उच्चतम न्यायालय इस कानूनी प्रश्न की पड़ताल करने के लिए सहमत हो गया है कि क्या यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के मामलों को आरोपी और पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है. न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के 26 अगस्त, 2019 के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें एक आरोपी के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द कर दिया गया था. शीर्ष अदालत ने आदेश के खिलाफ केरल सरकार द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया. संबंधित मामले में पेशे से शिक्षक आरोपी के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.
पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा है कि जिला मलप्पुरम के मलप्पुरम थाने में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 9 (एफ) और 10 के तहत दंडनीय अपराधों से संबंधित प्राथमिकी को पक्षों के बीच एक समझौते के आधार पर रद्द कर दिया गया जो उनके अनुसार इस अदालत के फैसले के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं है.'' इसने कहा कि नोटिस जारी कीजिए जिसका जवाब आठ सप्ताह में दिया जाए और अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के 26 अगस्त, 2019 के आदेश पर रोक रहेगी.
शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ केरल सरकार द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी कि जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादियों के बीच पूरे विवाद को "सौहार्दपूर्ण" तरीके से सुलझा लिया गया है और नाबालिग लड़की की मां ने एक हलफनामा दायर करके कहा है कि उसे आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही निरस्त किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है.