पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र के बीच विवाद और बढ़ गया है. केंद्र के खिलाफ ममता सरकार ने मूल वाद (ओरिजनल सूट) दाखिल किया है. एक के बाद एक, तीन याचिकाएं दाखिल कर चुकी ममता सरकार ने आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई FIR दर्ज करके शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है. बुधवार को राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत राज्य द्वारा दायर मूल मुकदमे पर जल्द सुनवाई की मांग भी की.
सूट में राज्य की ओर से कहा गया है कि राज्य द्वारा पश्चिम बंगाल में घटनाओं से संबंधित मामलों के पंजीकरण के लिए सीबीआई से सामान्य सहमति वापस लेने के तीन साल बाद भी सीबीआई ने राज्य में हुई घटनाओं से संबंधित 12 मामले दर्ज किए हैं. ममता सरकार ने कहा है कि कानून-व्यवस्था और पुलिस को संवैधानिक रूप से राज्यों के विशेष अधिकार क्षेत्र में रखा गया है. सीबीआई द्वारा मामले दर्ज करना अवैध है. यह केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक रूप से वितरित शक्तियों का उल्लंघन है.
पश्चिम बंगाल ने कहा कि उसने वर्ष 2018 में सामान्य सहमति वापस ले ली थी, लेकिन उसके बाद भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
कोयला घोटाला मामले में TMC सांसद अभिषेक बनर्जी के खिलाफ की कार्रवाई से नाराज ममता बनर्जी सरकार ने केंद्र और उसकी जांच एजेंसियों पर मामले दर्ज करके देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र-राज्य विवाद उठाया है.
राज्य द्वारा बताए गए 12 सीबीआई मामलों में ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड खदानों से संबंधित कथित करोड़ों रुपये का कोयला चोरी घोटाला भी शामिल है. इसमें सीबीआई मामले के आधार पर ईडी ने PMLA के तहत मामला दर्ज किया था और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजीरा को तलब किया था. हालांकि केंद्र सरकार के नियंत्रण वाले रेलवे क्षेत्र में कथित तौर पर हुए कोयला घोटाले के मामले में सीबीआई की FIR की वैधता को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.
बंगाल सरकार का कहना है कि जिन राज्यों ने DSPE अधिनियम की धारा 6 के तहत सामान्य सहमति वापस ले ली है, वहां सिर्फ संवैधानिक अदालतों के आदेश पर ही सीबीआई मामले दर्ज कर सकती है. राज्य सरकार ने 2 अगस्त 1989 को 16 नवंबर 2018 को दी गई सहमति को वापस ले लिया था.