दिल्ली दंगा केस LIVE: उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत याचिका पर SC में आज फिर सुनवाई, जानिए कपिल सिब्बल की क्या हैं दलीलें

पिछली सुनवाई में उमर खालिद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि प्रॉसिक्यूशन लगातार ट्रायल में देरी कर रहा है और अब इसका इल्जाम आरोपी पर डालने की कोशिश कर रहा है.

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  • सुप्रीम कोर्ट दिल्ली दंगों के साजिश मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत पर फिर सुनवाई करेगा
  • सभी आरोपी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत जेल में बंद हैं और उनकी सुनवाई 3 नवंबर को जारी रहेगी
  • उमर खालिद के वकील कपिल सिब्बल ने ट्रायल में देरी का आरोप लगाते हुए कहा कि खालिद पर कोई ठोस सबूत नहीं है
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को 2020 दिल्ली दंगों की साजिश मामले में आरोपी छात्र नेता उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और अन्य कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करेगा. सभी आरोपी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में बंद हैं. सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर पब्लिश कॉजलिस्ट के मुताबिक, जस्टिस अरविंद कुमार और एनवी अंजारिया की बेंच 3 नवंबर को सह आरोपी मीरान हैदर, मोहम्मद सलीम खान और शिफा उर रहमान और दिल्ली पुलिस की दलीलें सुनना जारी रखेगी.

कपिल सिब्बल ने ट्रायल में देरी का लगाया था आरोप

पिछली सुनवाई में उमर खालिद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने तर्क दिया था कि प्रॉसिक्यूशन लगातार ट्रायल में देरी कर रहा है और अब इसका इल्जाम आरोपी पर डालने की कोशिश कर रहा है. सिब्बल ने कहा था कि वे कहते हैं कि मैं समय ले रहा हूं और केस में देरी कर रहा हूं, जबकि सच्चाई कुछ और है. सिब्बल ने कहा था कि दंगों से जुड़ी 751 एफआईआर में से सिर्फ एक में खालिद का नाम था. जब दंगे हुए, तब वह दिल्ली में था ही नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि उसके पास से कोई भी गुनाह साबित करने वाला सामान बरामद नहीं हुआ.

सिब्बल ने तर्क दिया कि खालिद पर लगाए गए कोई भी आरोप यूएपीए के तहत 'आतंकवादी गतिविधि' की परिभाषा में नहीं आते और इसके लिए उन्होंने सह-आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा, देवंगाना कलिता और नताशा नरवाल को मिली जमानत के आदेशों का हवाला दिया. सिब्बल ने कहा कि उन्हें जमानत मिल गई है. उमर खालिद तो दिल्ली में मौजूद भी नहीं थे. सबूत और गवाह भी वही हैं.

शरजील इमाम के वकील ने क्या कहा था? 

शरजील इमाम के वकील सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने तर्क दिया था कि प्रॉसिक्यूशन को जांच पूरी करने में तीन साल से ज्यादा लग गए और वे सितंबर 2024 तक सप्लीमेंट्री चार्जशीट फाइल करते रहे. दवे ने जस्टिस कुमार की बेंच को बताया कि मुकदमा आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि जांच अभी चल रही है. पांच में से तीन साल जांच में ही निकल गए. उन्होंने कहा कि शरजील इमाम 25 जनवरी 2020 से जेल में हैं, यानी दंगों से करीब एक महीना पहले से. उन्होंने सवाल किया कि अगर मैं जनवरी से जेल में हूं तो फरवरी के दंगों में मेरी क्या भूमिका हो सकती है? मेरे भाषण दिसंबर 2019 में थे यानी दंगों से दो महीने पहले.

सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर दवे ने कहा कि मेरे मुवक्किल ने सीएए के खिलाफ चक्का जाम की अपील की थी. हिंसा का कोई आह्वान नहीं किया था. वहीं गुलफिशा फातिमा के एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उन पर सिर्फ विरोध स्थल बनाने का आरोप है. उस स्थल पर कोई हिंसा नहीं हुई. न कोई मौखिक सबूत है, न दस्तावेजी. इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम, उमर खालिद और अन्य आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी.

कपिल सिब्बल की क्या-क्या दलील

दिल्ली दंगे मामले में आरोपी शरजील ईमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर ,गुल्फिशा फातिमा और शिफा उर रहमान और मोहम्मद सलीम खान की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया की बेंच के समक्ष कपिल सिब्बल ने उमर खालिद को पैरवी करते हुए कहा कि इसी मामले में बाकी कई आरोपियों को जमानत मिल चुकी है. इस मामले में हमारे खिलाफ 751 FIR दर्ज की गई हैं. सिब्बल ने ये भी कहा कि दिल्ली के कई इलाकों के पुलिस स्टेशन मे कुल 751 FIR दर्ज थीं. दो एफआईआर उमर खालिद के खिलाफ थी. एक एफआईआर में उसे बरी कर दिया गया. जबकि एक और एफआईआर थी, जो बडी साज़िश से संबंधित थी उसका मामला चल रहा है. 750 अलग-अलग मामले हैं. मैं इनमें से उमर खालिद किसी में भी शामिल नहीं है. सिर्फ साजिश के मामले मे मुकदमा चल रहा है. 751 में से 116 मामलों की सुनवाई हो चुकी है और इनमें से 17 मामलों में दस्तावेजों में हेराफेरी की गई थी.

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शिफा उर रहमान के वकील सलमान खुर्शीद की दलीलें

आरोपी शिफा उर रहमान के वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अगर कोई कानून आपको पसंद नहीं है, तो आपको विरोध करने का अधिकार है. अगर कोई शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहा है और उसे एक बड़ा और जघन्य अपराध बना दिया गया. जामिया के एलुमिनाई एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख की ओर से किसी ने भी कहीं यह नहीं कहा है कि वह हिंसा में शामिल था. दिल्ली में दंगे होने से पहले दिसंबर में जामिया यूनिवर्सिटी मे भी एक घटना हुई थी जबकि दंगे फरवरी में हुए थे. दिसंबर में पुलिस ने विश्वविद्यालय में मार्च किया था. वह मामला अभी भी हाईकोर्ट में लंबित है. तब भी वह शिफा उर रहमान किसी भी हिंसा में शामिल नहीं था. लोगों को चुन-चुनकर पुलिस ने आरोपी बनाया है. किसी भी आरोप में यूएपीए कानून के तहत कुछ भी नहीं बनता.

अगर हम सभी आरोपों को सच मान भी लें, तो भी हमने मुकदमे में देरी करवाने के लिए कुछ नहीं किया है. शिफा उर रहमान ने स्थानीय मुद्दों के लिए लड़ाई लड़ी है. वह जामिया को अपना घर मानता है. जब DPSG का गठन हुआ था, तब वह उसका सदस्य नहीं था. वह विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले लोगों का समर्थन करने के लिए बैठकों में शामिल था, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि उसने गैरकानूनी काम किया. शिफा उर रहमान विरोध प्रदर्शन में मौजूद था लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसने लोगों को उकसाया. किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा कि उसने कोई गैरकानूनी काम किया है. इस मामले मे दिल्ली हाईकोर्ट से तीन लोगों को जमानत मिल चुकी है इसलिए शिफा उर रहमान को भी जमानत मिलनी चाहिए.

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