- 7 सितंबर को पूर्ण चंद्रग्रहण होगा, जिसमें चंद्रमा तांबे के रंग जैसा लाल दिखाई देगा और यह घटना दुर्लभ है.
- चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है.
- यह पूर्ण चंद्रग्रहण लगभग 82 मिनट तक रहेगा और इसे देखने के लिए खुले क्षेत्र जैसे छत सबसे उपयुक्त स्थान हैं.
रविवार की रात आसमान में एक दुर्लभ नजारा देखने को मिलेगा. रोशनी और अंधेरा जब एक साथ आएंगे और आसमान में पूर्ण चंद्रग्रहण का नजारा होगा. भारतीय खगोलशास्त्रियों के अनुसार यह एक दुर्लभ घटना होगी और 7 सितंबर 2025 को रात में पृथ्वी की छाया जब चांद पर पड़ेगी तो उसका रंग एकदम तांबे की किाी तश्तरी सा लाल हो जाएगा. हो सकता है बारिश या आसमान में बादल की वजह से आपको लाल चांद या पूर्ण चंद्रग्रहण या फिर ब्लड मून का दीदार न करने को मिले लेकिन निश्चित तौर पर यह उन तमाम लोगों के लिए कभी न भूलने वाला नजारा होगा, जो इसे देख पाएंगे.
क्यों होता है चंद्रग्रहण
अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा की मानें तो चंद्रग्रहण पूर्णिमा के समय होता है यानी जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है और अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है. इससे वह धुंधला हो जाता है. कभी-कभी चंद्रमा की सतह पर एक हैरान करने वाला लाल रंग नजर आता है. हर चंद्रग्रहण पृथ्वी के आधे हिस्से से दिखाई देता है. चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सीधे सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है और अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है. ग्रहण कई चरणों में होता है: पहले, चंद्रमा पृथ्वी की प्रच्छाया यानी पेनुम्ब्रा में आता है, जो पृथ्वी की बाहरी छाया है, फिर वह पृथ्वी की गहरी छाया में आता है. जब चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में आता है उस समय एक अद्भुत लाल रंग में बदल जाता है, जो पूर्ण ग्रहण का चरण है.
82 मिनट तक रहेगा नजारा
विशेषज्ञों की मानें तो यह बदलाव एकदम किसी कवि की कल्पना सा नजर आता है. चंद्रमा लाल हो जाता है क्योंकि पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरने वाले सूर्य के प्रकाश की नीली तरंगें बिखर जाती हैं और फिर लाल तरंगें चंद्रमा पर पहुंचती हैं. इस घटना को रेले स्कैटरिंग कहा जाता है और यह चंद्रमा को पूर्ण ग्रहण के दौरान क्रिमसन और तांबे जैसे रंगों में रंग देता है. रविवार को जो पूर्ण चंद्रग्रहण है वह 82 मिनट तक चलेगा और इतना समय चंद्रमा में होने वाले बदलाव को देखने के लिए काफी है. हाल के समय में इससे भी ज्यादा लंबे समय तक चलने वाले चंद्रग्रहण देखे गए जैसे कि 27 जुलाई 2018 को हुआ ग्रहण जो पूरे 103 मिनट तक चला था.
आर्यभट्ट: ग्रहण का साइंस और परंपरा
दूरबीन और सैटेलाइट्स के आने से बहुत पहले तक भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट (476-550 ईस्वी) ने ग्रहण की एक वैज्ञानिक व्याख्या दी थी. उन्होंने अपनी प्रसिद्ध किताब आर्यभटिया में ग्रहण को एक प्राकृतिक घटना बताया था जो खगोलीय पिंडों के बीच की क्रिया के कारण होती है, न कि पौराणिक प्राणियों या देवताओं के कारण. आर्यभट्ट की गणनाएं ग्रहण के समय और प्रकृति की सटीक भविष्यवाणी करती थीं और उन घटनाओं ने भारत में खगोल विज्ञान की शुरुआत की. उनके विचारों ने डर और अंधविश्वास को दूर करने में मदद की और ब्रह्मांड की तर्कसंगत समझ को बढ़ावा दिया. आज, उनकी ही विरासत है जो वैज्ञानिक जिज्ञासा और खगोलीय घटनाओं में सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देती है.
