सब ड्यूटी कर रहे थे तो गलती किसकी? बेंगलुरु भगदड़ मामले में सस्पेंडेड IPS अफसरों का क्या होगा

सरकार अब पूरे मामले से सबक लेते हुए एक 'Crowd Management Bill' को अंतिम रूप दे रही है. इसमें कहा गया है कि अगर किसी कॉमर्शियल या नॉन-कॉमर्शियल कार्यक्रम में अव्यवस्था के कारण हादसा होता है, तो आयोजकों पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना और 3 साल की सजा हो सकती है.

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चिन्नास्वामी स्टेडियम भगदड़ मामला.
बेंगलुरु:

बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 4 जून को हुए हादसे ने पूरे कर्नाटक को हिलाकर रख दिया. RCB की जीत के जश्न में उमड़े हजारों फैंस के बीच मची भगदड़ ने न सिर्फ जिंदगियों को खतरे में डाला, बल्कि राज्य की कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए. इस भगदड़ में 11 लोगों की जान गई और 50 लोग घायल हुए थे. इस घटना के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तुरंत कार्रवाई करते हुए 5 पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया, जिनमें तत्कालीन बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद, एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस (लॉ एंड ऑर्डर) विकाश कुमार, और डीसीपी सेंट्रल एच. टी. शेख समेत 3 IPS अधिकारी शामिल हैं.

इन अधिकारियों का अब क्या होगा?

IPS अधिकारियों के निलंबन पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार लेती है. UPSC के नियमों के मुताबिक, सस्पेंशन की रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर केंद्र को भेजी जाती है. इस पर गृह मंत्रालय समीक्षा कर यह तय करता है कि निलंबन जायज है या नहीं. कर्नाटक सरकार ने अब इस रिपोर्ट को तैयार कर लिया है. DPAR (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स) की इस रिपोर्ट में हर अधिकारी की जिम्मेदारी और घटना के समय उनकी लोकेशन की जानकारी दी गई है.

किसकी कहां थी ड्यूटी?

  • कमिश्नर बी. दयानंद घटना के समय विधानसभा में थे, जहां RCB की जीत का पहला जश्न मनाया जा रहा था.
  • विकास कुमार को स्टेडियम के भीतर भीड़ नियंत्रित करने की जिम्मेदारी दी गई थी।.करीब 35,000 फैंस को उन्होंने और उनके सहयोगियों ने संभाला.
  • डीसीपी शेखर का काम खिलाड़ियों की बस को सुरक्षित स्टेडियम तक पहुंचाना था, जिसे उन्होंने भारी भीड़ के बावजूद पूरा किया.

अधिकारी  ड्यूटी पर थे तो गलकी किसकी?

एडिशनल कमिश्नर विकास कुमार ने अपने सस्पेंशन को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में चुनौती दी है. सवाल यही है कि सस्पेंशन राजनीति है या जिम्मेदारी तय करने की कोशिश. यहां सवाल यह भी उठता है कि अगर हर अधिकारी अपनी-अपनी ड्यूटी पर था, तो आखिर गलती किसकी थी?

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सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी शहर के पुलिस कमिश्नर की होती है, जो कि एक ADGP रैंक का पद है. बी. दयानंद पर सबसे ज्यादा सवाल उठ रहे हैं क्योंकि पुलिस को पहले से खुफ़िया जानकारी थी कि भारी भीड़ जमा होगी फिर भी 4 जून की सुबह से ही स्टेडियम और विधानसभा के बाहर फैंस का सैलाब उमड़ता रहा और पर्याप्त पुलिस बल नजर नहीं आया.

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न एम्बुलेंस दिखी, न कोई प्रभावी भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था

सरकार का कहना है कि करीब 1,500 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था, लेकिन जमीन पर न एम्बुलेंस दिखी न कोई प्रभावी भीड़ नियंत्रण की व्यवस्था. जबकि शहर की सुरक्षा के लिए अन्य बल जैसे कर्नाटक स्टेट रिजर्व पुलिस, सिटी आर्म्ड रिजर्व, होम गार्ड्स, सिविल डिफेंस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को लगाया जा सकता था.

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कमिश्नर ने मांगा था वक्त, लेकिन फिर भी...

पुलिस कमिश्नर दयानंद ने सरकार को पहले ही आगाह किया था कि इतने बड़े इवेंट के लिए कम से कम 48 घंटे की तैयारी चाहिए. बावजूद इसके, जब फैंस की भीड़ बढ़ती रही, तब तुरंत कदम उठाना पुलिस की जिम्मेदारी थी, जो कि वो निभा नहीं पाए. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कमिश्नर से इस बात पर भी नाराज हुए कि वे उनके साथ विधान सभा में मौजूद थे, लेकिन भगदड़ और मौत की सूचना उन्हें एक घंटे से भी ज्यादा देर में दी गई.

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अब होगा नया कानून: ‘Crowd Management Bill'

सरकार अब इस पूरे मामले से सबक लेते हुए एक 'Crowd Management Bill' को अंतिम रूप दे रही है. इसमें कहा गया है कि अगर किसी कॉमर्शियल या नॉन-कॉमर्शियल कार्यक्रम में अव्यवस्था के कारण हादसा होता है, तो आयोजकों पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना और 3 साल की सजा हो सकती है. अब निगाहें केंद्र सरकार पर हैं, जो तय करेगी कि सस्पेंड किए गए IPS अधिकारियों का भविष्य क्या होगा. बहाली वापस होगी या नहीं. सवाल अब भी कायम है क्या ये सिर्फ अफसरों की नाकामी थी, या सरकार की भी कोई जिम्मेदारी बनती है?
 

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