दिल्ली के विवेक विहार (Vivek Vihar) इलाके में एक बेबी केयर सेंटर (Baby Care Center) में आग लगने से 7 नवजातों की जान चली गई. जिन मांओं ने बच्चे की उम्मीद में अपना हर कदम 9 महीने तक संभालकर रखा, असहनीय पीड़ा को भोगा, वही बच्चे जब बेबी केयर सेंटर में लगी आग में काल के गाल में समा गए तो उनके दर्द का अंदाज लगाना भी मुश्किल है. इन बच्चों को विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए यहां पर भर्ती किया गया था, लेकिन बेहतर इलाज की उम्मीद तो दूर ये बच्चे अपने घरों तक जिंदा तक नहीं पहुंचे. इन नवजात बच्चों के परिजनों का अब एक ही सवाल है कि हमें इस घटना की जानकारी क्यों नहीं दी गई?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इनमें से कुछ माता-पिता ऐसे थे, जिन्होंने पहले भी अपने बच्चे को खो दिया था. इंडियन एक्सप्रेस ने आग में अपने बच्चों को गंवा चुके परिवार के सदस्यों से बातचीत की.
विनोद और ज्योति
शाहदरा के ज्वाला नगर की रहने वाली ज्योति ने शनिवार सुबह 5 बजे मेरठ के लोकप्रिय अस्पताल में अपने बेटे को जन्म दिया था. लेकिन बच्चे को तेज बुखार होने पर उसे सुबह 10.30 बजे दिल्ली लाया गया और अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. ठीक 12 घंटे बाद उस अस्पताल को आग ने अपनी चपेट में ले लिया. उनका बच्चा उन 12 में शामिल था जिन्हें बचाया गया. जिसके बाद उसे दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया दिया गया. लेकिन रविवार सुबह उसकी मौत हो चुकी थी.
दंपति के परिजनों ने मृत बच्चे को अपना मानने से इनकार करते हुए डीएनए टेस्ट की मांग की. एक अन्य रिश्तेदार ने आरोप लगाया, अस्पताल से किसी ने भी हमें आग के बारे में सूचित नहीं किया - न तो डॉक्टर और न ही बेबी केयर सेंटर से किसी ने.
डिलीवरी के बाद ज्योति अभी भी मेरठ अस्पताल में एडमिट है, क्योंकि उन्हें बच्चा सर्जरी के जरिए हुआ था. पिछले साल भी ज्योति ने एक बच्चे को खो दिया था, अब फिर वैसा ही हुआ. हमारी खुशी को एक दिन भी नहीं हुआ था कि इन्होंने छीन लिया.
अंजार चौधरी
अंजार की बेटी का जन्म 11 दिन पहले शाहदरा के गुप्ता नर्सिंग होम में हुआ था और उसे सीधे यहां रेफर कर दिया गया था. अंजार ने बताया, "हमें कहा गया था इसे आईसीयू/वेंटिलेटर की जरूरत है. वह 12 दिन तक ICU में भर्ती रही. शनिवार को अंजार अपनी बेटी को देखने अस्पताल देखने गए थे, वहां देखा कि वह खुशी से लेटी हुई है. अंजार को रविवार सुबह तक आग के बारे में जानकारी नहीं थी. उसके दोस्त ने जब खबर पढ़ी तो उसने अंजार को कॉल किया.
अंजार हर महीने 10 हजार रुपए कमाते हैं. उनके दो और बच्चे हैं. तीसरे बच्चे की डिलिवरी के लिए उन्होंने करीब 90 हजार रुपए खर्च किए थे. वहीं आईसीयू के लिए पिछले 12 दिनों में एक लाख रुपए खर्च हो गए.
अंजार ने बताया कि उसकी पत्नी को उसके बच्चे की मौत की जानकारी नहीं है.
