'नोटिस पीरियड सर्व किया होता तो...'- लॉकडाउन में पति ने पहले नौकरी खोई फिर जान, अब हक के लिए लड़ रही यह महिला

चेन्नई में ऐसे ही एक शख्स की नौकरी जाने के बाद कोविड-19 से उनकी जान भी चली गई. अब उनकी पत्नी कंपनी के खिलाफ खड़ी हैं. उनका आरोप है कि कंपनी ने उनके पति को अनिवार्य नोटिस पीरियड भी सर्व करने नहीं दिया था. अगर वो कर लेते तो आज परिवार आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में होता.

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Covid-19 महामारी में पति की नौकरी और फिर जान जाने के बाद लड़ रहीं कामेश्वरी.
चेन्नई:

कोरोनावायरस महामारी में लाखों लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा था. बहुत सारी कंपनियों ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटनी की थी. चेन्नई में ऐसे ही एक शख्स की नौकरी चली गई थी. नौकरी जाने के बाद कोविड-19 से उनकी जान भी चली गई. अब उनकी पत्नी कंपनी के खिलाफ खड़ी हैं और लड़ाई लड़ रही हैं. उनका आरोप है कि कंपनी ने उनके पति को जॉब से निकाला तो था ही, उन्हें अनिवार्य नोटिस पीरियड भी सर्व करने नहीं दिया था. अगर वो दो महीनों का नोटिस पीरियड सर्व कर लेते तो आज परिवार आर्थिक रूप से इससे तो बेहतर स्थिति में होता. उनकी मांग है कि कंपनी परिवार को मुआवजे और इंश्योरेंस बेनेफिट्स दे, जो उनके नोटिस पीरियड में रहने के दौरान मिलता.

चेन्नई की कामेश्वरी टीचर रह चुकी हैं. उनके 48 साल के पति रमेश सुब्रमण्यम की इस साल जून में कोविड-19 से मौत हो गई थी. वो Synamedia Private Ltd में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर काम करते थे. इसके दो महीने से भी कम वक्त पहले कंपनी ने उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था. दोनों का एक बेटा है.

बिना नोटिस पीरियड सर्व किए ही निकाल दिया गया था

कामेश्वरी बताती हैं कि पूरा वाकया 8-9 अप्रैल से शुरू हुआ है. 'HR ने रमेश से ज़ूम कॉल पर कनेक्ट किया और उनको बोला कि कंपनी की छंटनी के तहत उनको इस्तीफा डालना पड़ेगा. रमेश ने उनसे आग्रह किया कि वो उन्हें अपने अपॉइंटमेंट लेटर में तय किए गए 2 महीने तक के अनिवार्य नोटिस पीरियड को सर्व करने दें और वो इस दौरान एक नई जॉब ढूंढने की कोशिश करेंगे.' इसके कुछ दिन बाद कंपनी ने फिर से उनसे कहा कि या तो वो इस्तीफा दे दें या उनको टर्मिनेट कर दिया जाएगा, जिससे कि उनका करियर खतरे में पड़ जाएगा. 13 अप्रैल को उन्होंने इस्तीफा दे दिया और 16 को उनको रिलीव कर दिया गया.

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30 लाख सालाना का पैकेज पाने वाले रमेश नौकरी खोने के बाद सदमे में थे. चीजें तब और खराब हो गईं, जब एक महीने के भीतर ही उन्हें कोविड हो गया. परिवार ने इलाज में 18 लाख रुपये खर्च कर दिए, लेकिन उनकी मौत 11 जून को हो गई. कामेश्वरी का कहना है कि 'अगर वो नोटिस पीरियड पर होते तो उन्हें कंपनी के टर्म इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस और EPF इंश्योरेंस से कवर मिल जाता और परिवार को इससे 1.5 करोड़ से ज्यादा तक की मदद मिल जाती.'

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उन्होंने कंपनी को उचित मुआवजा देने की मांग करते हुए लीगल नोटिस भेजा है. वो कहती हैं, 'कंपनी को बस पैसा दिखता है. एक कर्मचारी नोटिस पीरियड सर्व कर लेगा तो इनका क्या चला जाएगा? ऐसे हालातों से परिवार बिखर जाते हैं. ऐसा किसी और के साथ न हो, इसलिए मैं लड़ रही हूं.' कंपनी ने अबतक उन्हें बस 2 लाख तक डोनेशन देने का ऑफर दिया है, परिवार ने इसे स्वीकार नहीं किया है.

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रमेश के भाई किशोर सुब्रमण्यम का कहना है कि बहुत सी कॉरपोरेट कंपनियां सरकार के इस निर्देश का उल्लंघन कर रही हैं, जिसमें कहा गया था कि महामारी में कर्मचारियों को निकाला न जाए. वो जोर देकर कहते हैं कि उनके भाई को इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया था. उन्होंने सवाल किया कि 'अगर उन्होंने खुद से इस्तीफा दिया होता और दो महीनों का नोटिस पीरियड सर्व नहीं करतेतो क्या कंपनी उनसे नहीं बोलती कि वो दो महीने की सैलरी भरें? हम वही मांग रहे हैं, जिसपर उनका हक था.'

कंपनी के क्या हैं दावे?

Synamedia ने इस बात से इनकार किया है कि उसने रमेश को मजबूर किया गया था. कंपनी का दावा है कि रमेश ने तुरंत रिलीविंग मांगी थी 'क्योंकि उनको कोई अच्छा ऑफर मिल रहा था.' अगर ऐसा था तो कंपनी ने नोटिस पीरियड न सर्व करने के पैसे क्यों नहीं लिए? इस सवाल पर के सीनियर HR पर्सन राजेश कुमारस्वामी ने NDTV से कहा, 'हमने महामारी में नरम रुख अपनाया था. यहां तक कि हमने मिस्टर रमेश को 4 महीने की सैलरी दी थी. शायद उन्होंने अपने इस्तीफे के फैसले के बारे में परिवार को नहीं बताया था.' कर्मचारियों की छंटनी की बात से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि कई लोगों ने खुद से इस्तीफा दिया था क्योंकि उनको कई जगह अच्छे ऑफर मिल रहे थे.

रमेश के परिवार ने इन दावों को खारिज किया है. वो यह मामला केंद्रीय श्रम मंत्रालय भी ले गए हैं, जिसने कंपनी से वक्त पर सकारात्मक समाधान निकालने को कहा है.

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