केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने कोयले की किल्लत (Coal Shortage) के कारण देश के कई हिस्सों में बिजली की कमी (Power Crisis) की चिंताओं के बीच सोमवार को कोयला और बिजली मंत्रालयों के प्रभारी अपने कैबिनेट सहयोगियों से मुलाकात की. माना जाता है कि घंटे भर चली बैठक के दौरान, तीनों मंत्रियों ने बिजली संयंत्रों को कोयले की उपलब्धता और वर्तमान बिजली मांगों पर चर्चा की. बैठक में वरिष्ठ नौकरशाहों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र की ऊर्जा समूह एनटीपीसी लिमिटेड के अधिकारी भी शामिल हुए.
कई राज्यों ने ब्लैकआउट की चेतावनी दी है, हालांकि केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि भारत के पास अपने बिजली संयंत्रों की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त कोयला भंडार है, इसलिए दिल्ली और अन्य शहरों में संभावित ब्लैकआउट की आशंकाएं फिजूल हैं.
कोयला मंत्रालय ने रविवार को एक बयान में कहा कि कोयले से चलने वाले संयंत्रों में मौजूदा ईंधन स्टॉक लगभग 7.2 मिलियन टन है, जो चार दिनों के लिए पर्याप्त है.
सरकारी स्वामित्व वाली खनन कंपनी कोल इंडिया के पास भी 40 मिलियन टन से अधिक का स्टॉक है जिसकी आपूर्ति बिजली स्टेशनों को की जा रही है.
मंत्रालय ने कहा, "बिजली आपूर्ति में किसी भी तरह के संकट का कोई भी डर पूरी तरह से गलत है."
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा 2 करोड़ से अधिक आबादी वाले शहर में बिजली संकट की चेतावनी देने के एक दिन बाद मंत्रालय की तरफ से यह स्पष्टीकरण आया.
हाल के महीनों में भारत भर में कई क्षेत्रों में कोयले की आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ा है, जिसके चलते बिजली सप्लाई करने वाली इकाईयों को अनिर्धारित बिजली कटौती का सहारा लेना पड़ा है.
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सितंबर के अंत में भारत के कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों के पास औसतन चार दिनों का स्टॉक था, जो कई वर्षों में सबसे कम था.
दुनिया में कोयले की खपत वाले दूसरे सबसे बड़े देश भारत में कमी चीन में व्यापक बिजली कटौती के बाद सामने आई है. चीन में बिजली संकट की वजह से कई कारखाने बंद करने पड़े और उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई.
भारत के बिजली उत्पादन में लगभग 70 प्रतिशत कोयले का योगदान है और लगभग तीन-चौथाई जीवाश्म ईंधन का घरेलू स्तर पर खनन किया जाता है.
कोरोना वायरस की लहर से उबर रही एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में मानसून की भारी बारिश से कोयला खदानों में पानी भर गया और कोयले का परिवहन बाधित रहा, जिससे पावर स्टेशंस सहित कोयला खरीदारों के लिए कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है. अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतें भी बढ़ गई हैं.
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