दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से जुड़ी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा हाईकोर्ट

पुलिस ने पहले कहा था कि दंगों की जांच में अब तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है जिससे कहा जा सके कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिंसा को भड़काया

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दिल्ली के पूर्वोत्तर इलाके में 2020 में दंगे हुए थे (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

दिल्ली हाईकोर्ट सोमवार को 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों से संबंधित कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. इन याचिकाओं में कथित रूप से घृणास्पद भाषण देने के लिए राजनीतिक दलों के कई नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग भी शामिल है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की बेंच करेगी.

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की पृष्ठभूमि में कथित घृणास्पद भाषणों के लिए कार्रवाई की मांग के अलावा याचिकाओं में अन्य राहतों की भी मांग की गई है. इन मांगों में एसआईटी का गठन, हिंसा में कथित रूप से शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर और गिरफ्तार व हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को सामने लाने की मांग भी शामिल है.

पुलिस ने पहले कहा था कि दंगों की जांच में अब तक ऐसा कोई सबूत सामने नहीं आया है कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिंसा को भड़काया या उसमें भाग लिया.

अदालत ने 13 जुलाई को विभिन्न नेताओं को पक्षकार बनाने के लिए कई संशोधन आवेदनों की अनुमति दी थी. इसमें हिंसा के लिए कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने के लिए प्राथमिकी और उनके खिलाफ जांच की मांग की गई थी.

अदालत ने पहले अनुराग ठाकुर (बीजेपी), सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस), दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (आप) और अन्य को मामले में दो याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था.

याचिकाकर्ता शेख मुजतबा फारूक द्वारा एक अभियोग आवेदन दायर किया गया था. उन्होंने बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ अभद्र भाषा के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी.

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एक अन्य आवेदन याचिकाकर्ता लॉयर्स वॉयस का था, जिसमें कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ-साथ डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान, एआईएमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी के खिलाफ अभद्र भाषा के लिए एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी. 

इसके जवाब में गांधी परिवार ने कहा था कि किसी नागरिक को संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक या कानून के खिलाफ एक वास्तविक राय व्यक्त करने से रोकना "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार" और "लोकतंत्र के सिद्धांतों" का उल्लंघन है.

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