मिग-21 को भावुक विदाई, दशकों पहले इसे उड़ाने वाले पायलटों ने जानें क्या कहा?

स्क्वाड्रन संख्या 23 के कमांडिंग ऑफिसर, ग्रुप कैप्टन नंदा राजेंद्र ने मिग-21 और मिग-21 बाइसन विमान उड़ाए हैं. उन्होंने कहा, '1965 और 1971 के युद्ध में सबसे उन्नत लड़ाकू विमान होने के साथ ही, यह भारत की सभी सैन्य कार्रवाइयों में अग्रणी रहा है.

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मिग-21 उड़ाने वाले पायलटों की चुनौतियां सुनिए.
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  • मिग-21 ने भारतीय वायु सेना में छह दशक से अधिक समय तक सेवा दी और कई युद्ध अभियानों में भाग लिया.
  • मिग-21 के शुुरुआती दौर में न तो कोई ट्रेनर था और न ही सिम्युलेटर, जिससे पायलटों को काफी चुनौतियां झेलनी पड़ीं.
  • मिग-21 का विदाई समारोह चंडीगढ़ में हुआ, जहां इसे भारतीय वायु सेना की रीढ़ के रूप में सम्मानित किया गया.
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भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान मिग-21 ने शुक्रवार को आखिरी बार आसमान में उड़ान भरी और अपने पीछे एक अमिट विरासत और अनगिनत कहानियां छोड़ गया. दशकों से सोवियत युग की इन मशीनों को उड़ाने वाले पायलटों के लिए भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के इस कुशल विमान को विदाई देना आसान नहीं था. अनुभवी पायलट और पूर्व भारतीय वायुसेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल ए वाई टिपनिस (सेवानिवृत्त) का कहना है कि मिग-21 ने 'हमें नवोन्मेषी होना और परिणाम हासिल करना सिखाया.'

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मिग-21 की चुनौतियों को किया याद

चंडीगढ़ में भव्य विदाई समारोह से एक दिन पहले भारतीय वायुसेना द्वारा सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर साझा किए गए एक रिकॉर्डेड वीडियो पॉडकास्ट में, टिपनिस ने उन चुनौतियों को याद किया जिनका सामना उन्हें और मिग-21 विमान उड़ाने वाले अन्य पायलटों को तब करना पड़ा जब इसे शामिल किया गया था.

टिपनिस ने 1960 में एक लड़ाकू पायलट के रूप में शुरुआत की और जल्द ही वह मिग-21 स्क्वाड्रन का हिस्सा बन गए. भारतीय वायुसेना की वेबसाइट के अनुसार, जुलाई 1977 में, उन्होंने मिग-21 बाइसन विमान वाले नंबर 23 स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर का पदभार संभाला था.

न कोई ट्रेनर था, न कोई सिम्युलेटर

पुरानी यादें ताजा करते हुए उन्होंने बताया 'जब मिग-21 हमारे पास आया, तो सबसे पहले टाइप-74 आया, उस समय कोई ट्रेनर नहीं थे. पहली तैयारी मिग-21 पर ही थी. मुश्किल यह थी कि न कोई ट्रेनर था, न कोई सिम्युलेटर, और तो और पूरे कॉकपिट में, कुछ भी अंग्रेज़ी में नहीं लिखा था, सब कुछ रूसी में था.'

इस अनुभवी वायु सैनिक ने बताया कि उनके लिए गति मापने की इकाई भी अचानक नॉट से किमी/घंटा'' में बदल गई और यह भी एक चुनौती थी क्योंकि पायलट ‘‘नॉट के आदी थे.उन्होंने कहा कि पहले पहले तो विमान में, आप अधिकतर भ्रमित रहते हैं, जब तक कि आप वापस नहीं आ जाते और आपको पता नहीं होता कि इसे कैसे संभालना है, कुछ भी आसान नहीं होता.

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गर्दन को एक से दूसरी तरफ हिलाना भी मुश्किल था

पूर्व शीर्ष भारतीय वायुसेना अधिकारी टिपनिस ने दिसंबर 1998 से दिसंबर 2001 तक वायु सेना प्रमुख के रूप में कार्य किया. उन्होंने यह भी बताया कि 'मिग-21 में, हम सभी स्पेससूट में उड़ान भर रहे थे.'उन्होंने बताया कि जब अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन अंतरिक्ष में गए थे, तो उन्होंने पहली बार अकेले उड़ान भरने के लिए वही प्रेशर सूट और प्रेशर हेलमेट पहना था.टिपनिस ने याद करते हुए कहा कि वे लोग अपनी गर्दन को एक तरफ से दूसरी तरफ बड़ी मुश्किल से हिला पाते थे.

मिग-21 का विदाई समारोह शुक्रवार को चंडीगढ़ में आयोजित किया गया, जहां छह दशक से भी पहले इस प्रतिष्ठित विमान को पहली बार वायु सेना में शामिल किया गया था. लंबे समय से वायु सेना के बेड़े में इन विमानों का बड़ा हिस्सा रहा है. अतीत में कई रूस निर्मित लड़ाकू मिग-21 विमान दुर्घटनाओं और जान-माल के नुकसान का शिकार रहे हैं, जिसके कारण इन विमानों को 'उड़ते ताबूत' भी कहा गया.

