आखिर महिलाओं को कब मिलेंगे पुरुषों के बराबर मौके, भारत ही नहीं US में भी यही स्थिति...?

कई बार निकट भविष्‍य में गर्भवती होने वाली महिलाओं को काम पर ही नहीं रखा जाता. ये वैसा ही है जैसे ये कहना कि ऑफिस में महिलाओं को यौन शोषण से बचाना हो, तो उन्हें हायर ही मत करो. मैटरनिटी बेनेफिट न देना पड़े, तो उस आयु वर्ग की महिलाओं को काम पर ही मत रखो.

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हाईब्रिड तरीके से काम करना पसंद करती हैं महिलाएं...! (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्‍ली:

भारत में भले ही महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए बराबर मौके देने की बात कही जाती है, लेकिन इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि कॉरपोरेट्स या कहें इंडिया इंक के भीतर जेंडर-इंक्लूजिविटी एक बड़ी समस्या है. महिलाओं को कॉरपोरेट सेक्‍टर में उतने मौके नहीं मिलते, जितने पुरुषों को मिलते हैं. कुछ लोग इस बात पर आपत्ति जता सकते हैं, लेकिन सच्‍चाई यही है. आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं. कोरोना महामारी के बाद जेंडर इंक्‍लूजिविटी की समस्‍या में इजाफा हुआ है. BQ Prime की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल ही में आई एक स्‍टडी भी इस बात की तस्‍दीक करती है.   

  • वूमेन इन द वर्कप्‍लेस 2022 ग्लोबल जेंडर वेल्थ इक्विटी रिपोर्ट कहती है कि भारत में जब एक वर्किंग महिला रिटायर होती है, तब वह पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 64% संपत्ति ही अर्जित कर पाती है. 
  • भारत में एक ही पद पर काम काम करने वाली महिलाओं को मर्दों के मुकाबले 28 फीसद कम सैलरी मिलती है. कई बार ऐसा एक ही ऑफिस और डिपार्टमेंट में भी देखने को मिलता है. 
  • कोरोना महामारी के दौरान महिलाकर्मियों की भागीदारी में 16.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. इस दौरान महिलाओं को कई भूमिकाएं एक साथ निभानी पड़ीं. 
  • भारत में प्रत्‍येक कामकाजी महिला 5.5 घंटे ऐसे कामों में लगाती हैं, जिनके बदले उन्हें कोई सैलरी नहीं मिलता. जैसे रोजमर्रा के घर और बाहर के काम. बच्‍चों को संभालना, खाना बनाना आदि. वहीं, पुरुषों के लिए ऐसे कामों में खर्च किया गया समय महज 1.5 घंटे है.

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'ग्रेट ब्रेकअप', क्‍या महिलाओं को मिल रहे पुरुषों के बराबर मौके...?
लर्नइन.ओआरजी(LeanIn.Org) और मैकिंजी की 'कार्यस्थल पर महिलाएं' नाम से छपी रिपोर्ट में ऐसे आंकड़े पेश किए गए हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे. बता दें कि ये कॉरपोरेट सेक्‍टर पर अमेरिका में महिलाओं की स्थिति को लेकर अब तक की सबसे बड़ी स्टडी है. रिपोर्ट सबसे पहले ‘ग्रेट ब्रेकअप' की बात करती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाएं काम को लेकर महत्वाकांक्षी हो रही हैं. वे इसे पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में अपनी कंपनियां छोड़ रही हैं. लेकिन नौकरी छोड़ने पर उन्हें वहां दूसरे मौके मिल रहे हैं. भारत में भी महिलाएं नौकरी छोड़ जरूर रही हैं, लेकिन क्या उनके पास बेहतर विकल्प हैं? इसका जवाब है, शायद नहीं...! कोविड और उसके बाद बिगड़े आर्थिक हालात में कई लोगों की नौकरियां गईं. कंपनियों के पास जब पुरुष और महिला के बीच चुनने की बारी आई, तो उन्होंने पुरुषों को प्राथमिकता दी और महिलाओं को निकाल दिया. देश के भीतर और बाहर, महिलाओं का एक बड़ा तबका, फ्रीलांस के मौके ढूंढ़ रहा है, जो उन्हें काम की आजादी तो देता है लेकिन पैसा बहुत ज्यादा नहीं देता.

