बॉम्बे हाईकोर्ट से शिंदे गुट को झटका: फैसला से पहले उद्धव गुट के साथ जोरदार बहस, जानें किसने क्या कहा..

पुलिस ने अपने जवाब में साफ कहा कि दोनों विरोधी पक्ष हैं एक दूसरे के सामने आ सकते हैं. लॉ एंड ऑडर की समस्या बन सकती है, इसीलिए इजाजत नहीं दी जाए.

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बॉम्बे हाईकोर्ट में दशहरा रैली को लेकर शिंदे गुट और उद्धव गुट के बीच जोरदार बहस हुई.
मुंबई:

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवाजी पार्क के संबंध में एकनाथ शिंदे खेमे के विधायक सदा सर्वंकर द्वारा किए गए हस्तक्षेप को खारिज कर दिया है. सदा सर्वंकर ने शिवाजी पार्क में दशहरा रैली आयोजित करने के लिए आवेदन दिया था. हालांकि, एकनाथ शिंदे खेमे को पहले से ही बीकेसी मैदान में दशहरा रैली आयोजित करने की अनुमति है.

सदा सर्वंकर ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उद्धव ठाकरे गुट की याचिका में हस्तक्षेप करते हुए दावा किया था कि वे असली शिवसेना हैं. आदेश के अनुसार, अदालत ने स्वीकार किया कि सदा सर्वंकर के तर्क का कोई ठिकाना नहीं है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास इस याचिका में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.

शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका पर जस्टिस आरडी धानुका और कमल खाता की बेंच के सामने सुनवाई हुई. शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट से अस्पी चिनॉय ने दलील दी. वहीं बीएमसी की तरफ से एड मिलिंद साठे ने अपनी बात रखी. वहीं शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से एड जनक द्वारकादास ने बहस की.

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शिवसेना की तरफ से  एड एस्पि चिनॉय ने दलील दी कि शिवसेना 1966 से शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन करता आया है. सिर्फ कोरोना काल के कारण दशहरा का आयोजन नहीं किया गया था. अब कोविड के बाद सारे फेस्टिवल मनाये जा रहे हैं. ऐसे मे इस साल यानि 2022 में हमें दशहरा मेला का आयोजन करना है इसके लिए हमने अर्जी की है. दशहरा मेलावा शिवसेना की एक परम्परा है. चौंकाने वाली बात है कि अब अचानक एक और दूसरा एप्लीकेशन आ गया है मेलावा के लिए. पिछले पचासों साल से उस जगह पर हम दसहरा मेलावा कर रहे हैं और हर बार इजाजत मिलती थी. अब अचानक राजनीति के चलते सदा सर्वनकर विरोधी पक्ष में चले गए हैं वो सिंगल व्यक्ति हैं पूरी शिवसेना नहीं हैं उसका कैसे अधिकार बन सकता है.

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शिवसेना के वकील ने कहा कि हर बार शिवसेना की तरफ से सदा परमिशन लेते थे, लेकिन वो अब शिवसेना के नहीं है तो उनका कोई अधिकार नहीं बनता. इजाजत के लिए हमने 22 तारीख को अर्जी दी थी और सदा ने 30 तारीख को. वहीं पुलिस की मानें तो पुलिस आज बता रही है कि लॉ एंड ऑडर बिगड़ सकता है. क्या पिछले 50 सालों से पुलिस नहीं थी 2016 से पहले दशहरा रैली को लेकर सिर्फ ध्वनि प्रदूषण की शिकायत थी उसके बाद से वो शिकायत भी नहीं रही. सदा की याचिका हमारे मांग का विरोध नहीं कर रही, बल्कि खुद इजाजत मांग रही है. इनकी याचिका ने कहा गया है कि असली सेना एकनाथ शिंदे गुट है और कोई नहीं है. इस बात की लड़ाई SC और इलेक्शन कमीशन में जारी है. बिलकुल साफ है कि शिवसेना एक है तो दो दावेदार कैसे हो सकते हैं. सदा एक इंडिविजुअल हैं इनकी याचिका सही नहीं है.

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वहीं शिंदे गुट के वकील मिलिंद साल्वे ने बहस के दौरान कहा, शिवाजी पार्क एक खेलने का मैदान है और वो साइलेंट जोन में आता है. याचिका में बताया गया है कि साल 2016 का GR है. जिसमें कहा गया है कि दशहरा मेलावा के लिए शिवाजी पार्क में इजाजत है, लेकिन उसी GR में यह भी कहा गया है की अगर कोई लॉ एंड ऑडर की समस्या होगी तो वहां कोई भी आयोजन नहीं किया जा सकता.

