जब अपने पिता के दिए फैसले को डीवाई चंद्रचूड़ ने पलट दिया था, पढ़िए क्या है पूरा मामला

जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने अपने पिता का जो दूसरा फैसला पलटा, वह एडल्टरी लॉ पर था. 2018 में, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से उस कानून को रद्द कर दिया जो एडल्टरी को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में मानता है.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जब अपने पिता का पलट दिया था फैसला
नई दिल्ली:

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) आज (10 नवंबर 2024) अपने पद से रिटायर हो रहे हैं. उनकी जगह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना अब नए देश के नए CJI होंगे. वो 11 नवंबर यानी सोमवार को शपथ लेंगे. CJI रहते डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कई अहम फैसले सुनाए. यही वजह है कि डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) का कार्यकाल ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाना जाता है. इतना ही डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहते हुए भी ऐसे फैसले दिए जो भारतीय कानून व्यवस्था के लिए अब नजीर बन चुके हैं. चाहे बात राम मंदिर मामले की करें या फिर बिलकिस बानो केस की. ऐसे फैसलों की लंबी फेहरिस्त है. इन्हीं फैसलों में एक चर्चित फैसला है वो जिसके तहत डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने अपने फैसले को ही पलट दिया. न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार पिता- पुत्र की जोड़ी रही जो देश के मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहे.आखिर वो मामला क्या था और डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) को क्यों बदलना पड़ा था अपने पिता का ही दिया फैसला, आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे. 

निजता के अधिकार पर दिया बड़ा फैसला

निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने वाला सुप्रीम कोर्ट का नौ जजों संविधान पीठ का फैसला एक अनोखे कारण के लिए ऐतिहासिक था, क्योंकि जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौरान दिए गए प्रसिद्ध ADM जबलपुर मामले में अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसले को पलट कर दिया था. 28 अप्रैल, 1976 को, जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ पांच- जजों के संविधान पीठ का हिस्सा थे. उन्होंने 4:1 बहुमत से फैसला सुनाया था कि आपातकाल के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और व्यक्तियों को सुरक्षा के लिए संवैधानिक अदालतों से संपर्क करने का अधिकार नहीं है. 

इसके 41 साल बाद, उनके बेटे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले को खारिज करते हुए कहा था कि एडीएम जबलपुर में बहुमत बनाने वाले सभी चार जजों द्वारा दिए गए फैसले गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण हैं.एडीएम जबलपुर के फैसले द्वारा पैदा की गई अधिकांश समस्याओं को 44 वें संविधान संशोधन द्वारा ठीक कर दिया गया था.

Advertisement
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में जस्टिस एच आर खन्ना द्वारा दिए गए अल्पसंख्यक फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि जस्टिस खन्ना द्वारा लिए गए विचार को स्वीकार किया जाना चाहिए, और इसके विचारों की ताकत और इसके दृढ़ विश्वास के साहस के लिए सम्मान में स्वीकार किया जाना चाहिए. 

जस्टिस खन्ना का स्पष्ट रूप से यह मानना ​​सही था कि संविधान के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मान्यता इसके अलावा उस अधिकार के अस्तित्व को नकारती नहीं है और न ही यह एक गलत धारणा हो सकती है कि संविधान को अपनाने में भारत के लोगों ने मानव व्यक्तित्व के सबसे कीमती पहलू, जीवन, स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को उस राज्य को सौंप दिया, जिसकी दया पर ये अधिकार निर्भर होंगे. 

Advertisement

एडल्टरी लॉ का फैसला भी पलटा

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता का जो दूसरा फैसला पलटा, वह एडल्टरी लॉ पर था. 2018 में, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने सर्वसम्मति से उस कानून को रद्द कर दिया जो एडल्टरी को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ किए गए अपराध के रूप में मानता है. उस आदेश के साथ, एडल्टरी अब अपराध नहीं है, केवल तलाक का आधार है. 1985 में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने एडल्टरी कानून को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया था. 

Advertisement

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले में कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए. कामकाजी महिलाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो घर की देखभाल करती हैं, उनके पतियों द्वारा मारपीट की जाती है, जो कमाते नहीं हैं और वह तलाक चाहती हैं. लेकिन यह मामला सालों से कोर्ट में लंबित है. अगर वह किसी दूसरे पुरुष में प्यार, स्नेह और सांत्वना ढूंढती है, तो क्या वह इससे वंचित रह सकती हैं. अक्सर, व्यभिचार तब होता है जब शादी पहले ही टूट चुकी होती है और युगल अलग रह रहे होते हैं.

Advertisement

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ कहा था कि यदि उनमें से कोई भी किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखता है, तो क्या उसे धारा 497 के तहत दंडित किया जाना चाहिए? व्यभिचार में कानून पितृसत्ता का एक संहिताबद्ध नियम है. यौन स्वायत्तता के सम्मान पर जोर दिया जाना चाहिए. विवाह स्वायत्तता की सीमा को संरक्षित नहीं करता है. धारा 497 विवाह में महिला की अधीनस्थ प्रकृति को अपराध करता है. 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम अनगिनत ऐतिहासिक फैसले हैं. हाल ही में, जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक ऐतिहासिक फैसले दिए, जिसमें महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया. महिला अधिकारों को लेकर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सेना व नेवी में परमानेंट कमीशन जैसे फैसले सुनाए. 

Featured Video Of The Day
Delhi में सक्रिय Gangs पर पुलिस की कार्रवाई शुरू, कुख्यात गैंगस्टर मोगली गिरफ़्तार | NDTV India
Topics mentioned in this article