अक्षय तृतीया की मान्यता है कि इस दिन जो हम करते हैं, वह अक्षुण्ण होता है. उसका क्षय नहीं होता है. यह युगादि तिथि मानी जाती है, क्योंकि सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ था. भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम और ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्मदिन भी इसी दिन माना जाता है. अक्षय नाम इसलिए पड़ा है, क्योंकि इस दिन जो भी कार्य होगा वह अक्षय होगा. यह बात पाप और पुण्य दोनों पर लागू होती है. इसलिए इस दिन पुण्य कर्म करते हैं, व्यापार का प्रारंभ करते हैं. धन की बचत और सोना, चांदी में निवेश करते हैं. इस दिन कोई पाप कार्य नहीं करते हैं. इसके अलावा विवाह के लिए और भी चीजें देखनी होती हैं केवल तिथि देख कर ही विवाह नहीं किया जाता है.
अब रहा सवाल बाल विवाह का तो पहली बात, किसी भी शास्त्र में, किसी भी स्मृति में और किसी भी पुराण में बाल विवाह को कहीं भी श्रेष्ठ नहीं कहा गया है. मतलब कहीं, कोई एक लाइन भी नहीं दिखा सकता कि ऐसा लिखा हो कि बाल विवाह करना श्रेष्ठ है. दूसरी बात, कई लोग विवाह को धर्म से जोड़ते हैं. विवाह धार्मिक कार्य नहीं है बल्कि सनातन धर्म के अनुसार एक संस्कार है. कर्मकांड का हिस्सा है, एक कर्म है. हम विवाह के जरिए गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं. सृष्टि के सृजन में एक स्त्री और पुरुष का मिलन होता है तो वो सृष्टि के सृजन में सहायक होते हैं. यह एक मांगलिक कार्य और संस्कार है, कर्म है न कि यह धार्मिक कार्य है. हां यह धार्मिकता से किया जाता है. यह दो भेद हो गया. एक तो यह कर्म है जिसे धार्मिकता से किया जाता है और धार्मिकता से निभाया जाता है और निभाया जाना चाहिए.
कन्या दान को पुण्य कार्य इसलिए माना जाता है क्योंकि पिता से लगाव होता है. यानी इसमें पिता स्नेह का त्याग करता है. इसका बाल विवाह से कहीं लेना-देना नहीं है. हालांकि अभी भी कुछ जगहों पर बाल विवाह की कुप्रथाएं हैं. बाल विवाह अभिशाप है. याज्ञवल्क्य स्मृति में कहा गया है कि वर, कन्या योग्य हों, वो वरण करने की योग्य विकसित हों, युवा हों और संतान उत्पत्ति करने की योग्य होना चाहिए.
दूसरी बात जो सबसे बड़ा विरोधाभास है जिसे समझना होगा कि सनातन पद्धति में आश्रम की व्यवस्था है. 100 वर्ष की आयु मानकर एक मानक रूप में चार भागों में विभक्त किया गया है. जिसमें पहले 25 वर्ष को ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता है. दूसरा 25 वर्ष गृहस्थ आश्रम फिर क्रमशः वानप्रस्थ और संन्यास हैं. यहां सबसे बड़ी सोचने वाली बात है कि जब 25 वर्ष तक के युवा को ब्रह्मचर्य आश्रम में रहने की व्यवस्था है तो वो विवाह कर ही नहीं सकता. यहां बात सिर्फ लड़की और लड़के की नहीं है किसी का भी विवाह सनातन धर्म पद्धति के हिसाब से 25 वर्ष से पहले नहीं करना चाहिए. इस अवस्था में उसे शस्त्र-शास्त्र, कार्य व्यापार और जीविकोपार्जन की विद्या का अध्ययन करना चाहिए. ये सब हमारी पद्धतियां, स्मृतियां और पुराण कहते हैं, ताकि वह "योगक्षेमं वहाम्यहम्" कर सके, परिवार की रक्षा कर सके. उसी हिसाब से लड़की का भी है. शास्त्रों में सिर्फ इतना कहा गया है कि कन्या की आयु वर से कम हो. कितनी आयु की हो ये चर्चा नहीं है.
कहीं पर भी बाल विवाह की स्पष्ट मान्यता नहीं है. इसलिए अबोध बच्चे का विवाह पाप कर्म है. एक चीज और जो शास्त्रों में विवाह के प्रकार बताए गए हैं- ब्रह्म विवाह, प्रजापति विवाह, दैव विवाह, गंधर्व विवाह, आसुरी विवाह और राक्षसी विवाह. इन विवाहों में सबसे निकृष्ट विवाह उसे माना गया है जहां कन्या की इच्छा के विरूद्ध विवाह, चाहें वो पिता करें या कोई और. कन्या की इच्छा विरुद्ध विवाह और योग्य वर न हो तो ये निकृष्ट और आसुरी विवाह माना जाता है. यह विवाह धर्म के अनुकूल नहीं है. इसके अलावा लड़की वरण करने योग्य हो. वो अपनी इच्छा अनुसार उसे पसंद करे तब विवाह हो, तो कैसे कोई 10 साल, 12 साल और 15 साल की कन्या वर को पसंद करेगी.
हालांकि कहीं-कहीं लोग अपने अनुसार विरोधाभास का उदाहरण देते हैं. लेकिन सौ बात की एक बात ये है कि किसी भी शास्त्र में कोई भी, कहीं नहीं दिखा सकता कि बाल विवाह को श्रेष्ठ कहा गया है. बल्कि यह अगर कन्या की इच्छा के विरुद्ध और कन्या अगर स्वयं वरण नहीं कर रही है या लड़के की आयु 25 वर्ष से कम है, वह परिवार का भरण पोषण करने के उपयुक्त नहीं है तो यह शास्त्रोक्त न होकर पाप कर्म हो जाता है. यदि इसको अक्षय तृतीया से जोड़ दें तो अक्षय तृतीया के दिन किए हुए कार्य अक्षय होते हैं. इस दिन अगर आप कोई पुण्य या शुभ कार्य करते हैं वो अक्षय होता है उसका क्षरण नहीं होता. उसी प्रकार यदि आप इस दिन पाप कर्म करते हैं तो उसका भी क्षरण नहीं होगा.
अगर आप राक्षस विवाह यानी बाल विवाह करते हैं, कन्या के इच्छा के विरुद्ध और वो ऐसी न हो जो सोच समझ सके कि हमरा किससे हमारा विवाह हो रहा है या वर की आयु 25 वर्ष से कम है तो यह पाप कर्म की श्रेणी में आता है और इसका भी क्षरण नहीं होगा. इसलिए अक्षय तृतीया हो या कोई भी तिथि, पहली बात भूलकर भी बाल विवाह न करें. क्योंकि यह शास्त्र के विरुद्ध है. दूसरी बात, अक्षय तृतीया के दिन तो और भी न करें क्योंकि यदि उस दिन पाप कर्म हुआ तो इसका कोई प्रायश्चित नहीं है.
(लेखक- पं. दीपक दुबे प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य हैं)