ग्रहण कैसे देखें
सूर्यग्रहण की तुलना में चंद्रग्रहण देखना सुरक्षित और आसान है और इसके लिए किसी खास उपकरण की जरूरत नहीं है. आपको बस बाहर निकलना है और ऊपर की तरफ देखना है. चंद्रग्रहण के दीदार की सबसे अच्छी जगहों में उन सभी जगहों को शुमार किया जाता है जो शहर की रोशनी से दूर हैं और खुले क्षेत्र जैसे छत, पार्क या मैदान हैं. आप दूरबीन या टेलीस्कोप की मदद से चंद्रग्रहण को बेहतरी से देख सकते हैं.
फोटोग्राफी टिप्स
एक ट्राइपॉड और मैनुअल कैमरा सेटिंग्स का उपयोग करके ग्रहण की सुंदर तस्वीरें लें. बैंगलोर के भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रग्रहण देखने से कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है. आप इसे परिवार और दोस्तों के साथ देख सकते हैं और इसका आनंद ले सकते हैं. सूर्य ग्रहण से अलग चंद्रग्रहण में किसी खास फिल्टर की जरूरत नहीं होती है. वहीं चंद्रग्रहण से आपकी आंखों को कोई खतरा भी नहीं है.
मिथकों को दूर करें
विज्ञान की समझ के बाद भी आज तक ग्रहण को लेकर कई तरह के अंधविश्वास मौजूद हैं. कुछ लोगों का मानना है कि ग्रहण के दौरान घर के अंदर रहना चाहिए या भोजन नहीं करना चाहिए. ये विचार प्राचीन डर और ज्ञान की कमी से उत्पन्न होते हैं. लेकिन आर्यभट्ट ने हमें दिखाया कि ग्रहण प्राकृतिक और पूर्वानुमेय घटनाएं हैं यानी एक खगोलीय पिंडों का नृत्य. इसमें कोई राहु और केतु नहीं है जो चंद्रमा को खा रहा हो. खगोल विज्ञान सोसाइटी ऑफ इंडिया और बाकी संस्थाएं सार्वजनिक देखने और जागरूकता अभियानों को बढ़ावा दे रही हैं ताकि वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा दिया जा सके. कई शौकिया खगोल विज्ञान क्लब लाइव स्ट्रीम और सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं ताकि ग्रहण का जश्न मनाया जा सके.
इसरो और चांद का नाता
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने चंद्रयान-1, 2 और 3 जैसे उपग्रहों के साथ चंद्रमा का विस्तार से अध्ययन किया है. चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की खोज की और चंद्रयान-3 ने सफलतापूर्वक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने का काम किया. अब भारत ने चंद्रयान-4 के साथ एक लूनर सैंपल बैक मिशन की योजना बनाई है. इसके अलावा जापान के साथ लूपेक्स मिशन में चंद्रमा के साउथ पोल की भी यात्रा करने की योजना है.
चंद्रमा और पृथ्वी पर जीवन
चंद्रमा जितना सुंदर उतना ही वह पृथ्वी पर जीवन को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कई जानवर, विशेष तौर पर समुद्री प्रजातियों की बॉयोलॉजिकल क्लॉक्स चंद्रमा के चरणों से जुड़ी होती हैं. टाइड, माइग्रेशन पैटर्न और रिप्रोडेक्टिव साइकिल चंद्रमा के चरणों से प्रभावित होते हैं. एक पूर्ण चंद्रग्रहण, हालांकि छोटा है लेकिन यह हमें बताता है कि हमारा ग्रह एक विशाल ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है.
जब चंद्रमा लाल हो जाता है और तारे ऊपर चमकते हैं, तो प्रकृति की भव्यता, प्राचीन विज्ञान की समझ और हैरान करने वाले आनंद के बारे में विचार करें. यह ग्रहण न सिर्फ एक खगोलीय घटना है बल्कि यह जिज्ञासा, समुदाय और ब्रह्मांडीय सद्भाव का उत्सव भी है.
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