फर्जी खबरें तनाव पैदा कर सकती हैं, लोकतांत्रिक मूल्यों को भी खतरा : प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जिम्मेदार पत्रकारिता को इंजन करार दिया जो लोकतंत्र को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है. उन्होंने कहा, ‘‘जिम्मेदार पत्रकारिता इंजन की तरह काम करती है जो लोकतंत्र को बेहतर कल की ओर ले जाती है."

विज्ञापन
Read Time: 26 mins
नई दिल्ली:

डिजिटल युग में फर्जी खबरों के खतरों से आगाह करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को कहा कि ऐसी खबरें विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकती हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि फर्जी खबरों से लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है. वह यहां रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. ‘मीडिया ट्रायल' (मीडिया में सुनवाई) मुद्दे पर उन्होंने कहा कि कई बार ऐसा हुआ है कि मीडिया ने आरोपी को अदालत का फैसला आने से पहले ही जनता की नजरों में दोषी के तौर पर पेश कर दिया.

उन्होंने कहा कि हर संस्था चुनौती का सामना कर रहा है और पत्रकारिता की अपनी ही चुनौती है. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘मौजूदा समाज में फर्जी खबरें प्रेस की आजादी और निष्पक्षता के लिए गंभीर खतरा है. यह पत्रकारों के साथ-साथ हितधारकों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वह रिपोर्टिंग की प्रक्रिया के दौरान किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह को दूर रखे...फर्जी खबरें एक बार में लाखों लोगों को गुमराह कर सकती हैं और यह लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों के विपरीत होगा जो हमारे अस्तित्व के नींव का निर्माण करती हैं.''

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जिम्मेदार पत्रकारिता को इंजन करार दिया जो लोकतंत्र को बेहतर भविष्य की ओर ले जाती है. उन्होंने कहा, ‘‘जिम्मेदार पत्रकारिता इंजन की तरह काम करती है जो लोकतंत्र को बेहतर कल की ओर ले जाती है. डिजिटल युग में पहले से कहीं अहम है कि पत्रकार सटीक, निष्पक्ष, जिम्मेदार और निर्भय होकर पत्रकारिता करें.'' आपातकाल के दौर का संदर्भ देते हुए जब इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने संपादकीय पन्ने को कोरा छोड़ दिया था, प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि यह याद दिलाती है कि खामोशी कितनी ताकतवर हो सकती है.

Advertisement

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा, ‘‘ क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र एक संस्थान के तौर पर हमेशा पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करता है जो संस्थाओं से कड़े सवाल पूछ सके या आसान भाषा में कहें तो ‘सत्ता के सामने सच्चाई कह सके.' किसी भी लोकतंत्र की गतिशीलता से तब समझौता होता है जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है. देश के लोकतांत्रिक रहने के लिए प्रेस को स्वतंत्र बने रहना चाहिए.'' उन्होंने कहा कि वह भय से युक्त समय था, लेकिन साथ ही वह निर्भीक पत्रकारिता के उदय के लिए भय विहीन समय भी था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि 25 जून 1975 हमारे इतिहास का एक अहम क्षण था.

Advertisement

उन्होंने कहा, ‘‘एक घोषणा (आपातकाल की) ने स्वतंत्रता और इसके लिए खतरों की हमारी धारणाओं को परिभाषित और पुनर्परिभाषित किया और यह भी बताया कि यह कितना कमजोर हो सकता है....'' प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सच्चाई और झूठ के बीच अंतर को दूर करने और सेतु बनने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘फर्जी खबरों में समुदायों के बीच तनाव पैदा करने की क्षमता है, इसलिए ये हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाल रही है.''

Advertisement

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पत्रकारों और वकीलों (या उनके जैसे न्यायाधीश) में कुछ चीजें ऐसी हैं जो समान हैं. उन्होंने कहा कि दोनों मानते हैं कि ‘‘तलवार से अधिक ताकतवर कलम होती है.'' उन्होंने कहा, ‘‘अगर देश में लोकतंत्र रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र होना होगा. अखबार ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और राजनीतिक बदलावों के लिए उत्प्रेरक रहे हैं.'' यौन उत्पीड़न के खिलाफ अमेरिका से शुरू अभियान ‘मी टू' का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मी टू का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा और यह इतिहास की अहम घटना थी. भारत में दिल्ली के कुछ लोगों द्वारा ज्योति और निर्भया दुष्कर्म कांड को अंजाम देने के बाद हुई मीडिया कवरेज का नतीजा था कि बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और बाद में फौजदारी कानून में सुधार हुआ.''

Advertisement

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘ एक नागरिक के तौर पर संभव है कि हम पत्रकारों द्वारा अपनाए गए रुख या निकाले गए निष्कर्ष से सहमत नहीं हों. मैं भी कई पत्रकारों से असहमत होता हूं. अंतत: ऐसा कौन है जो सभी लोगों से सहमत होता है? लेकिन असहमति नफरत में नहीं बदलनी चाहिए और नफरत को हिंसा में तब्दील होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.''

ये भी पढ़ें- 

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Sambhal के बाद Bulandshahr के Muslim इलाके में मिला 32 साल पुराना Mandir, जानें क्यों हुआ था बंद?
Topics mentioned in this article