गुजरात में कांग्रेस को दोहरा झटका : न गद्दी मिली, न मिलेगा नेता प्रतिपक्ष का पद!

इसके बाद, वर्ष 2019 में भी कांग्रेस केवल 52 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि नेता प्रतिपक्ष के पद पाने के लिए लोकसभा में कम से कम 55 सीटों की ज़रूरत होती है.

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गुजरात में कांग्रेस को फिर झटका
नई दिल्ली:

गुजरात में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव 2022 की हार से दोहरा झटका लगा है. कांग्रेस को इस बार न सिर्फ शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है, देश की सबसे पुरानी पार्टी के सिर पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छिन जाने का खतरा भी मंडराने लगा है.

वैसे, यह कांग्रेस का गुजरात के इतिहास में सबसे निराशाजनक प्रदर्शन भी है, जब वह 20 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. 182 विधानसभा सीटों वाले देश के पश्चिमी सूबे में कांग्रेस सिर्फ 16 सीटों पर जीत हासिल करती नज़र आ रही है.

गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए किसी भी विपक्षी दल को सदन की कुल सदस्य संख्या की कम से कम 10 फीसदी सीटों पर जीतना ज़रूरी होता है, जो गुजरात के मामले में कम से कम 19 सीट बनेगा.

ध्यान रहे, केंद्र में भी पिछले दो लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के कारण कांग्रेस को LOp, यानी नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी नहीं मिल पाई है. वर्ष 2014 में 543 सीटों वाली लोकसभा में कांग्रेस के खाते में केवल 44 सीटें आई थीं, और जब मल्लिकार्जुन खरगे के लिए नेता प्रतिपक्ष का पद मांगा गया था, तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने नियमों का हवाला देते हुए इससे इंकार कर दिया था.

इसके बाद, वर्ष 2019 में भी कांग्रेस केवल 52 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि नेता प्रतिपक्ष के पद पाने के लिए लोकसभा में कम से कम 55 सीटों की ज़रूरत होती है.

नेता प्रतिपक्ष कई संवैधानिक पदों पर नियुक्ति के पैनल में शामिल होता है, जो अब नहीं होगा. नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में मल्लिकार्जुन खरगे को लोकपाल नियुक्ति के पैनल की बैठकों में विशेष आमंत्रित के रूप में बुलाया था, लेकिन नेता प्रतिपक्ष पद नहीं मिलने के विरोध में खरगे ने उसका बहिष्कार किया था.

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नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री का रैंक तथा उससे जुड़ी सुविधाएं भी दी जाती हैं, जो अब शायद कांग्रेस विधायक दल के नेता को नहीं मिल सकेंगी, अगर उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया गया. इसके अलावा, नेता प्रतिपक्ष को विधानसभा या संसद में सबसे आगे बैठने की जगह आवंटित की जाती है, और साथ ही संसद भवन, विधानसभाओं में कमरा तथा अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं.

इन सब सुविधाओं के अलावा, नेता प्रतिपक्ष के पद के पीछे एक बड़ा राजनैतिक संदेश भी होता है, लेकिन कांग्रेस भी विपक्ष के साथ ऐसा ही व्यवहार कर चुकी है, जब 1980 और 1984 में बड़ी जीत हासिल करने के बाद लोकसभा में किसी भी विपक्षी दल को नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया था.

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