सपनों को पूरा करने का जज्बा इंसान को कामयाबी तक जरूर पहुंचाता है. ये बात सच कर दिखाई है सेना में अफसर बनें कुछ नौजवानों ने, जिन्होंने लाख दिक्कतों के बाद भी अपनी मंजिल को हासिल करके दिखाया और आज सेना में अधिकारी बन गए हैं. धोबी के बेटे से लेकर मजदूर के बेटे का ये कामयाबी का सफर पढ़कर आपको भी जीवन में कुछ करने का हौसला मिलेगा.
रमन सक्सेना की कहानी
रमन सक्सेना की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्ररेणादायक है जो अपने जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं. इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से पास आउट होकर सैन्य अधिकारी बने रमन सक्सेना को तीसरे प्रयास में सफलता मिली और सेना में अधिकार बन सके.
रमन सक्सेना ने साल 2007 में होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया था. कोर्स पूरा होने के बाद उन्हें एक होटल में नौकरी भी मिल गई. सबकुछ सही चल रहा था कि लेकिन रमन सक्सेना जीवन में कुछ ओर करना चाहते थे. रमन सक्सेना के पिता आर्मी से जुड़े हुए थे और कैप्टन के पद से रिटायर हुए थे. रमन सक्सेना भी आर्मी में जाने का सपना देखने लगे और सेना में जाने की तैयारी शुरू कर दी.
साल 2014 में रमन सक्सेना सेना के साथ जुड़ गए. वह आर्मी सर्विस कोर के तहत कैटरिंग जेसीओ के पद पर भर्ती हुए. देहरादून स्थित आईएमए की मेस में उन्होंने कई सालों तक अपनी सेवाएं दी. लेकिन उनके मन में अधिकार बनने का सपना था. उन्होंने दो बार एसएसबी इंटरव्यू दिया. लेकिन उसमें असफल रहे. लेकिन तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिली और 34 वर्ष की आयु में सैन्य अधिकारी बन गए. उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय पिता को दिया है.
धोबी के बेटा का सफर
धोबी के बेटे लेफ्टिनेंट राहुल वर्मा की कहानी भी काफी प्रेरणादायक है. राहुल वर्मा बेहद ही गरीब परिवार से नाता रखते हैं. उनके पिता धोबी हैं. उनका छोटा सा घर लोगों के कपड़ों से भरा रहता था. दिन में कपड़े प्रेस किए जाते थे और रात को लोगों के लिए खाना बनाया जाता था. घर के ऐसे माहौल और पैसों की तंगी ने राहुल वर्मा के आर्मी में शामिल होने के सपने को मरने नहीं दिया.
अपनी सफलता पर लेफ्टिनेंट राहुल वर्मा कहते हैं कि “मेरे पिता मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा थे और मुझे कहते थे कि ऐसा पेशा चुनो जहां सम्मान हो. सिर्फ राजा का बेटा ही राजा नहीं बनता, कोई भी व्यक्ति कड़ी मेहनत करके सबको हासिल कर सकता है.
मजदूर के बेटे का सफर
मदुरै के निकट एक छोटे से गांव के रहने वाले लेफ्टिनेंट कबीलन वी के पति एक मजूदर थे, जो कि दिन के महज 100 रुपये कमाते थे. हाल ही में उनके पिता को लकवा हो गया था और व्हीलचेयर पर आ गए. अपनी कामयाबी पर उन्होंने कहा कि कई बार असफल हुआ लेकिन कड़ी मेहनत करता रहा. अगर मेरे जैसा कोई व्यक्ति, जो एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा है. वो सफल हो सकता है तो कोई और भी हो सकता है.
हवलदार के बेटे की कहानी
सेवानिवृत्त हवलदार के बेटे जतिन कुमार ने आईएमए की पासिंग आउट परेड में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर और राष्ट्रपति रजत पदक (President's Silver Medal) जीता है. कई बार असफल रहने के बाद भी हरियाणा के पलवल के रहने वाले कुमार ने अपने सपनों को टूटने नहीं दिया और सफलता हासिल करके माने. लेफ्टिनेंट कुमार ने कहा, "मेरे पिता का सपना था कि मैं एक सेना अधिकारी बनूं और वो सच हो गया है".