टीबी पर दिल्ली एम्स की मास्टर क्लास, देश के 300 डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य

टीबी की पहचान को लेकर उलझनों को भी सुलझाया जा रहा है. दो खेप में एम्स देश के अलग अलग राज्यों के 300 डॉक्टरों के एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी को लेकर ट्रेनिंग दे रहा है. ये डॉक्टर अपने राज्यों के डिस्ट्रिक्ट के डॉक्टरों को ट्रेंड करेंगे.

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नई दिल्ली: 2025 तक भारत से टीबी के खात्मे का लक्ष्य है, लेकिन एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की पहचान बड़ी चुनौती है. ऐसे में दिल्ली एम्स सेंट्रल टीबी डिवीजन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर देश के तमाम राज्यों के 300 डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने में जुटा है. ताकि समय पर पहचान भी हो और मरीजों की यूनिफॉर्म स्टैंडर्ड केयर भी की जा सके.

एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नीरज निश्चल कहते हैं कि सिर के बाल और नाखून शायद दो स्ट्रक्चर ऐसे हैं, जो टीबी से एफेक्ट नहीं होते. इसके अलावा शरीर के हर ऑर्गन को टीबी एफेक्ट कर सकता है. स्किन, आई, नाक, कान, गला, खाने की नली, जेनिटल सिस्टम, बोन ये सारे ऑर्गन इफेक्ट हो सकते हैं. लिहाजा दिल्ली के एम्स में मास्टर क्लास चलाया जा रहा है. देश के डॉक्टरों को यहां ट्रेनिंग एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी की दी जा रही है. 

'150 लोगों की हो रही है ट्रेनिंग...'
टीबी की पहचान को लेकर उलझनों को भी सुलझाया जा रहा है. दो खेप में एम्स देश के अलग अलग राज्यों के 300 डॉक्टरों के एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी को लेकर ट्रेनिंग दे रहा है. ये डॉक्टर अपने राज्यों के डिस्ट्रिक्ट के डॉक्टरों को ट्रेंड करेंगे. एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रमुख नवीत विग ने एनडीटीवी को बताया कि अब मास्टर्स ट्रेनर को प्रोड्यूस किया जा रहा है. 150 लोगों की ट्रेनिंग हो रही है. 1 से 3 तारीख तक और फिर 6 से 8 नवंबर 150 लोगों की और ट्रेनिंग होगी, जो ये मास्टर ट्रेनर्स हैं ये डिफरेंट स्टेट्स, डिफरेंट मेडिकल कॉलेज और डिफरेंट स्पेशियलिटी से हैं. यूरोलॉजी, ईएनटी, न्यूरोलॉजी, गैस्ट्रो एंटरोलॉजी, डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन एम्स ने इसमें लीड लिया। डॉक्टर नीरज ने इसमें बहुत मदद किया. इसके बाद हमने सेंट्रल टीबी डिवीजन और WHO के साथ मिलकर ये डॉक्यूमेंट को प्रोड्यूस किया. 

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देश में करीब 7 लाख एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के मरीज़ हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में पहचान मुश्किल है. डॉक्टर निश्चल कहते हैं कि बर्डन करीब 27 से 28 लाख के बीच है. पूरे देश भर में इसका एक चौथाई मानकर चल रहे हैं कि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के पेशेंट्स हैं. रफ स्टेटमेंट 20 से 40% के बीच है, जो भी टोटल बर्डन है.

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बता दें कि ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी की बीमारी आमतौर पर फेफड़ों से संबंधित एक संक्रामक बीमारी है जिसके लक्षण देर से नजर आते हैं और जब इनके बारे में सही से पता लगता है तब तक ये गंभीर होकर शरीर के बाकी अंगों पर भी बुरा असर डालते हैं. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ( Mycobacterium tuberculosis) नाम के बैक्टीरिया जनित ये बीमारी पीड़ित द्वारा छींकने, खांसने से दूसरों को संक्रमित कर सकती है. कमजोर इम्यूनिटी या पहले से बीमार लोग टीबी की चपेट में जल्दी आते हैं. इसलिए इस बीमारी में इलाज से ज्यादा जरूरी इसके लक्षणों को पहचानना होता है. 

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