दिल्ली में इस बार किधर जाएगा सिख वोटर, चुनाव पर क्या होगा किसान आंदोलन का असर

दिल्ली में सिख समुदाय की आबादी करीब छह फीसदी है. वोट के नजरिए से यह एक बड़ा वोट बैंक है. दिल्ली का सिख वोटर पहले कांग्रेस को वोट देता रहा, लेकिन 1884 के सिख विरोधी दंगों की वजह से वह उससे छिटक गया. आइए जानते हैं कि इस बार के चुनाव में सिख मतदाता कैसे वोट करेंगे.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
नई दिल्ली:

दिल्ली में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर-शोर से चल रहा है. राजनीतिक दल आरोप-प्रत्यारोप में लगे हुए हैं.नई दिल्ली सीट से बीजेपी उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने पंजाब को लेकर एक बयान दिया है. उनके बयान को आम आदमी पार्टी ने पंजाब और पंजाबियों के सम्मान से जोड़ कर मुद्दा बना दिया हैं. इसको लेकर दिल्ली की राजनीति गरमा गई है. चुनावी माहौल में इसे सिख मतदाताओं से जोड़कर भी देखा जा रहा है. आइए देखते हैं कि दिल्ली की राजनीति में सिख मतदाताओं की स्थिति क्या है और पहले के चुनावों में उनका रुख कैसा रहा है. इस बार दिल्ली चुनाव में सिख मतदाता किन मुद्दों के आधार पर वोट करेंगे. 

दिल्ली में सिख मतदाताओं की ताकत

दिल्ली में करीब 6 फीसदी सिख मतादाता माने जाते हैं. इनकी संख्या 10 लाख से अधिक है. मतदाताओं की यह संख्या किसी भी राजनीतिक दल का भविष्य बना और बिगाड़ सकते हैं. लेकिन दिल्ली के ये सिख मतदाता पश्चिम दिल्ली को छोड़कर बिखरे हुए हैं. माना जाता है कि दिल्ली के राजौरी गार्डन, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, चांदनी चौक, राजेंद्र नगर, गांधी नगर, शाहदरा, कालकाजी और ग्रेटर कैलाश जैसी विधानसभा सीटों पर सिख मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. पिछले चुनाव में इनमें से अधिकांश सीटें आम आदमी पार्टी ने जीती थीं. 

किस आधार पर वोट करते हैं सिख

दिल्ली की सिख राजनीतिक के एक जानकार कहते हैं कि दिल्ली के सिख पहले कांग्रेस से जुड़े हुए थे. वो कांग्रेस को ही वोट देते थे. लेकिन जनसंघ में पंजाबी नेताओं का कद बढ़ने के साथ वो जनसंघ की ओर भी चले गए. लेकिन 1984 के बाद सिख कांग्रेस से कट गए और बीजेपी की ओर गए. दिल्ली में बीजेपी के कमजोर होने पर वो फिर कांग्रेस के साथ चले गए. आम आदमी पार्टी के उदय के बाद वो उसकी तरफ गए.वो कहते हैं कि सिख कहीं के भी हों दिल से पंजाब के साथ जुड़े होते हैं. ऐसे में पंजाब की राजनीति का उन पर असर होता है. इसलिए इस बार भी दिल्ली की राजनीति पर पंजाब की राजनीति का असर दिखाई देगा. वह कहते हैं कि इस बार दिल्ली के सिख मतदाता जब वोट देने के लिए निकलेंगे तो उनके मन किसानों का आंदोलन जरूर होगा. बीजेपी ने किसानों के आंदोलन को सिख समुदाय से जोड़ दिया, इससे सिख समुदाय खुश नहीं हैं. इसके साथ ही वो कहते हैं कि पंजाब में आई आम आदमी पार्टी की सरकार अपने चुनावी वादों को पूरा कर पाने में नाकाम रही है. इसका असर भी दिल्ली की राजनीति पर होगा.

दिल्ली के चुनाव मैदान में सिखों की दावेदारी

इस बार के चुनाव में बीजेपी ने तीन, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चार-चार सिख उम्मीदवार उतारे हैं. इस बार केवल कांग्रेस ने ही एक सिख महिला को चुनाव मैदान में उतारा है. लेकिन इनमें खास बात यह है कि सभी पार्टियों ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है. बीजेपी ने जिन तीन नेताओं को दिया है, उनमें से अरविंदर सिंह लवली और तरविंदर सिंह मारवाह कांग्रेस छोड़कर उसके साथ आए हैं. ये दोनों नेता कांग्रेस के टिकट पर कई बार विधायक चुने गए हैं. वहीं मनजिंदर सिंह सिरसा अकाली दल छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. दिल्ली के चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे सिख नेताओं के सामने अपनी उपयोगिता साबित करने की भी चुनौती है. उन्हें अपनी सीटों के साथ-साथ उन सीटों पर भी अपनी पार्टी को वोट दिलवाने होंगे, जहां सिख ठीक-ठाक संख्या में हैं. अब इस कोशिश में कौन कितना सफल होता है, इसका पता आठ फरवरी को ही चल पाएगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे. 

ये भी पढ़ें: यूपी और दिल्ली में FIITJEE के कोचिंग सेंटर पर लगा ताला, छात्र और मां-बाप परेशान, जवाब देने वाला कोई नहीं

Featured Video Of The Day
Bihar में हर परिवार को 20 महीने में देंगे सरकारी नौकरी..Tejashwi Yadav का बड़ा ऐलान | Bihar Election
Topics mentioned in this article