ऑक्सीजन संकट : दिल्ली ने रक्षामंत्री को चिट्ठी लिख मांगी है सेना से मदद, हाईकोर्ट ने केंद्र से रिस्पॉन्स मांगा

दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखी है और मदद मांगी है. इसपर हाईकोर्ट ने केंद्र से प्रतिक्रिया देने को कहा है.

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Oxygen Crisis : दिल्ली हाईकोर्ट में ऑक्सीजन संकट पर सुनवाई. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी पर दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को फिर सुनवाई हुई है. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया है कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को चिट्ठी लिखी है और मदद मांगी है. उन्होंने रक्षा मंत्रालय से दिल्ली में 10000 ऑक्सीजन युक्त बेड और 1,000 आईसीयू बेड बनाने में मदद मांगी है. साथ ही दुर्गापुर, कलिंगा नगर आदि प्लांटों से टैंकर से जरिए दिल्ली में ऑक्सीजन लाने नें मदद मांगी है. 

दिल्ली सरकार ने आज कोर्ट में बताया कि 'सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया है. इसके तहत ऑक्सीजन का इंतजाम और सप्लाई केंद्र सरकार को करनी है. इसके अलावा ऑक्सीजन का बफर स्टॉक भी बनाया जाएगा. चार दिनों के भीतर यानी कल तक इमरजेंसी स्टॉक भी बनाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किया है और इसका पालन केंद्र को करना होगा. इसके लिए केंद्र को 976 MT ऑक्सीजन देना चाहिए.'

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि 'राज्य सरकार ने मदद के लिए सेना की सहायता लेने के संबंध में केंद्र को लिखा है. आपको इसपर केंद्र से रिस्पांस देना होगा.'  केंद्र की तरफ से ASG चेतन शर्मा ने भरोसा दिलाया कि वो केंद्र से निर्देश लेंगे.

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कोर्ट ने केंद्रीय रक्षा मंत्री को दिल्ली के डिप्टी सीएम द्वारा लिखे गए पत्र के मुद्दे को रिकॉर्ड पर ले लिया है, जिसमें ऑक्सीजन बेड और आईसीयू बेड के साथ अस्पताल स्थापित करने के लिए सेना की मदद का अनुरोध किया गया है.

बता दें कि दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन संकट को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली की ऑक्सीजन की आपूर्ति 3 मई की मध्यरात्रि या उससे पहले ठीक कर ली जाए. केंद्र सरकार ऑक्सीजन की सप्लाई की व्यवस्था राज्यों के परामर्श से तैयार करे. आपातकालीन प्रयोजनों के लिए ऑक्सीजन का स्टॉक और आपातकालीन ऑक्सीजन साझा करने की जगह को विकेंद्रीकृत करें.

कोर्ट ने कहा था कि दो सप्ताह के भीतर केंद्र अस्पतालों में प्रवेश पर राष्ट्रीय नीति बनाए और राज्यों द्वारा इसका पालन किया जाए. जब तक यह नीति तैयार न हो, निवास के प्रमाण के अभाव में किसी भी मरीज को अस्पताल में भर्ती करने या आवश्यक दवाओं से वंचित नहीं किया जाएगा.

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