महाराष्ट्र में कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए कड़े नियमों का गरीबों के रोजगार पर बुरा असर

सड़कों पर छोटी दुकानें लगाकर गुजर-बसर करने वालों से लेकर घरों, दुकानों में काम करने वाले तक सभी भविष्य को लेकर चिंतित

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महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए कड़े नियमों के चलते लोग बेरोजगार हो गए हैं.
मुंबई:

Maharashtra Coronavirus: कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से महाराष्ट्र में लागू कड़े नियमों का सबसे ज़्यादा असर गरीब वर्ग पर पड़ा है. लोगों के पास काम नहीं है और ना ही पैसे बचे हैं. कई लोग कर्ज़ लेकर घर चला रहे हैं. हालात यह हैं कि लोग महीनों से घर का किराया नहीं दे पा रहे हैं और उधार में राशन लेकर काम चला रहे हैं. रोजगार हैं नहीं और काम-धंधे सब बंद हैं. सड़कों पर छोटी दुकानें लगाकर गुजर-बसर करने वालों से लेकर घरों, दुकानों में काम करने वाले तक सभी भविष्य को लेकर चिंतित हैं.   

मुंबई के मानखुर्द इलाके में रहने वाली बिंदु यूं तो लोगों के घरों में साफ-सफाई से लेकर, मॉल में सिक्योरिटी गार्ड और  बच्चों या मरीजों की केयरटेकर तक का काम करती थीं लेकिन महाराष्ट्र में बढ़े कोरोना के मामलों के बाद एक बार फिर से बेरोजगार हो गई हैं. इनके परिवार में इनके अलावा दो छोटे बच्चे हैं. कमाने वाली यह अकेली हैं लेकिन फिलहाल कमाने का कोई साधन इनके पास नहीं है. गुज़ारे के लिए राशन उधार ला रही हैं और साथ ही कुछ लोगों से कर्ज भी ले चुकी हैं. इतनी गंभीर परिस्थिति के बावजूद बिंदु चाहती हैं कि उनका भविष्य बेहतर हो इसलिए कर्ज़ लेकर भी अपने बच्चों को पढ़ा रही हैं.

पीड़ित बिंदु ने कहा कि ''हम गरीब लोग क्या कर सकते हैं. हम इतने पढ़े लिखे हैं नहीं, जो काम मिलता है, वो करते हैं लेकिन फिलहाल घर पर बैठे हैं, कुछ नहीं है. एक साल का किराया भी बाकी है. मैं सोचती हूं कि मेरे बच्चे आगे बढ़ें और मैं भले खाऊं या ना खाऊं, उन्हें पढ़ा-लिखाकर आगे करूं.''

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कुछ इसी तरह का हाल नसीमुन्निसा का भी है. एक मई तक धारा 144 लागू होने की वजह से नसीमुन्निसा जहां ठेला लगाती थीं, वो फिलहाल बंद है. इस महीने वे अब तक पांच हज़ार रुपये का कर्ज ले चुकी हैं. अनाज भी थोड़ा ही बचा हुआ है और घर का चार महीने का किराया भी बकाया है. यूं तो सरकार ने ठेले वालों की सहायता करने की बात की है, लेकिन बस रजिस्टर्ड ठेले वालों की सहायता की जाएगी. इसमें नसीमुन्निसा जैसे लाखों लोग शामिल नहीं हैं. नसीमुन्निसा ने कहा कि ''हम लोग गरीब आदमी हैं, हम कहां से पाएंगे. अगर धंधा नहीं लगाएंगे तो कहां से लेकर आएंगे. वहीं रोज़ का 100-200 मिलता था तो उससे घर चलाते थे. खुद का घर नहीं है.''

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लॉकडाउन के ऐलान के डर से मोहम्मद हाशिम पुणे से मुंबई लौट आए. वहां वो सड़क किनारे जूते बेचते थे. अब घर पर वे अपनी बीवी का हाथ बंटाते हैं. उन्होंने मुंबई आने से पहले अपने मालिक से 5 हज़ार रुपये एडवांस में ले लिए और मुंबई आने के बाद 3 हज़ार रुपये का और कर्ज ले चुके हैं. वह इंतज़ार कर रहे हैं कि कब सरकार नियमों में ढिलाई दे ताकि वे वापस काम पर लौट सकें. मोहम्मद हाशिम ने कहा कि ''पेट पालने के लिए जीना पड़ेगा, कुछ ना कुछ करना पड़ेगा. कहीं धंधा करेंगे या नौकरी करेंगे. गए थे दो तीन जगह, कोई काम नहीं दे रहा है.''

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मुंबई में लगभग सभी झुग्गियों में यही कहानी है. लॉकडाउन के कारण गरीब तबके पर सबसे ज़्यादा असर पड़ा है और लोग बेरोजगार हुए हैं.. CMIE के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2021 में भारत में बेरोजगारी दर 6.52 फीसदी थी, जो 16 अप्रैल के डेटा के अनुसार 7.31 फीसदी हो गई है. मार्च 2021 में शहरों में बेरोज़गारी दर 7.24 फीसदी थी, 16 अप्रैल के डेटा के अनुसार अब शहरों में यह बढ़कर 8.58 फीसदी हो चुकी है. ग्रामीण इलाकों में मार्च 2021 में बेरोज़गारी दर 6.19 फीसदी थी जो 16 अप्रैल के डेटा के अनुसार अब 6.74 फीसदी है. ज़्यादा असर शहरों में रहने वाले लोगों पर पड़ा है.

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