- कांग्रेस पार्टी अपनी 140वीं स्थापना वर्षगांठ पर दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित कर रही थी
- दिग्विजय सिंह ने पार्टी में बदलाव और विकेंद्रीकरण की आवश्यकता पर खुले तौर पर चर्चा की
- कांग्रेस ने अपने इतिहास में कई संकटों का सामना किया लेकिन हर बार मजबूत होकर उभर कर आई
कांग्रेस अपने स्थापना की 140 वां सालगिरह मना रही है और उस वक्त पूरी कांग्रेस पार्टी दिल्ली में मौजूद थी मगर इस बैठक में दिग्विजय सिंह के बयान की भी चर्चा रही जिसमें उन्होंने पार्टी में बदलाव करने,पार्टी के अंदर विकेंद्रीकरण की बात हो या प्रियंका गांधी की भूमिका बढ़ाने की चर्चा हो रही है.स्थापना दिवस पर हुई बैठक के दौरान राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह को कुछ कहा भी जैसे आपने अपना काम कर दिया जैसी बातें.यहां पर ये महत्वपूर्ण है कि दिग्विजय सिंह ने जो कहा वो पार्टी के कुछ लोग पार्टी के अंदर ये बात कहते रहे हैं मगर इस बार ये बात दिग्विजय सिंह ने खुलकर बाहर कह दी और मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि पूरी कांग्रेस कार्यसमिति इससे इंकार नहीं कर सकती.140 साल के अपने इतिहास में कांग्रेस ने बहुत सारे संकट झेले हैं लेकिन हर बार कांग्रेस उभर कर सामने आई है.
इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने की थी वापसी
जवाहरलाल नेहरु के निधन के उठा संकट या फिर लाल बहादुर शास्त्री के असामयिक निधन के बाद नेता कौन होगा का सवाल हो.फिर इंदिरा गांधी की इंट्री होती है जिन्हें एक वक्त में गूंगी गुड़िया कहा गया.उसी गूंगी गुड़िया ने अपने राजनैतिक कौशल से सबको चौंकाया..देश ने इमरजेंसी का दौर देखा कांग्रेस भी टूटी मगर फिर भी कांग्रेस ज़िंदा रही. पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी इंदिरा गांधी जेल भी जाती है मगर फिर इंदिरा और कांग्रेस ने वापसी की.फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार होता है जिसकी कीमत इंदिरा गांधी ने अपनी जान देकर चुकाई.फिर लगा अब कांग्रेस का क्या होगा मगर फिर राजीव गांधी आते हैं और कांग्रेस आगे बढ़ती रहती है.फिर बोफोर्स का मामला उठता है राजीव गांधी सत्ता गंवा देते हैं मगर एक बार फिर गठबंधन की सरकार बनती है जो चल नहीं पाती मगर उसकी नींव जरूर पड़ गई थी जो आगे चल कर जरूरी बन गई.
भारत और कांग्रेस का इतिहास अलग-अलग नहीं
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी को आतंकवाद का शिकार होना पड़ता है, मगर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती है एक शास्त्री जी के बाद गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता देश का प्रधानमंत्री बनता है जो तकनीकी रूप पर गठबंधन की सरकार थी.फिर भारत की राजनीति एक ऐसे मोड़ से गुज़रती है जिसने देश की राजनीति की दिशा ही बदल दी.अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी जाती है और देश में एक नए राजनीतिक दल का उदय होता जो आगे चल कर कांग्रेस को हाशिए पर ढकेल देता है. वैसे आप भारत और कांग्रेस के इतिहास को अलग अलग नहीं लिख सकते .कांग्रेस और देश आपस में जुड़े हुए है जिसकी वजह आजादी की लड़ाई के समय से जुड़ा हुआ है.देश में वाजपेयी की सरकार बनती है मगर इंडिया शाइनिंग के नारे के बावजूद वो हार जाते हैं और मनमोहन सिंह दस साल तक प्रधानमंत्री रहते हैं.
राहत की बात है कि कांग्रेस के पास लोकसभा में 99 सांसद हैं और कनार्टक,तेलंगाना और हिमाचल में सरकार है जबकि झारखंड में वह गठबंधन की सरकार में है.कांग्रेस के लिए 2026 शुभ संकेत ले कर आ सकता है क्योंकि जिन राज्यों में चुनाव होने वाले है. उसमें से एक केरल में यूडीएफ की वापसी हो सकती है और कांग्रेस का नेता मुख्यमंत्री बन सकता है. वहीं तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके गठबंधन का हिस्सा है यदि स्टालिन की वापसी होती है तो कांग्रेस के लिए शुभ संकेत होगा.
असम में गौरव गोगोई के रूप में कांग्रेस ने एक जु़झारू नेता को प्रदेश को कमान सौंपी है .कांग्रेस यदि आसाम में अच्छा मेहनत करती है तो वहां भी बढिया कर सकती है रही बात पश्चिम बंगाल की तो वहां कांग्रेस शून्य पर है मगर उसे इस बात का संतोष है कि कम से कम वहां बीजेपी को रोकने के लिए ममता बनर्जी है जो संसद में कम से कम इंडिया गठबंधन के साथ दिखती है.आने वाले दिनों में उत्तराखंड में भी कांग्रेस को उम्मीद दिख रही होगी और यही उम्मीद कांग्रेस पंजाब से भी लगा कर बैठी है. कहने का मतलब है कि कांग्रेस के लिए उत्तरप्रदेश और बिहार दुखती रग है यहां कांग्रेस के पास ना तो संगठन है और ना ही प्रदेश स्तर पर नेता.मध्यप्रदेश में जीतू पटवारी हैं तो राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट मगर बाकी प्रदेश में कांग्रेस को नेतृत्व को उभारना पड़ेगा यही सबसे बड़ी चुनौती है राहुल गांधी और कांग्रेस की.
यह भी पढ़ें: Digvijay Singh News: 2022 का फैसला 2025 में भी लागू नहीं! समझिए दिग्विजय का दर्द और कांग्रेस का मर्ज
यह भी पढ़ें: दिग्विजय के पोस्ट पर BJP का सवाल - क्या राहुल गांधी हिम्मत दिखाएंगे













