सुरेश अपने 9वीं क्लास में पढ़ने वाले बेटे की मार्कशीट लेकर जैसे ही स्कूल से निकले तभी उनके पास एक फोन कॉल आया. दूसरी ओर से एक महिला ने उनसे पूछा कि आपके बेटे की गणित कमजोर है. उसके क्या कम नंबर आ रहे हैं? वाकई सुरेश के बच्चे के गणित में कम नंबर थे. ये फोन कॉल स्कूल की तरफ से नहीं बल्कि ऑनलाइन क्लास चलाने वाली एक कंपनी की तरफ से आया था. जब उन्होंने स्कूल को मेल करके ये जानना चाहा कि उनके बच्चे की व्यक्तिगत जानकारी आखिर कैसे एक आनलाइन कोचिंग देने वाली प्राइवेट कंपनी के पास पहुंची तो स्कूल ने साफ मना कर दिया.
सोचिए आपने अपने बॉडी का फुल चेकअप कराया हो और डीएनए से लेकर अंगूठे के निशान तक की जानकारी अगर दूसरी कंपनियों तक पहुंच जाएं तो आपके साथ साइबर फ्रॉड से लेकर व्यक्तिगत जानकारी के दुरुपयोग के खतरे भी रहते हैं. लेकिन चंद पैसे के लालच में खुले बाजार में आपके मोबाइल से लेकर जानकारी तक बेचकर कई कंपनियां पैसा कमा रही होती हैं. इसीलिए अब भारत सरकार Privacy Protection Law लाकर प्राइवेट कंपनियों को हमारे आपके व्यक्तिगत डाटा का रक्षक (Custodian) बनाना चाहती है.
MSME को भी डाटा चोरी और लीकेज रोकने के उपाय करने पर बढ़ावा
भारत में टेस्टिंग लैब से लेकर सुरक्षा उद्योग जैसे कई क्षत्रों में 50 लाख से ज्यादा MSME यानी लघु और मंझोले दर्जे की कंपनियां हैं. आने वाले समय में कंपनियों को डाटा डिलीट होने, डाटा की चोरी होने या दूसरी कंपनियों को उनके डाटा पहुंचने जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
Synersoft technologies के CEO विशाल शाह बताते हैं कि बड़ी कंपनियां साइबर अटैक से निपटने के लिए तैयार रहती है लेकिन MSME कंपनियों को कम पैसों में साइबर सुरक्षा देने के लिए सरकार को प्रोत्साहित करना चाहिए. ताकि आने वाले समय में अंदरुनी डाटा चोरी, डाटा को खत्म करने और नकल करने जैसी बातें रोकी जा सकें.
सरकार की भी अब कोशिश है कि भारत में काम करने वाली कंपनियों का डाटा स्थानीय स्तर पर ही हो. ये नहीं कि कंपनियां काम भारत में करें और उनके डाटा बाहरी देशों में हों. जानकारों का मानना है कि भारत के बड़े उपक्रमों में साइबर अटैक से निपटने की पूरी क्षमता है लेकिन अगला निशाना छोटी और मंझोली कंपनियां हो सकती है.