नेताओं के खिलाफ सालों चलने वाले मामलों का ट्रेंड बदला, सुप्रीम कोर्ट की वजह से अब जल्द हो रहे हैं फैसले

विशेष अदालतों ने अकेले पिछले साल  4,697 लंबित मामलों में से 2,018 में फैसले दिए. जिससे इस बात का अंदाजा साफ हो रहा है कि अब जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सालों साल चलने वाले मामलों का ट्रेंड बदल रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट ( फाइल फोटो )

सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले में सुप्रीम कोर्ट की लगातार निगरानी के चलते सासंदो/ विधायकों पर जल्द फैसले आ रहे हैं. इस बारे में एमिक्स क्यूरी की दाखिल रिपोर्ट में खुलासा हुआ है. विशेष अदालतों ने अकेले पिछले साल  4,697 लंबित मामलों में से 2,018 में फैसले दिए. जिससे इस बात का अंदाजा साफ हो रहा है कि अब जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सालों साल चलने वाले मामलों का ट्रेंड बदल रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में आरपी एक्ट की धारा 8(4) को रद्द कर दिया था, जिसमें दोषी सासंद/ विधायकों को, जिन्हें दो साल से अधिक की सजा सुनाई गई थी. सदन में अपनी सीट बरकरार रखने की अनुमति दी गई थी अगर वे सजा के 90 दिनों के भीतर उच्च मंच पर सजा के खिलाफ अपील दायर करते थे. वर्तमान में, दो साल से या अधिक की सजा होने  पर अयोग्यता स्वत: रद्द  हो जाती है और सांसद/विधायक सदन में अपनी सीट तभी वापस पा सकते हैं, जब कोई उच्च मंच दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगाता है.

पूर्व और वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों पर वकील स्नेहा कलिता की सहायता से डेटा संकलित करते हुए, एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने  अपनी 20 वीं रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि लोकसभा चुनाव 2024 के लिए चरण- I और चरण- II, 2,810 उम्मीदवारों (चरण- I - 1,618, और चरण- II - 1,192) में से, 501 (18%) उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं. जिनमें से 327 (12%) गंभीर प्रकृति के हैं (पांच वर्ष और अधिक कारावास से दंडनीय ).

हंसारिया ने सासंदों / विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के निपटान में उत्साहजनक प्रवृत्ति का विवरण दिया है. 1 जनवरी, 2023 तक लंबित 4,697 मामलों में से ट्रायल कोर्ट ने 2,018 मामलों (43%) का फैसला किया. हालांकि पिछले साल सांसदों/ विधायकों के खिलाफ 1,746 मामले और जुड़ गए, जिससे लंबित मामलों की संख्या 4,472 हो गई. उत्तर प्रदेश में वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ सबसे अधिक 1,300 आपराधिक मामले थे, जिनमें से 766 मामलों (59%) का निपटारा किया गया.

सासंदों/ विधायकों के खिलाफ कम से कम 610 नए मामले राज्य में विशेष अदालतों में पहुंचे. जिससे लंबित मामलों की संख्या 1,146 हो गई, जो राज्यों में ऐसे मामलों की सबसे अधिक लंबित संख्या है. दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली की अदालतों ने पिछले साल 105 लंबित मामलों में से 103 का फैसला करके ऐसे मामलों का लगभग 100% निपटान हासिल किया. हालांकि, लंबित मामलों की संख्या में 108 और जोड़े गए, जिससे लंबित मामले 110 हो गए.

लेकिन पिछले साल सांसदों/ विधायकों के खिलाफ मामलों की निपटान दर हरियाणा (10%; 48 में से पांच), हिमाचल प्रदेश (11%; 72 में से आठ) में बेहद खराब रही. जम्मू-कश्मीर (13 में से 0 ), ओडिशा (12%; 440 में से 56), तेलंगाना (18%; 22 में से चार), और बिहार (32%; 525 में से 171)।

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