मद्रास उच्च न्यायालय ने अन्नाद्रमुक की आम परिषद की आज होने वाली बैठक में एकल नेतृत्व के फार्मूले से संबंधित प्रस्ताव पर किसी भी तरह का फैसला लेने पर रोक लगा दी है. कोर्ट के इस फैसले को पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी पलानीस्वामी के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है. डिवीजन बेंच ने देर रात की सुनवाई के बाद फैसला सुनाया कि पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था केवल पहले से सूचीबद्ध 23 प्रस्तावों को ही अपना सकती है.
दरअसल, याचिकाकर्ताओं में से एक ने कल अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसने इस तरह के एक फैसले को पारित करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने पार्टी के आंतरिक चुनावों को चुनौती दी है, और वे चाहते हैं कि उनके मामले के निपटारे से पहले नेतृत्व पर कोई निर्णय न लिया जाए.
कल कोर्ट ने जनरल काउंसिल की बैठक पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. इसने ईपीएस के लिए उम्मीद जगाई थी, जिनकी नजर पार्टी के महासचिव पद पर है. हालांकि, उनके प्रतिद्वंद्वी और पार्टी के वर्तमान महासचिव पनीरसेल्वम या ओपीएस चाहते हैं कि पार्टी में दोहरे नेतृत्व का प्रारूप जारी रहे. कल, अदालत में ओपीएस के वकीलों ने तर्क दिया कि वह पहले से प्रस्तुत किए गए 23 के अलावा सामान्य परिषद में किसी भी संशोधन या प्रस्तावों की अनुमति नहीं देंगे.
हालांकि, ईपीएस के वकीलों ने तर्क दिया कि इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती है, क्योंकि चर्चा इस आधार पर होती है कि सदस्य क्या सोचते हैं. सामान्य परिषद के एक अन्य सदस्य ने बैठक पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि इसका एजेंडा साझा नहीं किया गया है. दरअसल, ये पूरा मसला पिछले हफ्ते तब शुरू हुआ जब ईपीएस के समर्थकों ने जिला सचिवों की बैठक में उनके नेतृत्व में एकल नेतृत्व के विचार का प्रस्ताव रखा.
हालांकि, ओपीएस चाहते थे कि नेतृत्व का मार्गदर्शन करने के लिए पार्टी के संस्थापक एमजीआर और जयललिता के साथ काम करने वाले वरिष्ठ नेताओं की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाए. उन्होंने तर्क दिया, कि जयललिता की मृत्यु के बाद पार्टी की सामान्य परिषद ने दोहरे नेतृत्व मॉडल को विकसित किया था और दिवंगत जयललिता को पार्टी का शाश्वत महासचिव घोषित किया था. उन्होंने कहा कि अब उसमें कोई भी संशोधन करना "विश्वासघात" होगा.
जयललिता ने दो बार ओपीएस को अपना स्टैंड-इन मुख्यमंत्री बनने के लिए चुना था, जब उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद पद छोड़ना पड़ा था. यद्यपि ओपीएस को उनकी मृत्यु से ठीक पहले तीसरी बार पदोन्नत किया गया था, जयललिता की सहयोगी वीके शशिकला, जिन्होंने कुछ समय के लिए पार्टी की कमान संभाली, ने उनके खिलाफ विद्रोह करने के बाद उन्हें ईपीएस से बदल दिया.
हालांकि, दोनों नेताओं ने समझौता किया और शशिकला को जेल में रहने के दौरान निष्कासित कर दिया. ओपीएस पार्टी में नंबर वन बने और ईपीएस डिप्टी. सरकार में ओपीएस मुख्यमंत्री बने ईपीएस डिप्टी. मुख्यमंत्री के रूप में अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान, ईपीएस ने अपनी स्थिति मजबूत की और पार्टी को अपने नियंत्रण में ले लिया.
एनडीटीवी से बात करते हुए, वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डी जयकुमार ने कहा, "पार्टी के रैंक और फाइल ईपीएस को महासचिव बनाना चाहते हैं. हम एक प्रस्ताव लाएंगे. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि इस कदम से पार्टी में फूट पड़ सकती है और कहा कि एकमात्र नेतृत्व "समय की आवश्यकता" है. हालांकि, कोर्ट ने फिलहाल इस संबंङ में किसी तरह का निर्णय लेने पर रोक लगा दी है, जिससे ओपीएस खेमे में खुशी की लहर है.
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