मध्यप्रदेश के धार में डैम हादसा टल गया है, लेकिन जितने दिन पानी बांध में रहा सबके जेहन में 42 साल पहले गुजरात में मोरबी के हादसे की कहानी कौंध रही थी. जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हजार लोग मारे गये थे. वहीं विपक्ष के मुताबिक 25 हजार लोग मरे थे. इसको 'एक्ट ऑफ गॉड' कहा गया था. लेकिन वो मानवीय त्रासदी ही थी. धार में भगवान का शुक्र है कि ऐसा कुछ नहीं हो पाया.
1979 में वो 11 अगस्त का ही दिन था. 2022 में भी 11 अगस्त को ही डैम में लीकेज की खबर आई. फर्क सिर्फ इतना कि 11 अगस्त, 1979 को मोरबी में जल सैलाब ने मौका नहीं दिया, अपने साथ हज़ारों जिंदगियां बहा ले गई, मिनटों में शहर श्मशान बन गया. लेकिन 11 अगस्त 2022 में ऑपरेशन कारम के किरदारों ने हादसे के मुंह से जिंदगियों को खींच लिया.
आजादी के जश्न में ये सम्मानित हुए, जिसमें एक हैं बिहार के संजय कुमार भारती. बिना रुके बिना थके, 3 दिनों तक ये पोकलेन मशीन चलाते रहे, जिससे पानी को रास्ता मिले. संजय ने बताया कि पूरे गांव को बचाया, पूरे एरिया को बचना चाहिए. बहुत कठिनाई था, खाने का कोई ठीक नहीं. सिर्फ इतना था कि जल्दी से पानी को बाहर निकालें. अंदर से बहुत गर्व हो रहा है कि लोग नाम तो लेंगे.
कारम नदी में इन सिपाहियों के अलावा 3 कैबिनेट मंत्री, कलेक्टर, कमिश्नर, एसपी सहित पूरा प्रशासनिक अमला जुटा था. 3 दिन आते-आते चट्टानें रास्ता रोक रही थीं, जिससे निबटने के लिए बारूद बिछाने की भी प्लानिंग हो गई थी.
उधर भोपाल में वल्लभ भवन में शुक्रवार से ही तमाम विभागों के आला अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देर रात 2-3 बजे तक सिचुएशन रूम में बैठते, फिर तड़के से ही रणनीति बनती. प्रधानमंत्री, गृहमंत्री को भी पल-पल की जानकारी भेजी जा रही थी, तय हुआ कि बांध के पानी को बाइपास बनाकर खाली किया जाएगा.
जो रणनीति बनी वो ये कि बांध को खाली करना चाहिए, एकदम से पानी वॉल तोड़कर निकाला जाता तो कई बांधों में तबाही मचा सकता था. इसलिए तय किया कि बाइपास चैनल बनाकर पानी निकाला जाए पहले पानी कम निकले फिर बढ़े तो ऐसा कि वॉल कटता जाए को बड़ा हिस्सा निकल जाएगा, गांव को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. 6 बजे से बाइपास का प्लान किया था, साढ़े 9 बजे पानी ने निकलना शुरू किया, कहां से कट करें एक तरफ पहाड़ी वॉल कटेगी नहीं क्योंकि चट्टान है, एक साथ बहुत सारा पानी नहीं निकलेगा. आपदा प्रबंधन का उच्चतम उदाहरण है कारम बांध की परिस्थिति से निकलना.
तीन दिनों में ऑपरेशन कारम के तमाम किरदारों की मेहनत से गुरुवार को जो 15.49 MCM पानी था, वो रविवार रात 2.93 MCM बचा, यानी खतरा टल गया.
ऑपरेशन में कई उतार-चढाव थे, कई दिक्कतें भी थीं. विंध्याचल रेंज की पहाड़ी पर बने कारम डैम में 2018 में ही 8 गांव समा गये थे, इस बार हादसे की चपेट में 18 गांव आ सकते थे. पहली सरहद पर खड़े भाण्डखो गांव के 100 परिवार पहाड़ी पर चले गये थे, लेकिन यहां भी बरसात में परिवार को पानी से बचाने से लेकर खाने तक की दिक्कत थी. फिक्र खेतों में खड़ी मक्का, सोयाबीन और कपास की भी थी.
कई बूढ़े बुर्जुग चढ़ नहीं सकते, उनके परिवार की अपनी मुश्किल थी. बसंती के 7 बच्चे, बूढ़ी सास और खाने को कुछ नहीं बचा था. उसने कहा कि यहां बिजली नहीं है, मां को सुना है, एक को ननद के घर पहुंचाया है रोटी भी नहीं खा पाये हैं, आटा भी नहीं है ढोर ढंखर है छोटे बच्चे हैं.
खैर अब सारे लोग गांव लौट आए हैं. फसल को भी कोई खास नुकसान नहीं हुआ. इस साल से कारम डैम से 42 गांवों के 10 हजार 500 हेक्टेयर में बने खेत लहलहाने थे, उसमें देरी हो गई. करोड़ों पानी में बह गये, लेकिन मोरबी को मध्यप्रदेश में टाल दिया गया.