दिल्‍ली: हाईकोर्ट ने 'क्रॉस जेंडर' मसाज सेवाओं को प्रतिबंधित करने पर रोक लगाई

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि अचानक पाबंदी से स्पा उद्योग में कार्यरत लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिबंध लगाने की नीति स्पा सेवाओं में शामिल पेशेवरों के परामर्श के बिना बनाई गई थी. 

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अदालत ने जनवरी में मामले की अगली सुनवाई तक प्रतिबंध को लागू करने पर रोक लगा दी. 
नई दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने राजधानी में ‘क्रॉस-जेंडर' मसाज सेवाओं को प्रतिबंधित करने पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी और कहा कि स्पा में पूर्ण प्रतिबंध लगाने और वेश्यावृत्ति को रोकने के बीच कोई तार्किक संबंध नहीं है. प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि अचानक पाबंदी से स्पा उद्योग में कार्यरत लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. 

न्यायमूर्ति पल्ली ने कहा, ‘‘मेरा प्रथमदृष्टया विचार है कि ‘क्रॉस-जेंडर' मसाज पर इस तरह के पूर्ण प्रतिबंध का नीति के उस उद्देश्य से कोई उचित संबंध नहीं कहा जा सकता है, जो कि स्पा के कामकाज को विनियमित करना है और यह सुनिश्चित करता है कि शहर में कोई अवैध तस्करी या वेश्यावृत्ति नहीं हो.”

न्यायमूर्ति ने कहा कि जबकि प्रतिवादी अधिकारियों को स्पा केंद्रों को विनियमित करने के लिए उपाय करने चाहिए ताकि इस तरह की अवैध गतिविधियों को रोका जा सके, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिबंध लगाने की नीति स्पा सेवाओं में शामिल पेशेवरों के परामर्श के बिना बनाई गई थी. 

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क्रॉस-जेंडर मसाज (मालिश) का मतलब है कि किसी पुरुष की मालिश कोई महिला करे या किसी महिला की मालिश कोई पुरुष करे. 

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अदालत ने आदेश दिया, ‘‘इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि अगली तारीख तक, नीति के क्रियान्वयन और इसी तरह के उपबंधों पर रोक रहेगी.''

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अदालत कुछ स्पा केन्द्रों के मालिकों और चिकित्सकों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिल्ली सरकार के नीतिगत दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई थी, जिनके तहत ‘क्रॉस-जेंडर' मसाज पर रोक लगाई गई थी और इसके बाद नगर निगमों ने निर्देश पारित किए थे. 

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अदालत ने कहा, ‘‘हम कोविड से बाहर आ रहे हैं... ये पुरुष और महिलाएं हैं जिन्होंने इतने सालों तक प्रशिक्षण लिया है. यह उनकी आजीविका से भी संबंधित है.'' अदालत ने जनवरी में मामले की अगली सुनवाई तक प्रतिबंध को लागू करने पर रोक लगा दी. 

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अदालत ने निर्देश दिया कि तीनों नगर निगम और दिल्ली पुलिस एक सप्ताह के भीतर अपने-अपने क्षेत्र का निरीक्षण करें और बिना लाइसेंस वाले सभी स्पा को बंद करने के लिए उचित कदम उठाएं. न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘मुझे दुख होता है कि यह नगर निगमों और पुलिस की नाक के नीचे हो रहा है. वे भूल जाते हैं कि घर में उनकी पत्नियां, बेटियां और बहनें हैं.''

अदालत ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड से जो तथ्य सामने आता है, वह यह है कि शहर में 5,000 स्पा हैं, हालांकि तीनों निगमों के अनुसार, केवल 400 स्पा को ही लाइसेंस जारी किए गए हैं.  अवैध रूप से चल रहे स्पा ... (या) उन स्पा के लाइसेंस को निलंबित करना जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है या जो खुले तौर पर अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं, के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं करने के संबंध में पुलिस या निगम की ओर से बिल्कुल कोई औचित्य नहीं है. ''

दिल्ली सरकार ने इस नीति का इस आधार पर बचाव किया कि प्रतिबंध महिलाओं और बच्चों को स्पा केन्द्रों में वेश्यावृत्ति के खतरे से बचाने के लिए था. 

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शहर सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि प्रतिबंध व्यापक जनहित में था और इसे व्यक्तिगत अधिकारों पर लागू होना चाहिए. उन्होंने कहा कि दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) से एक सिफारिश प्राप्त हुई थी, जो व्यापक शोध के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि स्पा केन्द्र वस्तुतः वेश्यावृत्ति केंद्रों के रूप में चलाए जा रहे है. 

डीसीडब्ल्यू और नगर निगमों की ओर से पेश वकीलों ने भी प्रतिबंध का बचाव किया।

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ वकील सचिन दत्ता ने दलील दी कि स्पा मालिकों के मौलिक अधिकार को कार्यकारी आदेश द्वारा नहीं लिया जा सकता है और सभी स्पा केंद्रों को ‘‘समान रूप से चित्रित नहीं किया जा सकता है.''

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