"Covid-19 ने मेरा दृष्टिकोण बदल दिया": मिलिए - 59 घंटे में 1200 KM साइकिलिंग करने वाले मणिपुर के शख्स से

मणिपुर के मूल निवासी जॉन खम्मुआनलाल ग्वाइट ने पेरिस-ब्रेस्ट-पेरिस (PBP) की 1,200 किलोमीटर लंबी कठिन साइकिल रेस 59 घंटे में पूरी की

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ग्वाइट ने दुनिया भर के 8,900 साइकिल चालकों में 248 वीं वैश्विक रैंक हासिल की.
नई दिल्ली:

जब जॉन खम्मुआनलाल ग्वाइट (46) ने दो साल पहले कोविड-19 की पहली लहर के चरम के दिनों में साइकिल चलाना शुरू किया तो उन्हें एक बात का यकीन था कि वे फिटनेस, मानसिक स्वास्थ्य और समुदायिक कल्याण को नहीं छोड़ सकते. ग्वाइट मूल रूप से हिंसा ग्रस्त रहे मणिपुर के चुराचांदपुर के पाइते-ज़ोमी हैं. उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में पेरिस-ब्रेस्ट-पेरिस (PBP) की 1,200 किलोमीटर का कठिन सफर 59 घंटे में पूरा किया. सन 1891 में शुरू हुई यह सबसे पुरानी साइकिलिंग प्रतियोगिता मानी जाती है. यह एक कठिन रेस है जिसमें प्रतिभागियों को पेरिस से अटलांटिक तट तक जाना और वापस लौटना होता है.

ग्वाइट न केवल भारत के 290 प्रतिभागियों में से शीर्ष दावेदारों में से एक बनकर उभरे, बल्कि उन्होंने इस बड़ी चुनौती को स्वीकार करने वाले दुनिया भर के 8,900 साइकिल चालकों में 248 वीं प्रभावशाली वैश्विक रैंकिंग भी हासिल की. इस आयोजन को कई लोग "अल्ट्रा-साइकिलिंग का ओलंपिक" भी कहते हैं. यह हर चार साल में एक बार होता है. जब उन्होंने लंबी दूरी की साइकिलिंग शुरू की तो कई लोगों ने उन्हें मना किया, लेकिन वे अपने इरादे पर कायम रहे. 

साइकिलिंग को 43 साल की उम्र में गंभीरता से लेना शुरू किया

उन्होंने कहा, "मैं 43 वर्ष का था जब मैंने साइकिलिंग को गंभीरता से लेना शुरू किया था. यह एक ऐसी उम्र है जब लोग आम तौर पर किसी भी चुनौतीपूर्ण शारीरिक गतिविधि को करने से बचते हैं. हालांकि मैं नियमित रूप से कसरत करता था और मार्शल आर्ट भी करता था. अंतरराष्ट्रीय साइकिलिंग प्रतियोगिताएं प्रतिबद्धता और धैर्य की मांग करती हैं और मेरी उम्र थी इसके लिए बहुत अनुकूल नहीं देखी गृई..लेकिन मेरे दिमाग में केवल एक ही बात थी..मैं उदाहरण के तौर पर दिखाना चाहता था कि मेरे बच्चों के लिए अनुशासन का क्या मतलब है.'' ग्वाइट का परिवार दिल्ली में रहता है. उनकी पत्नी एक सरकारी अस्पताल में वरिष्ठ नर्स हैं और उनका बेटा और बेटी स्कूल में पढ़ते हैं.

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कोविड-19 के दौरान घर की कैद से बचने के लिए साइकिलिंग

उनकी साइकिलिंग कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन के दौरान घर की कैद से बचने के साधन के रूप में शुरू हुई, लेकिन जल्द ही एक नियमित दिनचर्या में शामिल हो गई. उन्होंने कहा, "कोविड-19 सभी के लिए अनिश्चितता का एक कठिन समय था...हमने अपने कई प्रियजनों को खो दिया...मैंने पाया कि साइकिल चलाने का मुझे शांति दे रहा है...मैंने कई दोस्त बनाए और अलग-अलग दोस्तों के साथ साइकिल चलाने के मेरे नियमित क्रम ने मुझे खुशी और समर्थन दिया... ऐसा लगा कि जीवन चलता रहता है, चाहे कुछ भी हो जाए.''

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भारतीय सीमाओं से परे लंबी दूरी की साइकिलिंग

अंतर्राष्ट्रीय साइक्लिंग स्टेज पर जॉन का पदार्पण 2022 में लंदन-एडिनबर्ग-लंदन (LEL) कार्यक्रम के दौरान हुआ. यह लंदन और एडिनबर्ग के बीच 1,500 किलोमीटर तक चलने वाली एक अति सहनशीलता अपनाकर की जाने वाली रेस थी. इस घटना ने भारतीय सीमाओं से परे लंबी दूरी की साइकिलिंग की दुनिया में उनकी शुरुआत का रास्ता खोला. एलईएल एक अग्नि परीक्षा थी, एक ऐसा अनुभव जिसने उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से पेरिस-ब्रेस्ट-पेरिस (PBP) की चुनौती के लिए तैयार किया. भारत में उन्होंने देवभूमि 1000 बीआरएम की भीषण चढ़ाई, कुमाऊं की पहाड़ियों के अप्रत्याशित मौसम में बिना थके सीकेबी 2022 रिटर्न का सफर तय किया.

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मणिपुर से 20 साल पहले दिल्ली आकर बस गए

बीस साल पहले मणिपुर से दिल्ली आकर यहां एक डेटा फर्म में काम करने वाले ग्वाइट के लिए यह आसान नहीं था. गुरुवार को दौड़ पूरी करने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपनी मां को फोन किया, जो चुराचांदपुर में हैं. ग्वाइट ने कहा, "यह सबसे अच्छी खबर थी जो उसने बहुत लंबे समय में सुनी थी. मेरे राज्य में जो हो रहा है उससे मुझे दुख होता है... मैं बस अपने लोगों को बताना चाहता हूं, शांति के बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती है और हर समस्या को बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है."

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