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पुलिस इस मामले में अपनी रिपोर्ट देती है कि कोई आयोजन वहां होगा तो लॉ एंड ऑडर उन्हें संभालना होता है. ऐसे में अब जब दो गुट आमने-सामने है, तब पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में इजाजत देने से मना कर दिया और पुलिस के उसी रिपोर्ट के आधार पर हमने दोनों गुटों को इजाजत नहीं दी.

बीएमसी के वकील ने जीआर को पढ़ा, साथ की उदाहरण के तौर पर पहले के पुराने ऑडर पढ़े. उन्होंने कहा कि जीआर के मुताबिक कोई भी जबरन पार्क में कोई आयोजन नहीं कर सकता. जो GR के नियम हैं उसके तहत दशहरा रैली को इजाजत मिली थी. लेकिन यहां GR के नियम का पालन नहीं हो रहा है. GR में यह भी कहा गया है कि रैली के लिए हर साल इजाजत लेनी जरूरी है. अदालत का आदेश पहले से ही रहा है कि शिवाजी पार्क में कोई भी पॉलिटिकल कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकता. तब दशहरा साल का एक त्योहार है ये बताकर शिवसेना की तरफ से इजाजत मांगी जाती थी, लेकिन आज हालात अलग है. जो GR 2016 का है, उसमें साफ साफ लिखा है कि कौन-कौन से कार्यक्रम शिवाजीपार्क में किये जा सकते हैं. उसमें 26 जनवरी, 15 अगस्त, बाल दिवस, अम्बेडकर पुण्यतिथि, गणेश उत्सव के 3 दिन और गुडीपर्व ये सब कार्यक्रम पार्क में किये जा सकते हैं. इसमें कहीं नहीं लिखा है कि दशहरा मेलावा को इजाजत है.

मिलिंद साठे ने कहा कि 2017 में अनिल देसाई, सदा सर्वंकर और शशि फड़ते ये तीनों ने एप्लीकेशन किया था. 2019 में दो अर्जी की गई थी और इजाजत अनिल देसाई के नाम से दी गई थी. तब सदा और अनिल देसाई दोनों एक ही पार्टी के थे, तब हमने देसाई की अर्जी पर इजाजत दी थी. 2020 में फिर से सदा sarvankar ने अर्जी दी थी, लेकिन कोविड के चलते परमिशन नहीं मिली थी. गणेश विसर्जन के दिन भी दोनों गुटों में झगड़ा हुआ था, इसकी जानकारी भी BMC ने अदालत में दी.

सदा और अनिल देसाई उद्धव गुट दोनों ने बीएमसी को पत्र लिखकर कहा कि शिवसेना को दशहरा रैली की इजाजत दी जाए. ऐसे में दोनों शिवसेना का नाम लेकर इजाजत मांग रहे है. बीएमसी ने मुंबई पुलिस से पत्र लिखकर जवाब मांगा तो पुलिस ने अपने जवाब में साफ कहा कि दोनों विरोधी पक्ष हैं एक दूसरे के सामने आ सकते हैं. लॉ एंड ऑडर की समस्या बन सकती है, इसीलिए इजाजत नहीं दी जाए. 14 सितंबर 2022 को पुलिस ने बीएमसी को पत्र लिखकर कहा था कि अवैध बैनर निकाला जाये, क्योंकि बैनरबाजी के चलते दादर और शिवाजी पार्क इलाके में लॉ एंड ऑडर बिगड़ सकते हैं. दोनों गुटों मे लगातार चल रहे विवाद और पुलिस के जवाब के बाद 21 तारीख को हमने दोनों को इजाजत देने से मना कर दिया.

बीएमसी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 2004 के एक आदेश का हवाला दिया जिसमें लिखा है. "न्यायालयों को कानून और व्यवस्था के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और इसे प्रशासन द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए."

सदा सरवणकर की तरफ से वकील जनक द्वारकादास ने कहा, मेरी याचिका यहां एक व्यक्ति के रूप में नहीं है, मैं शिवसेना हूं. मैं दादर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हूं. आप कैसे कह सकते हैं कि मैं विधायक नहीं हूं? मैं विधायक हूं और अभी सरकार में हूं. आप मुझे मेरी ही पार्टी के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि मेरा कोई ठिकाना नहीं है. आप कैसे कह सकते हैं कि मैं शिवसेना नहीं हूं. मैं स्थानीय विधायक हूं, मैंने पार्टी नहीं छोड़ी है, मुझे निष्कासित नहीं किया गया है. मैं शिवसेना पार्टी की सरकार में हूं.