उमर अब्दुल्ला कैसे चलाएंगे जम्मू कश्मीर सरकार, कैसे होगी अनुच्छेद 370 और पूर्ण राज्य की बहाली

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में वादा किया है कि उसकी सरका अनुच्छेद-370 को बहाल करवाएगी और राज्य का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करवाएगी. लेकिन नेका की गठबंधन सहयोगी इस विषय पर चुप है. आइए जानते हैं कि उमर अब्दुल्ला इससे कैसे निपटेंगे.

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नई दिल्ली:

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के मंगलवार को आए नतीजों के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में अगली सरकार बनने जा रही है. इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, माकपा के गठबंधन ने बड़ी जीत हासिल की है. चुनाव प्रचार के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनुच्छेद-370 और 35ए की बहाली और जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कराने का वादा किया था. इस मुद्दे पर जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस को भरपूर समर्थन दिया.ऐसे में नेशनल कॉन्फ्रेंस की असली परीक्षा शुरू होगी सरकार बनने के बाद. क्योंकि उसके कंधे पर वादों का पहाड़ और लोगों की आकंक्षाएं हैं.  

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 की बहाली

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस चुनाव में जो सबसे बड़ा वादा किया है, वह है अनुच्छेद-370 और 35ए की बहाली. लेकिन चुनाव नतीजे सामने आने के बाद ही उमर अब्दुल्ला ने इस पर अपनी राय साफ कर दी. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा,जिन लोगों ने अनुच्छेद 370 को छीना, उन्हीं से इसकी बहाली की उम्मीद करना बहुत ही मूर्खतापूर्ण होगा,लेकिन उनकी पार्टी इस मुद्दे को जीवित रखेगी और इसे उठाती रहेगी.''अनुच्छेद-370 पर रुख के सवाल पर उमर ने कहा था,''हमारा राजनीतिक रुख नहीं बदलेगा. हमने कभी नहीं कहा कि हम अनुच्छेद 370 पर चुप रहेंगे या अनुच्छेद 370 अब हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है.'' उमर ने मंगलवार को कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल कर उल्लेखनीय कार्य करेंगे. उमर के इस बयान का आशय यह है कि वो अनुच्छेद-370 और 35 ए की बहाली पर अभी चुप रहेंगे. 

श्रीनगर में अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ बैठक करते उमर अब्दुल्ला और फारूक अब्दुल्ला.

उमर जम्मू कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर सक्रिय हो सकते हैं. यह एक ऐसा मामला है जिस पर जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों के साथ-साथ केंद्र सरकार की रवैया एक है, यानि की सब इसके पक्ष में हैं.

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जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा कब बहाल होगा

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस साल सात सितंबर को जम्मू में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था. इस दौरान उन्होंने कहा था,"मैंने खुद कहा है कि चुनाव के बाद उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस देंगे. हमने संसद में कहा है, जो चीज हमने दे दी है उसको ये मांग रहे हैं." अमित शाह संसद में भी यह कह चुके हैं कि सरकार जम्मू कश्मीर का दर्जा वापस लौटाएगी. उन्होंने इसकी समय सीमा बताई थी चुनाव के बाद. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी केंद्र सरकार यह कदम कब उठाती है. 

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इस  चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस अनुच्छेद-370 की बहाली को लेकर मुखर रही. उसने इसे अपने चुनाव घोषणा पत्र में जगह दी, लेकिन उसकी गठबंधन साझीदार कांग्रेस इस मसले पर चुप रही. लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कराने को लेकर कांग्रेस भी मुखर है.कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चार सितंबर को जम्मू कश्मीर में एक चुनावी जनसभा में कहा था,''हम जम्मू कश्मीर को स्टेटहुड वापस देने जा रहे हैं.हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार किसी स्टेट से अधिकार छीना गया और उसे यूनियन टेरेटरी बनाया गया.बीजेपी और आरएसएस कुछ भी कह ले हम जम्मू कश्मीर के लोगों को उनका स्टेटहुड वापस देने जा रहे हैं. आपको गारंटी देकर कह रहा हूं- या ये (बीजेपी) स्टेटहुड देंगे नहीं तो अगली सरकार जो इंडिया गठबंधन की आएगी उनका पहला काम होगा आपको स्टेटहुड देना." 

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पूर्ण राज्य के लिए क्या कर सकते हैं उमर अब्दुल्ला

स्टेटहुड देने का काम केंद्र सरकार को करना है. वहां अभी बीजेपी की सरकार है.उमर अब्दुल्ला की सरकार पूर्ण राज्य की बहाली की मांग को लेकर विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेज सकती है. उस पर फैसला केंद्र सरकार को करना होगा. जम्मू कश्मीर सरकार केवल प्रस्ताव ही भेज सकती है. केंद्र सरकार का रवैया इस तरह के मामलों में लटकाने वाला रहा है. हिमाचल प्रदेश को 1956 में केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. लेकिन केंद्र सरकार ने 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया था. जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद लोकतांत्रिक सरकार बनने के बाद इस विषय को लेकर आंदोलन भी हो सकता है. जम्मू कश्मीर से अलग हुए लद्दाख के लोग भी अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को लेकर पिछले दो साल से आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है. 

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पिता फारूक अब्दुल्ला के साथ उमर अब्दुल्ला.

उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के संबंध

उमर अब्दुल्ला ने इस साल जुलाई में अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा था, ''वो चुनाव नहीं लड़ेंगे क्योंकि जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है.मैं एक पूर्ण राज्य का मुख्यमंत्री रहा हूं.मैं खुद को ऐसी स्थिति में नहीं देख सकता जहां मुझे उपराज्यपाल से चपरासी चुनने के लिए कहना पड़े या बाहर बैठकर फाइल पर उनके हस्ताक्षर करने का इंतजार करना पड़े." लेकिन उमर अब्दुल्ला ने न केवल चुनाव लड़ा बल्की अपनी पार्टी के लिए 42 सीटें भी जितवा दीं और अब मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. जाहिर है अब उनको रोज-ब-रोज उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से रूबरू होना पड़ेगा.

केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल का पद बहुत ताकतवर है. उमर को उसके मातहत ही काम करना होगा. उमर अब्दुल्ला ने इस चुनाव से यह संदेश दिया है कि कश्मीर की जनता की पसंद वो ही हैं.अब उमर के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वो जनता को यह अहसास कराएं कि अब सत्ता और शासन उनके करीब है.पार्टी की ओर से किए गए वादों को पूरा कराने की जिम्मेदारी उमर अब्दुल्ला के कंधों पर होगी.इसके लिए उन्हें उपराज्यपाल से अच्छे संबंध बनाकर चलना होगा. लेकिन उमर के संबंध वैसे ही बनें जैसा दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की उपराज्यपाल से है, तो रोज तू-तू-मैं-मैं होगी.

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