पिछले एक साल में कोटा में सुसाइड के कारण मौतें हो रही हैं. ऐसा क्या हो रहा है कोटा में कि यहां सपने रुला रहे हैं. राजस्थान का कोटा एक ऐसा शहर है जो बच्चों को सपने दिखाता है. कामयाबी के सपने, डॉक्टर और इजीनियर बनने के सपने..समाज में कुछ बड़ा मुकाम हासिल करने के सपने... इन सपनों के साथ-साथ ही जुड़ी होती हैं बच्चों के माता-पिता की महत्वाकांक्षाएं.
कई अभिभावक तो अपनी जिंदगी के अधूरे ख्वाबों का बोझ भी इन बच्चों पर डाल देते हैं. और फिर कोटा की कोचिग संस्थाएं खुद इन सपनों को और बढ़ा चढ़ाकर बेचती हैं. कामयाबी और शोहरत से जुड़े होर्डिंग्स सपनों की इस होड़ को एक अंधी दौड़ में बदल देते हैं. ऐसी अंधी दौड़ जिसमें मुनाफा तो कोचिंग संस्थाओं का होता है और दबाव आ जाता है कम उम्र के नाजुक दिलोदिमाग पर.
एक छात्रा ने कहा, आईआईटी के लिए कर रही हूं. और मुझे वो तो चाहिए, जैसे भी हो करके रहूंगी. उसके लिए कुछ भी करना पड़े. एक ऑअन्य छात्रा ने कहा, 11वीं के बाद 12वीं हूं. आईआईटी की प्रिपरेशन कर रही हूं. अन्य छात्राओं ने भी यहीं बताया कि वे परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं.
कोचिंग ने एक इंडस्ट्री का रूप ले लिया
कोटा मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग के एचओडी डॉ भारत शेखावत ने बताया, कोटा में जब कोचिंग शुरू हुई तो एक पैटर्न था कि बच्चा अपनी स्कूलिंग पूरी करता था, उसके बाद वह कोचिंग में एडमीशन लेता था. उसके लिए उसका एक प्रिलिमनरी एडमीशन टेस्ट होता था. जो बच्चे योग्य पाए जाते थे, उन्हीं को आगे कोचिंग जारी रखी जाती थी. और जो उस स्टेज में नहीं होते थे उनको कह दिया जाता था आपकी इस क्षेत्र में ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं, आप किसी और क्षेत्र में जाएं. धीरे-धीरे इसने एक इंडस्ट्री का रूप ले लिया. अब हालात यह है कि कोई भी बच्चा जो आना चाहे आ जाए. उल्टा कोचिंग सेंटर खुद लोगों को इनवाइट करते हैं, फोन करते हैं.
कई माता-पिता कर्ज लेकर पढ़ने के लिए भेजते हैं बच्चों को
कोटा में कामयाबी हासिल करने की इस अंधी दौड़ का एक डरावना पहलू भी है. सफलता की होड़ में जो बच्चे किसी भी वजह से पिछड़ जाते हैं उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता. इनमें से कई बच्चे तो इतना तनाव ले लेते हैं कि इसके आगे उन्हें अपनी जान तक हल्की लगने लगती है. एक तो जेईई और नीट जैसे मुश्किल इम्तिहानों का तनाव, ऊपर से कोटा में पढ़ाई का भारी खर्च..कई माता-पिता कर्ज लेकर बच्चों को यहां पढ़ने के लिए भेजते हैं. और ऐसे बच्चों के दिलोदिमाग पर कहीं न कहीं यह दबाव भी लगातार बना रहता है, भले माता-पिता उनसे यह बात करें या न करें.
बीमार पड़ने पर पढ़ाई में पिछड़े तो भरपाई मुश्किल
एक छात्र ने कहा कि, शुरुआत में जब क्लास फोर या फाइव में था तो मेरे चाचा ने कहा था कि इसको आईआईटी कराएंगे. मुझे इंजीनियरिंग यानी मशीन से छेड़खानी पसंद है तो मन में आया था आईआईटी करने का. कोटा में पढ़ाई नार्मल से तो ज्यादा ही महंगी है. 1.60 लाख कोचिंग में लग जाते हैं. यहां यदि 10 महीने के लिए हैं तो 1.20 लाख हॉस्टल और मंथली दो-ढाई हजार लगता है. तबियत भी खराब हो जाती है तो बैक हो जाता है. मुझे चिकनपॉक्स हो गया था, उसी समय मेरा एक्जाम भी था. तो कुछ चैप्टर छूट गए हैं तो क्वेश्चन नहीं हो पाए.
कोटा में पढ़ाई का यह तनाव लंबा होता है. 13 से 18 साल के बच्चे यहां सालों साल तैयारी के लिए आते हैं. कोई बच्चा एक दिन भी बीमार पड़ जाए तो कोर्स में पीछे छूट जाता है. और फिर उसकी भरपाई उसके लिए मुश्किल हो जाती है.
लगातार पढ़ाई की चक्की बच्चों के दिमाग में भरती है तनाव
बच्चों का दिन बहुत व्यस्त होता है. सुबह साढ़े छह बजे से क्लास, उसके बाद थोड़ा आराम और फिर पढ़ाई. रविवार को टेस्ट और फिर पढ़ाई. लगातार पढ़ाई की यह चक्की बच्चों के दिमाग में एक तनाव भरती जाती है, जिस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता.