दिल्ली में टीचर्स के फिनलैंड टूर को लेकर आम आदमी पार्टी और एलजी विनय सक्सेना के बीच तकरार जारी है. इस बीच दिल्ली सीएम ने आज विदेशों से ट्रेनिंग लेकर आये लगभग एक हज़ार अध्यापकों से बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि आप लोगों की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा, जब हमारी सरकार बनी तो जज्बा था कि सरकारी स्कूलों को भी अब अच्छा करेंगे, उसी के तहत हमने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए बाहर भेजा, लेकिन आप लोगों ने वहां क्या सीखा ये बात करने का मौका आज मिला.
इसी के साथ सभी ने आज एक लाइन बोली की पहले वो ख़ुद को एक मैनेजर समझते थे लेकिन अब शिक्षकों ने ख़ुद को लीडर समझना शुरू कर दिया क्योंकि शिक्षा क्रांति के लिए ये अच्छा है. हमारे यहां एक सामंतवादी सोच थी कि सरकारी स्कूलों में सिर्फ गरीबों के बच्चों पढ़ते थे. जैसा कि मनीष जी ने बताया कि ट्रेनिंग के नाम पर एक सेमिनार कर लेते थे, लेकिन जैसा कि उपाध्याय जी ने बताया कि वहां खुद न्यूटन की लैब देखी, तो सेमिनार में ज्ञान मिलता है और ट्रेनिंग में अनुभव. पहले माना जाता था कि सरकारी स्कूलों के टीचर्स को विदेश ट्रेनिंग के लिए भेजने की क्या जरूरत है, लेकिन हमने उस सोच को तोडा, जहां भी सीखने को कुछ मिलता है हम भेजते हैं.
हम शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजते हैं हम खुद नहीं जाते, मैं खुद जब से मुख्यमंत्री बना हूं सिर्फ दो बार इटली और साउथ कोरिया गया हूं. हमें अपने स्कूलों की तुलना देश के स्कूलों से नहीं दुनिया के बेहतर स्कूलों से करनी है, दिल्ली के शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सुधार हुआ है, तभी 4 लाख लोगों ने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों से निकालकर सरकारी स्कूलों में डाला. मैं ये नहीं कहता कि सब कुछ हो गया अभी तो हमें बहुत कुछ करना है. गरीब बच्चों को पढ़ाकर एक पीढ़ी की गरीबी दूर कर सकते हैं, अगर ये आजादी के समय से किया गया होता तो अमीर बन गए होते.
इसी मसले पर दिल्ली के डिप्टी सीएम नीष सिसोदिया ने कहा कि ये संवाद ऐसे टीचर्स के साथ हो रहा है जो विदेशों में ट्रेनिंग लेकर आए हैं, एक शिक्षक ने बताया कि उनके पास फोन आता है कि क्या बदलाव आए हैं, हमारे राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इस बात को मानते हैं. ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल जी के 2015 में मुख्यमंत्री बनने से पहले ट्रेनिंग नहीं होती थी, लेकिन पहले किसी रिटायर्ड लोगों को बुलाकर 2 घंटे का सेमिनार किया जाता था और उसी को ट्रेनिंग कहते थे. लेकिन 2015 के बाद हमने तय किया कि एक बार के लिए टाट पट्टी पर पढ़ाया जा सकता है लेकिन टीचर्स की बिना ट्रेनिंग के काम नहीं चलेगा.
हमने हापुड़ से लेकर हार्वर्ड तक का सफर किया. IIM से लेकर यहां भी शिक्षा में कुछ अच्छा हो रहा था. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक प्राइवेट स्कूलों में भी हमने अपने प्रिंसिपल और शिक्षकों को भेजा. IIT के साथ भी काम किया. लेकिन आज जो लोग यहां मौजूद हैं वो तीन देशों फिनलैंड, सिंगापुर और ब्रिटेन में ट्रेनिंग करके आए हैं. फिनलैंड शिक्षा के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. वहां टीचर्स के ऊपर इंस्पेक्टर नहीं रखें जाते हैं क्योंकि उन्हें टीचर्स ट्रेनिंग पर भरोसा रखते हैं. ये सफर जारी रहना चाहिए.
2015 में जब हमने IIM में 1000 टीचर्स को ट्रेनिंग के लिए भेजने की बात की तो वहां के प्रोफेसर ने कहा कि 30/30 के बेच में तो बहुत समय लग जाएगा. हम दिल्ली आकर ट्रेनिंग दे देंगे. इसलिए हमने तय किया कि IIM में रहकर ट्रेनिंग लेना भी ट्रेनिंग का हिस्सा है, चाहे जितना खर्च हो या समय लगे IIM भेजकर ही ट्रेनिंग कराएंगे, यही हमने विदेशी ट्रेनिंग में भी कराया. अब विदेश से ट्रेनिंग लेकर आए शिक्षक अरविंद केजरीवाल के साथ अपना अनुभव साझा कर रहे हैं.
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