मो. मोसी आलम
मोसी आलम के दूसरे बच्चे का जन्म 22 मई को हुआ था. आलम ने कहा कि शनिवार को डॉक्टर ने उन्हें फोन किया और कहा कि उनका बेटा अपने आप सांस ले सकता है और जल्द ही उसे वेंटिलेटर से हटा दिया जाएगा. रविवार की सुबह जब उन्होंने अपना टीवी ऑन किया तो आग लगने की खबर देखी और अस्पताल की ओर दौड़ लगा दी. उन्होंने रोते हुए बताया कि "मैं सोच रहा था कि मेरा परिवार पूरा हो गया है और मैं अपने बेटे को अस्पताल से बाहर ले जाने का इंतजार कर रहा था... लेकिन मैं उसे वापस नहीं ला सका."
करावल नगर के रहने वाला मोसी मजदूर है और पूर्वी दिल्ली में घरों में पेंट करता है. उनके बेटे का जन्म दिलशाद गार्डन के मंगलम अस्पताल में हुआ था और इंफेक्शन की वजह से उसे विवेक विहार अस्पताल में रेफर किया गया था. नॉर्मल डिलीवरी के लिए परिवार ने 17,000 रुपये दिए थे. NICU सेंटर पर हर दिन 15,000 रुपये खर्च हो रहे थे. जिसके उसके पिता, भाई और साथ काम करने वालों ने मदद की थी.
राज कुमार
राजकुमार की बहन विनीता ने अपनी 17 दिन की बेटी रूही को बुखार होने पर दो दिन पहले विवेक विहार अस्पताल में भर्ती कराया था. रविवार सुबह कुमार बच्ची को देखने अस्पताल पहुंचे थे. लेकिन वहां चारों तरफ जली हुई काली इमारत और ऑक्सीजन सिलेंडर के कुछ हिस्से पड़े थे.
उन्होंने कहा कि मैं सदमें में था. बच्ची और डॉक्टरों की तलाश करने लगा. मैंने डॉक्टरों को फोन किया लेकिन उनके फोन नहीं मिल रहे थे.
पवन कसाना
मोर्चरी के बाहर बैठे पवन कसाना की आंखों में आंसू थे और वे बोलने में असमर्थ थे. उन्होंने अपनी शादी के एक साल बाद अपना पहला बच्चा खो दिया था और रविवार को दूसरे बच्चे की भी आग लगने की घटना में मौत हो गई. यह एक लड़की थी.
उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही पवन कसाना बागपत के रहने वाले हैं. वह शनिवार तक चुनाव ड्यूटी पर थे. उनके भाई और एडवोकेट योगेश ने कहा कि पवन व्यस्त थे, इसलिए उन्होंने बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया. योगेश ने बताया कि बच्ची का जन्म 19 मई को गाजियाबाद के राजेंद्र नगर स्थित नवजीवन मदर एंड चाइल्ड केयर सेंटर में हुआ था.
डिलीवरी सामान्य थी लेकिन बच्ची को मेकोनियम एस्पिरेशन सिंड्रोम हो गया था. हालत बिगड़ी तो वेंटिलेटर की जरूरत थी. परिवार उसे विवेक विहार के बेबी केयर सेंटर ले आया. योगेश ने कहा कि उन्हें सूचना देना किसी ने जरूरी नहीं समझा और उन्हें न्यूज के जरिए हादसे के बारे में पता चला.
रितिक और निकिता
रितिक और निकिता के बेटे को भी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. रितिक ने कहा, "वह सिर्फ नौ दिन का था... वह मेरा पहला बच्चा था."
बच्चे का जन्म बुलंदशहर के गुलावठी कस्बे के सविता तेवतिया अस्पताल में हुआ था. उसे तेज बुखार हो गया था और डॉक्टरों ने उसे बुलंदशहर के सिरोही अस्पताल में रैफर कर दिया था, लेकिन रितिक के एक रिश्तेदार ने उसे विवेक विहार के बेबी केयर सेंटर को अच्छा बताया तो वह उसे यहां ले आया. रितिक ने कहा, "हम पिछले 12 दिनों से यहां थे और हमें बताया गया था सोमवार को बेटे को घर ले जा सकते हैं. मुझे यह नहीं पता था कि मैं उसे खो दूंगा.
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