हाईब्रिड तरीके से काम करना पसंद करती हैं महिलाएं...! 
कोरोना महामारी के बाद भारत समेत कई देशों में वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) का कल्‍चर शुरू हुआ, जो महिलाओं को काफी पसंद आ रहा है. ज्यादातर महिलाएं रिमोट या हाइब्रिड तरीके से काम करना पसंद करती हैं यानी हर रोज ऑफिस जाने की पाबंदी न हो. इसकी  वजह है- महिलाओं पर ऑफिस में होने वाली आक्रामकता, शोषण या यौन शोषण. अगर महिलाएं घर से काम करती हैं, तो उन्‍हें ये सब नहीं झेलना पड़ रहा. ये बात भारतीय महिलाओं पर भी लागू होती है. हालांकि, भारतीय महिलाओं के लिए घर से काम करने का मतलब है- घर का भी काम करना. यानि एक साथ दो-दो काम करना.

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आखिर, लीडरशिप रोल में कहां हैं महिलाएं?
हम भले ही महिलाओं को बराबरी के मौके देने की बात करते हों, लेकिन हकीकत इससे बिल्‍कुल जुदा है. अमेरिका में तमाम कोशिशों के बावजूद टॉप लेवल लीडरशिप में 4 में से 1 पोजीशन पर ही महिला लीडर है. ये नंबर भारत में और भी कम है. भारत में टॉप लेवल लीडरशिप रोल वाली महिलाएं महज 15 प्रतिशत हैं, जबकि वैश्‍विक प्रतिशत 25 फीसद है. स्टॉक मार्केट में लिस्टेड कंपनियों के बोर्ड में एक महिला डायरेक्टर का होना जरूरी है. लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है. ऐसे में कई कंपनियां इस नियम को पूरी तरह से अनदेखा करते हुए या तो जुर्माना भर रही हैं या फिर उन्होंने दोस्तों और परिवार से ही किसी महिला को दिखावटी तौर पर बोर्ड में शामिल कर लिया है.

महिलाओं को यौन शोषण से बचाना हो, तो उन्हें हायर ही मत करो...!
भारत में कामकाजी महिलाओं को गर्भवती होने पर अवकाश से लेकर कई सुविधाएं देना अनिवार्य कर दिया गया है. इसे लेकर कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन इसमें अपनी कुछ बुनियादी कठिनाइयां हैं. कई बार ऐसी महिलाओं को काम पर ही नहीं रखा जाता. ये वैसा ही है जैसे ये कहना कि ऑफिस में महिलाओं को यौन शोषण से बचाना हो, तो उन्हें हायर ही मत करो. मैटरनिटी बेनेफिट न देना पड़े, तो उस आयु वर्ग की महिलाओं को काम पर ही मत रखो. वहीं, पुरुषों की हायरिंग के मामले में उम्र का ये दायरा कभी आड़े नहीं आता है. 

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रिपोर्ट कहती है कि महिला और पुरुष मैनेजर्स के बीच एक खास अंतर बढ़ता जा रहा है. महिलाकर्मियों के स्किल अपग्रेड और मेंटरिंग पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा. जूनियर महिलाकर्मियों को बहुत कम ऐसे लोग दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें वो अपना आदर्श बना सकें. जिसकी वजह से उन्हें लगता है कि उनका करियर भी मिडिल मैनेजमेंट तक ही रहेगा और आगे नहीं बढ़ पाएगा. भारत में एक और अजीब स्थिति देखने को मिल रही है. लड़कियां पढ़ रही हैं, हायर एजुकेशन में डिग्रियां भी ले रही हैं. इसके बावजूद वो वर्कफोर्स का हिस्सा नहीं बन रहीं. ये आंकड़े, ये रिपोर्ट, ये बातें, ये सच थोड़े कड़वे लगते हैं लेकिन हमें बहुत जरूरी लगते हैं. तस्वीर बदलने के लिए और दिखावटी बातों से उबरने के लिए. ऐसे में हमें निष्‍पक्ष होकर सोचना होता, तभी स्थिति में सकारात्‍मक बदलाव आ पाएगा.

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