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विमान के लिए 'उड़ता ताबूत' जैसे शब्दों का इस्तेमाल सही नहीं

एक पूर्व भारतीय वायुसेना पायलट ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि दुर्घटनाओं से जुड़े किसी भी विमान के लिए 'उड़ता ताबूत' जैसे शब्दों का इस्तेमाल उचित नहीं है. उन्होंने कहा, 'पायलट द्वारा उड़ाए जा रहे विमान के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने से पायलटों के परिवार के सदस्यों का मनोबल भी गिरता है.'

पायलट ने यह भी बताया कि मिग-21 ने 1965 और 1971 के युद्धों, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट हमले में भी हिस्सा लिया था. वायुसेना प्रमुख के रूप में, एयर चीफ मार्शल टिपनिस ने 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर की अगुवाई की थी, जो उस संघर्ष के दौरान वायु सेना का महत्वपूर्ण अभियान था.

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अनुभवी और वर्तमान वायु सेना पायलट इस बात पर सहमत हैं कि मिग-21 ऐसे जेट थे जिन्होंने 'पायलटों की पीढ़ियों को एक तरह से परिभाषित किया, उन्हें बहुत कुछ सिखाया जिस पर वे हमेशा गर्व कर सकते हैं' टिपनिस ने कहा कि भारतीय वायुसेना के पायलटों ने अपनी चपलता, कौशल और अनुकूलता का इस्तेमाल किया, क्योंकि इसे ऊंचाई पर उड़ान भरने के लिए बनाया गया था, लेकिन, हमने इसका इस्तेमाल हमले के लिए करना शुरू कर दिया, और मुझे लगता है, यह भारतीय वायुसेना के लिए बहुत कुछ कहता है.

किसी भी तरह से, मिग-21 को निचली उड़ान के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था, क्योंकि आगे और बगल की दृश्यता सीमित है. भारतीय वायुसेना ने जिस तरह से रात में निचली उड़ान के लिए खुद को ढाला, वह एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी. इस उद्देश्य के लिए अनुकूलन उत्कृष्ट था.

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मिग-21 "भारतीय वायुसेना की रीढ़"

पॉडकास्ट में एयर कमोडोर नितिन साठे (सेवानिवृत्त) ने कहा कि छह दशकों से भी ज़्यादा समय से, मिग-21 "भारतीय वायुसेना की रीढ़" और "एक प्रतीक, युद्ध और शांति में एक विश्वसनीय साथी, और लड़ाकू पायलटों की पीढ़ियों के लिए एक परीक्षण स्थल" रहा है.

स्क्वाड्रन संख्या 23 से संबंधित और "पैंथर्स" उपनाम से जाने जाने वाले अंतिम मिग-21 जेट को चंडीगढ़ वायुसेना स्टेशन पर आयोजित समारोह में विदाई दी गई.

प्रतीकात्मक विदाई के तहत, भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने 18-19 अगस्त को नाल एयर बेस से मिग-21 की एकल उड़ानें भरीं, जो वायुसेना और 62 वर्षों तक वायुसेना की सेवा करने वाले रूसी मूल के इस लड़ाकू जेट पर प्रशिक्षित पायलटों की पीढ़ियों के लिए एक भावुक क्षण था.

ऑपरेशन सिंदूर में निभई अहम भूमिका

स्क्वाड्रन संख्या 23 के कमांडिंग ऑफिसर, ग्रुप कैप्टन नंदा राजेंद्र ने मिग-21 और मिग-21 बाइसन विमान उड़ाए हैं. उन्होंने कहा, '1965 और 1971 के युद्ध में सबसे उन्नत लड़ाकू विमान होने के साथ ही, यह भारत की सभी सैन्य कार्रवाइयों में अग्रणी रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी, यह एक विरासती लड़ाकू विमान था, हालांकि, इसे ओआरपी (ऑपरेशनल रेडीनेस प्लेटफॉर्म) कर्तव्यों के लिए नियुक्त किया गया था, और जरूरत पड़ने पर हम आसमान की रक्षा के लिए तैयार थे.'

पॉडकास्ट में, एयर कमोडोर साठे (सेवानिवृत्त) ने दिवंगत वयोवृद्ध वायु सैनिक पीसी. लाल (जो बाद में भारतीय वायुसेना प्रमुख बने) को उद्धृत किया, जिन्होंने कहा था, "मिग-21 ने भारतीय वायुसेना को ऐसे पंख दिए जो पहले कभी नहीं मिले थे.बता दें कि भारतीय वायु सेना का मिग-21, देश का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान है जिसके 1960 के दशक की शुरुआत में वायु सेना में शामिल होने से यह बल जेट युग में प्रवेश कर गया.

इनपुट-भाषा

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