तीन साल बाद हो रहे दिल्ली विश्वविद्यालय ( Delhi University) छात्रसंघ चुनाव में इस बार हिंसा की लगातार खबरें मिल रही हैं. ABVP और NSUI की लगातार हो रहे खूनी झड़पों के चलते 22 सितंबर को हो रहे मतदान के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए जा रहे हैं. सोशल मीडिया में कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें ABVP और NSUI के संगठन के बीच खूनी झड़पों को देखा गया है. इतना ही नहीं कई ऐसे भी वीडियो वायरल हो रहे हैं जहां चुनाव प्रचार करने के लिए छात्र जबरन महिला कॉलेज में घुसने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में दोनों ही प्रमुख छात्र संगठन धनबल और बाहुबल का जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं.
एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप
NSUI की तरफ से अध्यक्ष पद के प्रत्य़ाशी हीतेश गुलिया ने कहा है कि ABVP प्रशासन के साथ मिलकर रात को हमारे बैनर पोस्टर उतरवाती है हिंसा करती है..हमारा ये कल्चर नहीं है. वहीं ABVP के प्रत्याशी सुशांत धनकड़ का कहना है कि NSUI चुनाव हार रही है तो बाहर से लोगों को बुलाकर गुंडागर्दी कर रही है. कैंपस में इनके हथियारबंद लोग घूमते हैं.
कई बड़े नेताओं की हुई एंट्री
विश्वविद्यालय छात्रसंघ की राजनीति में अब कई बड़े नेता भी कूद पड़े हैं जहां कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने ट्वीट किया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव में ABVP द्वारा NSUI के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार पर हमला निश्चित हार के कारण बौखलाहट का परिणाम है। ये हमला दिल्ली पुलिस के संरक्षण में हुआ, ये और भी चिंतनीय है. इसके जवाब में ABVP ने भी एक वीडियो ट्वीट करके लिखा कि दिल्ली विश्वविद्यालय को NSUI के गुंडों से बचाओ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज फॉर वूमेन (गर्ल्स) में NSUI के गुंडे चेहरे ढककर, हाथों में डंडे और रॉड लेकर छात्राओं को डरा-धमका रहे हैं. डीयू का छात्र समुदाय तुम्हारी गुंडागर्दी का जवाब 22 अगस्त को अपने वोट की ताकत से देगा.
VC ने शांति की अपील की
उधर दिल्ली विश्वविद्यालय ने छात्रसंघ उम्मीदवारों और पुलिस के साथ बैठक करके इन छात्रों से शांति की अपील की है. VC योगेश सिंह ने कहा है कि कुछ वीडियो को हमने भी देखा है तीन साल बाद चुनाव हो रहा है. अब सोशल मीडिया इतना सक्रिय है कि खबरें बाहर आ जाती है लेकिन हमने सभी को कहा कि कैंपस आपका है. इन सब के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव बैनर पोस्टर से पटा है. लग्जरी गाड़ियों और बड़े नेताओं के नजदीकियों के चुनाव लड़ने से इसका परिणाम हाईप्रोफाइल हो जाता है.
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