दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते संकट के बीच असंगठित क्षेत्र के श्रमिक नौकरी छूटने और स्वास्थ्य संबंधी खतरों से जूझ रहे हैं. बक्करवाला लैंडफिल साइट (कचरा एकत्र किये जाने का स्थान) के निकट रहनी वाली 55 वर्षीय निर्माण श्रमिक सरोज दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण संकट के बीच असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के समक्ष आने वाले चुनौतियों का सामना कर रही हैं.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लगातार निर्माण प्रतिबंधों के मद्देनजर, सरोज को पिछले तीन महीनों से समय-समय पर बेरोजगार रहना पड़ा और गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. उनके जैसे लोगों के लिए आय का प्राथमिक स्रोत निर्माण कार्य है और काम बंद होना उनके लिए एक गंभीर वित्तीय झटका है.
उन्होंने कहा, ‘‘अक्टूबर (दिवाली) के बाद से कोई स्थिर निर्माण कार्य नहीं हुआ है और हम तीन महीने से घर पर बैठे हैं. ठेकेदार ने हमें सूचित किया है कि वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार होने पर कुछ महीनों में काम फिर से शुरू होगा.''
प्रदूषण के बावजूद निर्माण उद्योग में काम करना इन श्रमिकों के लिए एक मजबूरी बन गई है, जिससे उन्हें गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने के कारण स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के बारे में बताते हुए सरोज ने कहा, ‘‘निर्माण स्थलों के निकट रहने और काम करने वाले लोगों में बुखार, खांसी, सर्दी और पेट की समस्याएं बहुत आम बात हैं.''
‘हेल्प दिल्ली ब्रीथ' और ‘महिला हाउसिंग ट्रस्ट' द्वारा हाल में किये गये एक सर्वेक्षण से पता चला है कि सरोज जैसी असंगठित क्षेत्र की श्रमिकों और विशेष रूप से दिल्ली में ‘लैंडफिल साइट' के निकट रहने वाले श्रमिकों को प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ता है.
इन श्रमिकों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जबरदस्त ठंड, वायु प्रदूषण, भीषण गर्मी, हरित स्थानों की कमी, अपशिष्ट जलाना और खुली जल निकासी जैसे मुद्दों के कारण असंगठित क्षेत्र की आजीविका प्रभावित होती है. सर्वेक्षण में शामिल लगभग 42 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि सरकार को नौकरियों के संरक्षण की अनिवार्यता पर जोर देते हुए प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद करने से बचना चाहिए.
सर्वेक्षण में बक्करवाला, गोकुलपुरी, सावदा घेवरा, नंद नगरी और भलस्वा में असंगठित क्षेत्र के 590 श्रमिकों को शामिल किया गया. सर्वेक्षण में शामिल विभिन्न बस्तियों के निवासियों में निर्माण श्रमिकों की संख्या 46.6 प्रतिशत थी, इसके बाद कचरा बीनने वाले 10.2 प्रतिशत और रेहड़ी-पटरी वाले 6.9 प्रतिशत थे.
सर्वेक्षण से पता चला कि निर्माण स्थलों के बंद होने से न केवल नौकरियां चली गईं, बल्कि इन श्रमिकों के लिए अनिश्चितता का माहौल भी पैदा हो गया. सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 91 प्रतिशत लोगों ने खराब वायु गुणवत्ता के कारण बीमार पड़ने के बारे में जानकारी दी. इसके अनुसार 95 प्रतिशत श्रमिक मुख्य रूप से नौकरी छूटने के डर से अपने कार्यस्थलों पर प्रदूषण संबंधी चिंताओं को उठाने से बचते हैं.
‘हेल्प दिल्ली ब्रीथ' से जुड़ी गुरप्रिया सिंह ने कहा, ‘‘दिल्ली में उच्च वायु प्रदूषण के दौरान निर्माण गतिविधियां रोक दी जाती हैं, इसलिए यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि यह असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की पहले से ही अनिश्चित आजीविका और वित्तीय सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है. ‘हेल्प दिल्ली ब्रीथ' और ‘महिला हाउसिंग ट्रस्ट' इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने और श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं.''
ब्रह्मभट्ट ने कहा, ‘‘भलस्वा जैसी बस्तियों में कचरा बीनने वाले अतिरिक्त स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिनमें दूषित पानी, कचरा जलाने से निकलने वाला जहरीला धुआं और पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के बिना जहरीले कचरे से निपटना शामिल है.''
महिला हाउसिंग ट्रस्ट की वरिष्ठ सलाहकार रोशिनी सुपर्णा दिवाकर ने निर्माण श्रमिकों को उनके काम की खतरनाक स्थिति से बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया.
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