कोरोना वायरस (Coronavirus) से बचाव के लिए टीकाकरण (Vaccination) अभियान के शुरू होने से पहले वैक्सीन पर भरोसे को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. कोरोना वैक्सीन को मंज़ूरी मिलने के बाद टीकाकरण अभियान बस कुछ ही दूर है, इसलिए बहस तेज़ है कि कौन सी वैक्सीन चुनी जाए. इस बहस में कोविड वॉरियर डॉक्टरों की राय अहम है. मुंबई के लीलावती अस्पताल के प्रसिद्ध डॉक्टर जलील पार्कर और महाराष्ट्र कोविड टास्क फ़ोर्स के डॉ राहुल पंडित जहां कोविशील्ड पर भरोसा जता रहे हैं तो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, महाराष्ट्र के प्रवक्ता डॉ अविनाश भोंडवे स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन के लिए तैयार हैं, पर कुछ और पारदर्शी डेटा का इंतज़ार करना चाहते हैं.
डॉ अविनाश भोंडवे ने कहा कि ‘'डेफ़िनेटली कोवैक्सीन जो पूरी तरह से भारत में बनी है उसे ही प्राथमिकता देना चाहेंगे लेकिन भारत सरकार को सभी को ये बताना चाहिए कि यह वैक्सीन पूरी तरह से सेफ़ है, साइड इफ़ेक्ट्स कैसे हैं, तभी सभी लोग स्वेच्छा से इसे लेंगे. फ़िलहाल कुछ डॉक्टर इससे डर रहे हैं क्योंकि इसका जो क्लिनिकल ट्रायल है थर्ड फ़ेज़ का, वो बड़ी मात्रा में नहीं हुआ है. इसलिए इसमें साइड इफ़ेक्ट्स आने की बहुत आशंका है.''
पल्मोनालॉजिस्ट डॉ जलील पारकर ने कहा कि ‘'एस्ट्राज़नेका की वैक्सीन की स्टडी अच्छी तरह से हर स्टेज पर हुई है, इसलिए सीरम इन्स्टीट्यूट की वैक्सीन को मुझे लगता है कि सभी को रिकमंड करना चाहिए. और दूसरी वैक्सीन के कितने स्टेजे पूरे हुए हैं ये मुझे पता नहीं है इसलिए मैं गलत इमेज नहीं बनाना चाहता. इतना ज़रूर कहूंगा कि वैक्सीन मार्केट में आने से पहले अच्छी तरह से तहक़ीकात होती है, ये हम सभी को समझ लेना चाहिए.''
महाराष्ट्र कोविड टास्क फ़ोर्स के डॉ राहुल पंडित का कहना है कि ‘'लोगों को डरना नहीं चाहिए, सेफ़्टी को लेकर. वैक्सीन ज़रूर लीजिए, हां ये ज़रूर है कि बाक़ी के जो MRNA वैक्सीन हैं उससे अगर तुलना करें तो कोविशील्ड की एफीकेसी 70% है और 50-60% कोवैक्सीन के लिए है. अभी कोविशील्ड रोलआउट हो रहा है और कोवैक्सीन बैकअप के लिए रखा है.''
इधर क्लीनिकल नर्सिंग एंड रिसर्च सोसायटी की वाइस प्रेसिडेंट डॉ स्वाति राणे कहती हैं कि स्वस्थ्यकर्मी वैक्सीन की एफ़िकेसी को लेकर खुद उलझन में हैं क्योंकि इन्हें खुद भी साइड इफ़ेक्ट्स की जानकारी नहीं है. डॉ स्वाति राणे ने कहा कि ''अगर वैक्सीन की एफ़िकेसी नहीं है तो क्यों ज़बरदस्ती रोलआउट कर रहे हैं. नर्सों, डॉक्टरों ने इतना काम किया है और अगर हम अभी ऐसी दवाई दें जिसकी एफ़िकेसी हमको खुद पता नहीं हम इंश्योर नहीं कर रहे उनको. उनको ही वैक्सीन की ज़िम्मेदारी लेने बोल रहे हैं. एथिकली मुझे लग रहा है बहुत गलत हो रहा है. बहुत कन्फ़्यूज़न है. इसकी ज़रूरत नहीं है. हम वेट कर सकते हैं.''
कोविड से जंग में मैदान में डटे रहे आयुष डॉक्टर एसोसिएशन के डॉक्टर भी वैक्सीन पर भरोसा नहीं जता पा रहे. आयुष डॉक्टर एसोसिएशन के डॉ अख़्तर शेख़ ने कहा कि ‘'डॉक्टर है, हेल्थवर्कर है, अगर खुद बीमार पड़ गया तो बाक़ी लोगों को कैसे कहेगा कि आप ये वैक्सीन लो. तो डर इसी वजह से है. आने वाले समय में 100% एफ़िकेसी हो सकती है जब क्लिनिकल ट्रायल और होगा. और भी वैक्सीन आएंगी, लेकिन डर निकलना उस वक्त तक मुमकिन नहीं है जब तक 100% साइड इफ़ेक्ट ना हो.''
कई वरिष्ठ डॉक्टर कैमरे पर आकार राय रखने को राज़ी नहीं लेकिन एक्सपर्ट ज़रूर ये मांग रख रहे हैं कि वैक्सीन को लेकर थोड़ी और पारदर्शी जानकारियां सार्वजनिक की जाएं ताकि लोगों में भरोसा बढ़े.