केंद्र सरकार मानती है कि देश में कोरोना संकट के दौरान कुपोषित बच्चों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ी है. बच्चों में कुपोषण की समस्या पर पीटीआई की एक RTI क्वेरी के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ये बात मानी है. लेकिन जानकार मंत्रालय के आंकड़ों पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. इस देश में 33 लाख से ज़्यादा बच्चों को ठीक से खाना तक नहीं मिलता और 17 लाख से ज़्यादा बच्चे बुरी तरह कुपोषित हैं. ये बात महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मानी है. लेकिन फूड कमिश्नर रहे एनसी सक्सेना इस आंकड़े को ख़ारिज करते हैं. उनका कहना है, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने देश में अंडरवेट या स्टंटेड बच्चों की संख्या इससे 19 गुना ज़्यादा है.
भारत सरकार के पूर्व खाद्य सचिव एनसी सक्सेना ने NDTV से कहा, "कुपोषण की स्थिति पर यह आंकड़े नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से मैच नहीं करते. राज्य सरकारें बोगस आंकड़े भेजती हैं... राज्य सरकारों के आंकड़ों के मुताबिक देश में सिर्फ गरीब 2% बच्चे ही कुपोषित हैं जबकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में कहा गया है कि 38% तक बच्चे स्टंटेड हैं."
आंकड़े यह भी बताते हैं कि बीते एक साल में इस देश में भुखमरी बढ़ी है. नवम्बर 2020 में देश में कुपोषित बच्चों की संख्या 9.27 लाख थी जो करीब एक साल बाद 14 अक्टूबर, 2021 को बढ़कर 17.76 लाख हो गई. यानी करीब 91% की बढ़ोतरी. लेकिन जानकार सरकार के इन आंकड़ों को भरोसे लायक नहीं मानते.
आईआईटी दिल्ली की अर्थशास्त्री रितिका खेड़ा ने NDTV से कहा, "देश में कुपोषित बच्चों की संख्या 33 लाख से कहीं ज्यादा होगी...अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या आंगनबाड़ी से जुड़े सभी 9 करोड़ बच्चों में से सभी का वजन लिया गया था? पिछले साल कोरोना संकट के दौरान आंगनबाड़ी बड़ी संख्या में प्रभावित हुए थे."
RTI में ये भी खुलासा हुआ है कि सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. खाद्य विशेषज्ञ मानते हैं कि देश में कुपोषित बच्चों की संख्या करोड़ों में है और कोरोना संकट के दौरान देश में कुपोषण की समस्या और ज्यादा गंभीर हो गई है. देश में कुपोषित बच्चे कितने हैं, इसके बारे में सही आंकड़े अगले साल जारी होने वाले नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे मैं ही सामने आएंगे.