"बच्‍चे पत्‍थर तोड़ते हैं, तब खाना खा पाते हैं, दूसरे गांवों में कैसे होगा गुजारा" : जोशीमठ की सुलोचना की पीड़ा

सुलोचना ने कहा, "बच्‍चे बेरोजगार हैं. दूसरों के गांव में जाकर क्‍या हम रोजगार कर सकेंगे. मेरे बच्‍चे पत्‍थर फोड़ते हैं तब खाते हैं हम खाना. मैं लकड़ी-घास बेचती हूं तब गुजारा होता है. अपने गांव में तो गुजारा हो जाता है, क्‍या दूसरे गांव में हो पाएगा?

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सुलोचना ने कहा, हम विस्‍थापित होकर कहां जाएंगे, हमारे पास तो खाने का सामान तक नहीं है

जोशीमठ:

Joshimath News: जोशीमठ का संकट कई परिवारों के लिए मुसीबत बनकर आया है. जोशीमठ में घरों में आई दरारों के कारण लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हैं. जोशीमठ के सिंघार इलाके से लोग/परिवार अपना-अपना सामान लेकर विस्‍थापित हो रहे हैं. ऐसी ही एक महिला हैं सुलोचना जिन्‍हें अपना आशियाना छोड़ना पड़ रहा है.NDTV से बातचीत में उन्‍होंने अपना दर्द बयां किया. तंगहाली से जूझ रहीं सुलोचना ने जब ये पूछा गया कि घर छोड़ते हुए आप भावुक हो रही है तो उनके आंसू निकल पड़े. उन्‍होंने कहा-हम न इधर के रह गए, न उधर के.  एक ही तो घर है मेरे पास. क्‍या करूं? सरकार बोलती है और कहीं आइए विस्‍थापित होकर हम कहां जाएं. हमारे पास खाने तक का सामान नहीं है.विस्‍थापित होकर कहां जाएंगे? हम विस्‍थापित हो जाएंगे तो गाय-बछड़े कहां जाएंगे. 

सुलोचना ने कहा, "बच्‍चे बेरोजगार हैं. दूसरों के गांव में जाकर क्‍या हम रोजगार कर सकेंगे. मेरे बच्‍चे पत्‍थर फोड़ते हैं तब खाते हैं हम खाना. मैं लकड़ी-घास बेचती हूं तब गुजारा होता है. अपने गांव में तो गुजारा हो जाता है, क्‍या दूसरे गांव में हो पाएगा? हमें समझ नहीं आ रहा, कहां जाएं? इस सवाल पर कि सरकार कह रही है कि मुआवजा देगी डेढ़ लाख रु. क्‍या आपकी किसी से बात हुई तो सुलोचना ने कहा कि किसी से कोई बात नहीं, बस यह सुनने में आया है. उन्‍होंने बताया कि एक-दो दिन में घर खाली करना होगा. सुलोचना के पास जीवनयापन का कोई जरिया नहीं है. उनके पास पहनने के लिए केवल एक साड़ी है. लोग फटाफट उठकर जा रहे हैं लेकिन मैं जाऊं तो जाऊं कहां? लड़की की रिश्‍तेदारी में... इसके बाद वह सवाल करती है वह मुझे कैसे रखेगी, वह खुद गरीब है. 

सरकार ने राहत कैंप बनाए हैं, इसके जवाब में उन्‍होंने कहा, "होटल में गुजारे हैं. बारह-बारह, तेरह-तेरह आदमी होटल में कैसे रहेंगे? किसी की बहू होगी, किसी की बेटी होगी, एक होटल में कैसे रहेंगे? भेड़-बकरी की तरह अंदर घुसा दे रहे हैं. मेरी बूढ़ी मां है जो चल भी नहीं पाती, उसे 24 घंटे आग चाहिए..अब मैं होटल में आग कहां से लाऊं?" सुलोचना की बेबसी वाकई आंखों में आंसू ला देती है. सुलोचना कहती हैं, "दूसरे लोगों के पास तो सामान है, मेरे पास तो कुछ सामान भी नहीं हैं.  गाड़ी में सामान रखने के लिए पैसे तक नहीं है. "

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