बिलकिस बानो के दोषियों को रिहा किए जाने के बाद से ये मामला काफी गरमाया हुआ है. राजनीतिक बयानबाजी के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर चर्चा हो रही है. सर्वोच्च न्यायालय में ये बात सामने आयी कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुजरात सरकार के अनुरोध के दो सप्ताह के भीतर ही 11 जुलाई को दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी थी. गुजरात सरकार ने 28 जून को केंद्र से माफी की मंजूरी मांगी थी. एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसको लेकर सवाल पूछा है.
ओवैसी ने ट्वीट कर पूछा, "रिटायर्ड आईएएस अधिकारी संजीव गुप्ता ने ये मुद्दा उठाया है कि अगर अच्छे व्यवहार की दलील को मान भी लिया जाए तो क्या धारा 435 के तहत मंजूरी के लिए आए किसी केस विशेष पर केंद्र का फैसला राज्यों को माफी से जुड़े उसके अपने दिशा निर्देश से अलग हो सकता है?"
गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म मामले में 11 दोषियों को माफी देने के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी ली गई थी. दोषियों का आचरण सही था और सरकार ने अपने अधिकारों के तहत उनकी रिहाई की सिफ़ारिश की थी.
केंद्र और गुजरात सरकार दोनों ने इन दोषियों को मुक्त करने के लिए सीबीआई और एक विशेष न्यायाधीश की कड़ी आपत्तियों को भी खारिज कर दिया था. सीबीआई ने पिछले साल कहा था कि ये अपराध जघन्य और गंभीर हैं, इसमें किसी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए. एक विशेष न्यायाधीश ने इसे "घृणा अपराध का सबसे बुरा रूप" कहा था. न्यायाधीश ने कहा था कि ये अपराध इसलिए किया गया क्योंकि पीड़ित एक विशेष धर्म की थी. इस मामले में, नाबालिग बच्चों को भी नहीं बख्शा गया.
गौरतलब है कि देश भर में आक्रोश के बीच 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर दोषियों को रिहा किया गया था. गुजरात की जेल के बाहर आते हुए माला और मिठाइयों से इनका स्वागत किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार से बिलकिस बानो मामले का पूरा रिकॉर्ड और दोषियों की रिहाई का पूरा रिकॉर्ड जमा करने को कहा था.
बता दें सीबीआई (CBI) की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को 21 जनवरी 2008 को सामूहिक बलात्कार और बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में बंबई उच्च न्यायालय ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.