रूस पर यूक्रेन के हमले के बीच कच्चे तेल (Crude oil ) का दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास तक पहुंच गया है, जो सात सालों में सबसे ज्यादा स्तर है. इस कारण भारत का कच्चे तेल का आयात बिल भी 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है. पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार, देश का कच्चे तेल का आयात बिल मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 में 100 अरब डॉलर को पार कर सकता है. यह पिछले वित्त वर्ष में कच्चे तेल के आयात पर हुए खर्च का करीब दोगुना होगा. इसकी वजह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें 7 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं. पेट्रोलियम मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ ने ये अनुमान जारी किया है. वित्त वर्ष 2021-22 के पहले 10 माह में भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 94.3 अरब डॉलर खर्च किए हैं. इस साल जनवरी में ही कच्चे तेल के आयात पर 11.6 अरब डॉलर खर्च किए गए हैं. कच्चा तेल बढ़ने से पेट्रोल डीजल (Petrol Diesel Prices) भी महंगा हुआ है.
पिछले साल जनवरी में भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 7.7 अरब डॉलर खर्च किए थे. फरवरी2022 में कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो गईं. अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक भारत का तेल आयात बिल दोगुना होकर 110 से 115 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा. भारत अपने कच्चे तेल की 85 प्रतिशत जरूरत को आयात से पूरी करता है. आयातित कच्चे तेल को तेल रिफाइनरियों के जरिये पेट्रोल और डीजल जैसे उत्पादों में बदला जाता है. भारत के पास बेहतर शोधन क्षमता है. वो कुछ पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात भी करता है. लेकिन रसोई गैस यानी एलपीजी का उत्पादन काफी कम है. इसे सऊदी अरब, कतर जैसे देशों से आयात किया जाता है.
वित्त वर्ष 2021-22 के पहले 10 माह अप्रैल-जनवरी में पेट्रोलियम उत्पादों का आयात 3.36 करोड़ टन या 19.9 अरब डॉलर रहा था. जबकि इस दौरान 33.4 अरब डॉलर के 5.11 करोड़ टन पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया गया था. भारत ने 2020-21 के वित्त वर्ष में 19.65 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर 62.2 अरब डॉलर खर्च किए थे. उस समय कोरोना महामारी के कारण कच्चे तेल की कीमतें नरम थीं.
चालू वित्त वर्ष में भारत पहले ही 17.59 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात कर चुका है. भारत दुनिया का तीसरे सबसे बड़ा तेल-गैस आयातक और उपभोक्ता देश है. भारत ने वित्त वर्ष 2019-2022.7 करोड़ टन कच्चे तेल के आयात पर 101.4 अरब डॉलर खर्च किए थे. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ब्रेंट क्रूड स्पॉट के दाम 7 साल के उच्चस्तर 105.58 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए थे. हालांकि, अमेरिका और यूरोपी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, ऊर्जा को उनसे बाहर रखा गया है, जिससे तेल के दाम घटकर 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गए.