चारधाम परियोजना का मामला : सड़क की चौड़ाई बढ़ाने की सरकार की अर्जी पर फिर से होगा विचार, SC का आदेश

चारधाम परियोजना का उद्देश्य सभी मौसम में पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है. इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद हर मौसम में चार धाम की यात्रा की जा सकेगी.

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चारधाम परियोजना में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अर्जी पर समिति से दोबारा विचार करने को कहा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

चारधाम परियोजना (Chardham Highway Project) के लिए सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हाई पावर्ड कमेटी से कहा है कि वह रक्षा मंत्रालय और सड़क परिवहन मंत्रालय की अर्जी पर दो हफ्ते में नए सिरे से विचार करे, जिसमें सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क के चौड़ीकरण और चार धाम सड़क परियोजना को मूल रूप से निर्दिष्ट चौड़ाई के साथ पूरा करने की इजाजत मांगी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमेटी इस संबंध में SC में रिपोर्ट दाखिल करेगी. 

इससे पहले सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा था कि वो चारधाम राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के 2018 के नोटिफिकेशन का पालन करे. 2018 के नोटिफिकेशन के अनुसार पहाड़ी इलाकों में 5.5 मीटर टैरर्ड सतह के बीच में कैरिजवे को अपनाया जाएगा लेकिन केंद्र ने इसे 7 मीटर करने के लिए SC की अनुमति मांगी थी क्योंकि ये इलाका चीन की सीमा पर सटा था. अदालत ने यह कहते हुए मना कर दिया कि सरकार अपने स्वयं के सर्कुलर का उल्लंघन नहीं कर सकती. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चारधाम निर्माण के कारण वन क्षेत्र के नुकसान की भरपाई के लिए वृक्षारोपण करने के भी निर्देश दिया है. 

बता दें कि चारधाम परियोजना का उद्देश्य सभी मौसम में पहाड़ी राज्य के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ना है. इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद हर मौसम में चार धाम की यात्रा की जा सकेगी. इस परियोजना के तहत 900 किलोमीटर लम्बी सड़क परियोजना का निर्माण हो रहा है. अभी तक 400 किमी सड़क का चौड़ीकरण किया जा चुका है. 

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एक अनुमान के मुताबिक, अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है जिससे पर्यावरणविद नाराज हैं. गैर सरकारी संगठन 'Citizens for Green Doon' ने एनजीटी के 26 सितंबर 2018 के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. एनजीटी ने व्यापक जनहित को देखते हुए इस परियोजना को मंजूरी दी थी. एनजीओ का दावा था कि इस परियोजना से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने उच्चाधिकार प्राप्त समिति में देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के एक प्रतिनिधि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के एक प्रतिनिधि, अहमदाबाद स्थित केंद्र सरकार के अंतरिक्ष विभाग से भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के एक प्रतिनिधि, सीमा सड़क मामलों से संबंधित रक्षा मंत्रालय के एक प्रतिनिधित्व को शामिल करने को कहा था.

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पीठ ने समिति को चार महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा था. समिति को इस पर विचार करना था कि चारधाम परियोजना से क्या प्रभाव पड़ सकता है. समिति तीन-तीन महीने पर बैठक करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजना के निर्माण में पर्यावरण मानकों का ध्यान रखा जा रहा है या नहीं. साथ ही बैठक में आगे की रणनीति भी तैयार की जाएगी. अदालत ने कहा था समिति इस बात पर भी गौर करे कि इस परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर कम से कम प्रतिकूल असर पड़े. साथ ही समिति परियोजना के निर्माण से निकलने वाले कचरे के सुरक्षित निस्तारण के लिए जगह की पहचान करेगी. साथ ही इसकी वजह से पेड़, वन क्षेत्र, जन स्रोतों के नुकसान का भी आकलन करे.

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