन शादी कर दी जाती है. साल 2022 में देश भर में प्रति दिन केवल तीन मामले दर्ज किए गए. जबकि ज्यादातर मामलों में, दूल्हे की उम्र 21 वर्ष से अधिक थी. रिपोर्ट में जनगणना 2011, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, 2018-2022 के लिए एनसीआरबी के आंकड़ों में 3,863 बाल विवाह दर्ज हैं. लेकिन, जैसा कि अध्ययन बताता है, जनगणना के अनुमानों के अनुसार, हर साल 16 लाख बाल विवाह होते हैं.

असम में बाल विवाह में आई कमी

इसका मतलब है कि हर दिन 4,000 से अधिक बाल विवाह होते हैं. एनएफएचएस-5 के अनुमान बताते हैं कि 20-24 आयु वर्ग की 23.3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई थी. बाल विवाह पर अंकुश लगाने के मामले में असम केस स्टडी की रिपोर्ट कहती है, 2021-22 और 2023-24 के बीच राज्य के 20 जिलों के 1,132 गांवों में बाल विवाह में 81% की गिरावट आई है. पूर्ण संख्या में, यह गिरावट 2021-22 में 3,225 मामलों से 2023-24 में 627 तक है. पिछले साल इस अपराध के लिए 3,000 से अधिक गिरफ्तारियां हुई थीं. इन गांवों में किए गए एक सर्वेक्षण में, 98% का मानना ​​​​था कि राज्य का सख्त कानून बाल विवाह की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण है.

लंबित मामलों की दर ज्यादा

रिपोर्ट कहती है कि अदालतों में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे और सजा की खराब दर उन लोगों को प्रोत्साहित करती है जो लड़कियों की शादी करने के इरादे से ऐसा करते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, "2022 में, बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत अदालतों में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कुल 3,563 बाल विवाह मामलों में से, केवल 181 मामलों में ही सुनवाई पूरी होने तक सफलतापूर्वक निपटारा किया गया." लंबित मामलों की दर 92% है, दोषसिद्धि दर 11% है. असम का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के प्रमुख प्रियंक कानूनगो और ‘बाल विवाह मुक्त भारत' (सीएमएफआई) के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि पूर्वोत्तर के इस राज्य का मॉडल सभी राज्यों में लागू होना चाहिए.

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बाल विवाह को लेकर असम सरकार सख्त

असम की सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया है. असम मंत्रिमंडल ने कुछ महीने पहले यह फैसला किया था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने वालों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. असम में इस सिलसिले में हजारों प्राथमिकी दर्ज कर बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया है. कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने असम सरकार पर बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है.

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असम के 30 % गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है. इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं.'' इसके मुताबिक, असम सरकार के अभियान के कारण राज्य के 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के इन 20 में से 12 जिलों के 90 प्रतिशत लोगों ने इस बात पर भरोसा जताया कि इस तरह के मामलों में प्राथमिकी और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाई से बाल विवाह को कारगर तरीके से रोका जा सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ, यानी लंबित मामलों की दर 92 प्रतिशत है. मौजूदा दर के हिसाब से इन 3,365 मामलों के निपटारे में 19 साल का समय लगेगा.''

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‘बाल विवाह मुक्त भारत' के संस्थापक भुवन ऋभु ने रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए कहा, “असम ने यह दिखाया है कि निवारक उपायों के तौर पर कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता का संदेश पहुंचाने में सबसे प्रभावी औजार है. आज असम में 98 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अभियोजन बाल विवाह को समाप्त करने की कुंजी है. बाल विवाह मुक्त भारत बनाने के लिए असम का यह संदेश पूरे देश में फैलना चाहिए.'' उनका कहना था कि भारत को दुनिया को यह दिखाना होगा कि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना तभी संभव है जब हम अगले दस साल में बाल विवाह मुक्त दुनिया के निर्माण के लिए ठोस और प्रभावी कानूनी कदम उठाएं.

(भाषा इनपुट्स के साथ)

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